प्रभु राम की अयोध्या से कैसे जुड़ा है “अयुत्थाया” अभ्यास 

भारतीय नौसेना और रॉयल थाई नेवी के बीच हाल ही में आयोजित पहले द्विपक्षीय अभ्यास ‘अयु थाया’ के बारे में यह विश्लेषण बताता है कि कैसे यह अभ्यास दोनों देशों के बीच सामरिक संबंधों को मजबूत करता है। इस अभ्यास का नाम ‘अयु थाया’ रखा गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘अजय’ या ‘अपराजित’। इस नाम का चयन भारत के अयोध्या और थाईलैंड के अयु थाया शहरों के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासत और समृद्ध सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाने के लिए किया गया है।

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इस अभ्यास में भारतीय नौसेना की ओर से स्वदेश निर्मित जहाज कुलिश और आईएन एलसीयू 56 ने हिस्सा लिया, जबकि रॉयल थाई नेवी की ओर से हिज थाई मेजेस्टी शिप (एचटीएमएस) प्रचुआप खीरी खान ने भाग लिया। इस अभ्यास के दौरान, दोनों नौसेनाओं ने परिचालन तालमेल का विस्तार किया और आपसी सहयोग को बढ़ाया। इसके साथ ही, भारत-थाईलैंड समन्वित गश्ती अभियान (इंडो-थाई कॉर्पेट) का 36वां संस्करण भी आयोजित किया गया।

इस अभ्यास के माध्यम से, दोनों देशों की नौसेनाओं ने समुद्री चरण में मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट का उपयोग करके अपनी सामरिक क्षमताओं का प्रदर्शन किया। इस अभ्यास के जरिए न केवल सैन्य सहयोग मजबूत हुआ, बल्कि यह भी स्पष्ट हुआ कि भारत और थाईलैंड के बीच लंबे समय से चली आ रही साझा इतिहासिक कथाओं और सांस्कृतिक संबंधों का यह एक नया अध्याय है।

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इस अभ्यास के माध्यम से दोनों देशों की नौसेनाओं ने अपनी आपसी समझ और सहयोग को और अधिक मजबूत किया है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा मिलता है। यह अभ्यास न केवल दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भारत और थाईलैंड अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को और अधिक मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

“सहनाववतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै।

तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥”

अर्थ – “हम साथ मिलकर बढ़ें, साथ मिलकर शक्ति प्राप्त करें, हमारी पढ़ाई प्रकाशमय हो, और हम एक-दूसरे से द्वेष न करें।” यह श्लोक ‘अभ्यास अयु थाया’ के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है। इस अभ्यास के माध्यम से, भारत और थाईलैंड ने सामरिक सहयोग के माध्यम से एक साथ बढ़ने और शक्ति प्राप्त करने का संकल्प लिया है। यह श्लोक सहयोग और साझा प्रगति की भावना को दर्शाता है, जो कि इस अभ्यास के मूल में है। दोनों देशों का यह संयुक्त अभ्यास न केवल उनके बीच के संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि सहयोग और समझदारी से ही सच्ची प्रगति संभव है। इस प्रकार, यह श्लोक और अभ्यास दोनों ही सामरिक सहयोग और साझा विकास की महत्वपूर्णता को रेखांकित करते हैं।

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