आखिर खबरों में क्यों है “इडेट आयोग”

इडेट आयोग की रिपोर्ट भारत में घुमंतु, अर्ध-घुमंतु, और गैर-अधिसूचित जनजातियों (NTs, SNTs, और DNTs) के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करने के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हाल ही में इस रिपोर्ट को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इस रिपोर्ट में इन समुदायों के लिए एक स्थाई आयोग की स्थापना की सिफारिश की गई है, जो उनके अधिकारों और कल्याण की रक्षा करेगा।

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गैर-अधिसूचित जनजातियां वे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान जन्मजात अपराधियों के रूप में अधिसूचित किया गया था। इन अधिनियमों को स्वतंत्र भारत सरकार ने 1952 में निरस्त कर दिया था। घुमंतु और अर्ध-घुमंतु समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो एक स्थान पर स्थायी रूप से न रहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। इन समुदायों का जीवन अक्सर असुरक्षित होता है और वे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित रहते हैं।

इडेट आयोग ने जनवरी 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसमें उल्लेख किया गया कि गैर-अधिसूचित, अर्ध-घुमंतु और घुमंतु जनजातियों के लिए एक स्थाई आयोग में इसके अध्यक्ष के रूप में एक प्रमुख सामुदायिक नेता होना चाहिए। इसकी सिफारिशों में इन समुदायों को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) कार्ड का प्रावधान, विशेष आवास योजनाएं, विशेष शिक्षा आदि शामिल हैं। ये सिफारिशें इन समुदायों के लिए बेहतर जीवन स्थितियों और समाज में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, जो एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, की स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानों के अनुसार 12 अक्टूबर 1993 को की गई थी। इसे बाद में 2006 में संशोधित किया गया था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है और यह देश में मानवाधिकारों की प्रहरी के रूप में कार्य करता है। इसका मुख्य उद्देश्य मानवाधिकारों की रक्षा और प्रोत्साहन है, जिसमें वंचित और असुरक्षित समुदायों के अधिकारों की रक्षा शामिल है।

इस प्रकार, इडेट आयोग की रिपोर्ट और NHRC की सिफारिशें भारत में घुमंतु, अर्ध-घुमंतु, और गैर-अधिसूचित जनजातियों के लिए न्याय और समानता के प्रति एक महत्वपूर्ण कदम हैं। ये प्रयास इन समुदायों के जीवन में सुधार लाने और उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाने की दिशा में अग्रसर हैं।

सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्।

अर्थ – सभी सुखी हों। सभी निरोगी हों। सभी शुभ देखें। कोई भी दुखी न हो। यह श्लोक इडेट आयोग की रिपोर्ट और उसके उद्देश्यों से गहराई से जुड़ा हुआ है। इस श्लोक का संदेश है कि सभी लोग सुखी, निरोगी और शुभ अनुभव करें और किसी को भी दुख न हो। इसी प्रकार, इडेट आयोग की रिपोर्ट भारत की घुमंतु, अर्ध-घुमंतु और गैर-अधिसूचित जनजातियों के लिए समान अधिकार, सुरक्षा और कल्याण की बात करती है। यह रिपोर्ट इन समुदायों के लिए बेहतर जीवन स्थितियों और समाज में समानता की दिशा में एक कदम है, जिससे वे भी सुखी, निरोगी और शुभ जीवन जी सकें।

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  1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) क्या है?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत में एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, जिसकी स्थापना 1993 में मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम के तहत की गई थी। इसका उद्देश्य देश में मानवाधिकारों की रक्षा और प्रोत्साहन करना है।

2 . घुमंतु जनजातियां क्या हैं?

घुमंतु जनजातियां वे समुदाय हैं जो पारंपरिक रूप से एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते और अपनी जीविका और सांस्कृतिक प्रथाओं के लिए विभिन्न स्थानों पर घूमते रहते हैं। ये समुदाय अक्सर सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित रहते हैं।

  1. अर्ध-घुमंतु जनजातियां क्या हैं?

अर्ध-घुमंतु जनजातियां वे समुदाय हैं जो कुछ समय के लिए एक स्थान पर रहते हैं और फिर आवश्यकता या परंपरा के अनुसार दूसरे स्थान पर चले जाते हैं। ये भी अक्सर सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित रहते हैं।

  1. सामाजिक न्याय क्या है?

सामाजिक न्याय एक ऐसी अवधारणा है जो समाज में सभी वर्गों के लिए समान अधिकार और अवसरों की वकालत करती है। यह समाज के हर वर्ग के लिए समानता, सम्मान और न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।

  1. गैर-अधिसूचित जनजातियां क्या हैं?

गैर-अधिसूचित जनजातियां वे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान ‘जन्मजात अपराधी’ के रूप में अधिसूचित किया गया था। 1952 में भारत सरकार ने इन्हें इस श्रेणी से बाहर कर दिया, लेकिन ये समुदाय आज भी कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।