मरने से पहले जरूर कर लें चार धाम यात्रा: जानिये कारण

सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में चार धाम यात्रा का बहुत महत्व है। हर किसी का हिन्दू के मन का ये भाव होता है की मरने से पहले चार धाम यात्रा पूरी कर ले। कितने लोगों का ये मानना होता है की बुढ़ापे में ही चार धाम यात्रा करनी चाहिए पर ऐसा बिलकुल सत्य नहीं है। चार धाम यात्रा का उम्र से कोई लेना देना नहीं है।  यह यात्रा भारत के चार पवित्र तीर्थस्थलों – बद्रीनाथ (उत्तराखंड), पुरी (उड़ीसा), रामेश्वरम (तमिलनाडु) और द्वारका (गुजरात) तक की जाती है। 

चार धाम यात्रा का इतिहास और महत्व

चार धाम यात्रा की शुरुआत को लेकर मान्यता है कि इसे 8वीं शताब्दी के महान हिन्दू संत और दार्शनिक आदि शंकराचार्य ने प्रारम्भ किया था। आदि शंकराचार्य  वेदांत के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं।  उन्होंने पूरे भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा देने के लिए इस यात्रा को प्रोत्साहित किया।

उन्होंने चारों दिशाओं में चार पवित्र धामों की स्थापना की, जो हिन्दू धर्म और भारत के लिए चार महत्वपूर्ण केंद्र बने। इनमें बद्रीनाथ (उत्तराखंड), पुरी (उड़ीसा), रामेश्वरम (तमिलनाडु) और द्वारका (गुजरात) शामिल हैं। इस यात्रा का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की विविधता और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक भी है। आदि शंकराचार्य की इस पहल से चार धाम यात्रा ने भारतीय मानचित्र पर एक विशेष स्थान प्राप्त किया और यह यात्रा आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण बनी हुई है।

 

चार धाम यात्रा की कथा एवं समय

आइये अब एक – एक कर के चारों धाम के बारे में जानते हैं।  

1.बद्रीनाथ

सबसे पहले भक्त चार धाम यात्रा में बद्रीनाथ के दर्शन करने जाते हैं। यह उत्तराखंड राज्य में स्थित हैं। इसे विष्णु भगवान का धाम माना जाता है। यह मंदिर नर-नारायण पर्वत की गोद में बसा है। बद्रीनाथ की कथा भगवान विष्णु और उनके तपस्या स्थल से जुड़ी हुई है। मान्यता है की भगवान विष्णु ने यहां नर-नारायण रूप में कठोर तपस्या की थी। ये मान्यता हैं की यहां से गंगाजल लेकर रामेश्वरम में शिवलिंग पर चढ़ाया जाता हैं। यह स्थल धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां आ कर पहाड़ों और सुन्दर दृश्यों से नज़र हटाए नहीं हटती। यहाँ के नीलकंठ पर्वत, तप्त कुंड, और अलौकिक नजारे पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। बद्रीनाथ तक पहुंचने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून से सड़क मार्ग से यात्रा की जा सकती है। मई से नवंबर के महीने यहाँ यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। 

नर-नारायण की तपस्या

बद्रीनाथ की कथा भगवान विष्णु के दो अवतार नर-नारायण से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि इन दोनों ने बद्रीनाथ की इस पवित्र भूमि पर कठोर तपस्या की थी। नर- नारायण ने कठोर तप कर के राक्षस का भी वध किया था। कहा जाता है की नर बाद में जा कर अर्जुन बने महाभारत में और नारायण भगवन श्री कृष्ण बने।

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने बद्रीविशाल रूप में यहां प्रकट होकर तपस्या की। उन्होंने एक बड़े बेर (बद्री) के पेड़ के नीचे ध्यान किया जिसके कारण इस स्थान को ‘बद्रीनाथ’ कहा जाने लगा।

चार धाम यात्रा में सबसे पहले बद्रीनाथ ही जाते हैं और यहां गंगा जल लेने की भी प्रथा हैं। सबसे पहले जाने का ये भी कारण है की यहाँ का रास्ता कठिन है और कब बंद हो जाए ये पता नहीं हैं इसलिए भक्तगण यहां पहले आते हैं।

2. पुरी

बद्रीनाथ के बाद भक्तगण भगवान् जगनाथ के दर्शन के लिए उड़ीसा के पूरी आ जाते हैं  यहाँ भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर है जो अपनी रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है। यह भी कहा  जाता है की भगवान श्री कृष्ण का हृदय वही रखा हुआ है। जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ , माता सुभद्रा और बलराम भगवान की मूर्ति बनी हुई है। इसके पीछे का इतिहास बताया जाता है की  एक बार उड़ीसा के राजा इंद्रद्युम्न ने एक दिव्य स्वप्न देखा जिसमें उन्हें भगवान विष्णु की एक अनूठी मूर्ति की पूजा करने का निर्देश मिला। उस स्वप्न से उन्होंने भगवान विष्णु की एक विशेष मूर्ति की खोज शुरू की।

उन्हें पता चला कि भगवान विष्णु नीलमाधव के रूप में उड़ीसा के एक दुर्गम जंगल में प्रकट हुए थे। राजा ने उस स्थान की खोज की और जब वे वहां पहुंचे, तो उन्हें भगवान विष्णु के दर्शन हुए। भगवान ने राजा को आदेश दिया कि वे उनकी एक मूर्ति बनवाएं। भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं एक विशाल नीम के पेड़ से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बनाई। इस प्रकार भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों की स्थापना पुरी में की गई, जो आज भी विश्व प्रसिद्ध हैं और वहां हर वर्ष भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है।

जगन्नाथ पुरी यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय

जगन्नाथ पुरी यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय आमतौर पर जून से मार्च के बीच माना जाता है। इस दौरान मौसम सुखद रहता है और तापमान भी अधिक नहीं होता, जिससे यात्रा और दर्शन करना आरामदायक रहता है। विशेष रूप से, जुलाई माह में प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन होता है जो एक विशाल और भव्य उत्सव है। यदि आप इस अनूठे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो जुलाई में यात्रा करना आदर्श होगा।

हालांकि, इस समय भीड़ अधिक होती है इसलिए यात्रा की पूर्व योजना और बुकिंग करना सुझावित है। बारिश के मौसम (जुलाई से सितंबर) में भी यात्रा की जा सकती है लेकिन इस दौरान मौसम में अनिश्चितता रहती है। गर्मी के महीनों (अप्रैल से जून) में पुरी का तापमान काफी बढ़ जाता है इसलिए इस समय में यात्रा करने से बचना बेहतर रहता है।पुरी में हर वर्ष इस रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को भव्य रथों में नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है। 

3. रामेश्वरम

तीसरे धाम में रामेश्वरम आता हैं। यहां पर भगवान शिव विराजमान हैं। यहाँ पर भगवान शिव को बद्रीनाथ से लाया गया गंगा जल चढ़ाया जाता हैं। यह मंदिर बहुत ही ज्यादा भव्य हैं। जिसकी सुंदरता देखते रहने से भी कम नहीं होती। यहां २२ कुंड का पानी है और यहां स्नान कर के ही आप भगवान शिव के दर्शन कर सकते हैं। याद रहे यहां दो तरह के शिवलिंग के दर्शन किये जाते है एक जो भगवान राम ने रावण से युद्ध करने से पहले स्थापित किया और दूसरा स्फटिक का शिवलिंग है जो सुबह-सुबह ही दिख पाता हैं। यहां एक और शिवलिंग के दर्शन होतें जो हनुमान जी लेकर आए थे।  

रामेश्वरम की कथा रामायण से जुड़ी हुई है और इसका मुख्य संबंध प्रभु श्री राम से है। यह कथा इस प्रकार है:

रामायण के अनुसार रावण द्वारा माता सीता का अपहरण करने के बाद भगवान राम ने उन्हें वापस प्राप्त करने के लिए एक बड़ी सेना का गठन किया था। लंका पर आक्रमण करने के लिए उन्हें समुद्र पार करना आवश्यक था। इसके लिए, वानर सेना ने समुद्र पर एक पुल बनाया, जिसे आज के समय में ‘रामसेतु’ कहा जाता है।

रामेश्वरम इस पुल या सेतु के निर्माण स्थल के काफी समीप है उस स्थान के रूप में माना जाता है जहां भगवान राम ने समुद्र को प्रणाम किया और समुद्र देवता से पुल बनाने की अनुमति मांगी। इसके बाद प्रभु श्री राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की और भगवान शिव की आराधना की ताकि उन्हें लंका विजय में सफलता मिल सके।

रामेश्वरम का यह स्थान तब से एक पवित्र तीर्थ स्थल बन गया और यहाँ का रामनाथस्वामी मंदिर भगवान शिव को समर्पित है  जो हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है।

4. द्वारका

चौथे धाम में द्वारका आता है। यह कृष्ण भगवान की नगरी है, जहां उनका प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर है। यह गुजरात में द्वारका शहर में स्थित है। इसके साथ ही भेंट द्वारका और रुक्मिणी माता का मंदिर भी वहां स्थित है। जब भी भक्तगण  द्वारका जाते है तो द्वारकाधीश के बाद माता रुक्मणी और भेंट द्वारका मंदिर जरूर जातें हैं। आपको बता दें की भेंट द्वारका के लिए आपको समुद्र के रास्ते जाना पड़ता  हैं। भगवान श्री कृष्ण द्वारका के राजा थें और कई वर्ष वहां समय बिताया। लेकिन जब समय आया उनकी द्वारका नगरी समुद्र में विलीन हो गयी। 

द्वारका की स्थापना

महाभारत के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने मथुरा में अपने मामा कंस का वध किया, तो कंस के ससुर जरासंध ने मथुरा पर कई बार आक्रमण किया। भगवान श्री कृष्ण ने यदुवंशियों की सुरक्षा के लिए मथुरा को छोड़कर द्वारका में अपनी नई राजधानी स्थापित की। द्वारका को समुद्र में एक द्वीप पर बसाया गया था। द्वारका को सोने की नगरी के रूप में वर्णित किया गया है जो अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थी।

यह भगवान श्री कृष्ण की दिव्य नगरी के रूप में भी जानी जाती थी। द्वारका न केवल कृष्ण की राजधानी के रूप में, बल्कि एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में भी मानी जाती है। यहां स्थित द्वारकाधीश मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है और हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक है। चार धाम यात्रा में आखिरी धाम में लोग यही दर्शन करने आते हैं। महाभारत के अंत में भगवान श्री कृष्ण के निधन के बाद द्वारका समुद्र में डूब गई थी, जिसे पुराणों में द्वारका के अंत के रूप में वर्णित किया गया है।

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हमने टेबल फॉर्म में एक चार्ट बनाया हैं इसे भी जरूर देखें :

धाम

देवतास्थानउपयुक्त यात्रा का समयप्रमुख आकर्षण

बद्रीनाथ

भगवान विष्णु

उत्तराखंड

मई से नवंबर

बद्रीनाथ मंदिर, नीलकंठ पर्वत

द्वारका

भगवान कृष्ण

गुजरातअक्टूबर से मार्चद्वारकाधीश मंदिर, माता रुक्मणी मंदिर
पुरीभगवान जगन्नाथओडिशाजून से मार्च

जगन्नाथ मंदिर, सूर्य देव मंदिर

रामेश्वरमभगवान शिवतमिलनाडुअक्टूबर से अप्रैल

रामनाथस्वामी मंदिर, धनुषकोडि

चार धाम यात्रा न केवल एक तीर्थ यात्रा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की विविधता और आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव कराती है। यह यात्रा श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक, बल्कि भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता से भी परिचित कराती है। चार यात्रा का अनुभव किसी भी अनुभव से काफी अलग और अच्छा क्योंकि इसके साथ साथ आप ज्योतिर्लिंगों के भी दर्शन कर लेते हैं। इतना ही नहीं जब आप पलट कर अपनी यात्रा को मानचित्र पर देखेंगे तो आप पाएंगे की उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक भारत के एक बड़े हिस्से की संस्कृति को जान लिया हैं।