कर्ज़ के दबाव में डूबा परिवार, खौफनाक अंत!

सौरव बब्बर और उनकी पत्नी मोना ने कर्ज के बोझ से दबकर आत्महत्या कर ली। “हर घर सोना” स्कीम में धोखाधड़ी ने उनकी ज़िंदगी को बर्बाद कर दिया। यह घटना समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

कर्ज़ के दबाव में डूबा परिवार, खौफनाक अंत!
कर्ज़

सहारनपुर के निवासी सौरव बब्बर और उनकी पत्नी मोना की कहानी वास्तव में बेहद दिल दहलाने वाली है, जो किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को झकझोर कर रख देती है। यह कहानी न केवल एक व्यक्ति के जीवन की त्रासदी को दर्शाती है, बल्कि उन सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की ओर भी इशारा करती है, जिनसे आम आदमी अक्सर जूझता है। सौरव बब्बर एक प्रतिष्ठित ज्वेलरी व्यवसायी थे, जिन्होंने सहारनपुर के सर्राफा बाजार में “श्री साईं ज्वेलर्स” के नाम से एक ज्वेलरी शॉप चलाई। यह शॉप उनकी पारिवारिक धरोहर थी, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से आगे बढ़ाया। लेकिन, इस व्यवसाय के पीछे छिपी कहानी उतनी ही दुखद और परेशान करने वाली है।

सौरव ने अपने व्यापार को बढ़ावा देने और अधिक से अधिक ग्राहकों को जोड़ने के लिए “हर घर सोना” नामक एक स्कीम शुरू की थी, जिसे स्थानीय लोग किटी कमेटी के नाम से जानते थे। इस स्कीम के तहत, सौरव ने लगभग छह से सात समूह बनाए थे, जिनमें प्रत्येक समूह में 200 सदस्य शामिल थे। यह स्कीम इस प्रकार से काम करती थी कि प्रत्येक सदस्य को हर महीने एक निश्चित राशि जमा करनी होती थी। इस राशि का उपयोग एक लकी ड्रॉ के लिए किया जाता था, जिसमें से 20 सदस्यों को सोना या नकद पुरस्कार दिया जाता था। इस प्रकार की स्कीम में लोगों का उत्साह बना रहता था, क्योंकि उन्हें कम राशि में अच्छा लाभ मिलने की संभावना दिखती थी।

हर समूह का लकी ड्रॉ एक निश्चित तारीख को होता था, और उस दिन सभी सदस्य सहारनपुर के घंटा घर के पास स्थित एक होटल में इकट्ठा होते थे। यहां पर सौरव स्वयं मौजूद रहते थे और सभी के सामने लकी ड्रॉ निकालते थे। इस आयोजन का उद्देश्य केवल लकी ड्रॉ करना ही नहीं था, बल्कि ग्राहकों के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाना भी था। इससे सौरव का व्यापार और भी प्रगाढ़ होता गया और लोग उन पर विश्वास करने लगे। लेकिन, जो घटना 10 अगस्त 2024 को घटित हुई, उसने न केवल सौरव के परिवार को, बल्कि पूरे सहारनपुर को हिला कर रख दिया।

10 अगस्त को भी एक लकी ड्रॉ का आयोजन होना था। जिस समूह का लकी ड्रॉ होना था, उसके सभी सदस्य होटल में समय पर पहुंच चुके थे। लेकिन सौरव का कोई अता-पता नहीं था। सभी लोग आश्चर्यचकित थे, क्योंकि सौरव हमेशा समय से पहले ही लोकेशन पर पहुंच जाते थे और इस बार उनके न आने से सभी लोग चिंतित हो गए। कई बार उन्हें फोन किया गया, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। धीरे-धीरे लोगों में बेचैनी बढ़ने लगी और अंततः वे निराश होकर वहां से अपने-अपने घर लौट गए।

लेकिन, अगले दिन की सुबह एक ऐसी खबर लेकर आई, जिसने सभी के पैरों तले जमीन खिसका दी। यह खबर थी कि सौरव बब्बर और उनकी पत्नी मोना ने आत्महत्या कर ली थी। इस खबर ने न केवल उनके परिवार, बल्कि सभी किटी कमेटी के सदस्यों को भी स्तब्ध कर दिया। जो लोग एक दिन पहले लकी ड्रॉ की उम्मीद में होटल गए थे, वे अब सौरव और मोना की मौत की खबर से सदमे में थे।

सौरव और मोना की मौत के बाद, सौरव की दुकान के बाहर ग्राहकों की भीड़ लग गई। ये वे लोग थे, जिन्होंने “हर घर सोना” स्कीम में हिस्सा लिया था और अब वे अपने जमा पैसे या सोने की मांग कर रहे थे। लेकिन सौरव की दुकान और उनके घर पर ताला लगा हुआ था। इस ताले को देखकर सभी के चेहरों पर निराशा छा जाती थी, क्योंकि वे जानते थे कि अब शायद उनके पैसे या सोने का मिलना मुश्किल हो जाएगा। हर आने-जाने वाले के हाथ में एक कार्ड था, जिस पर लिखा था “श्री साईं ज्वेलर्स हर घर सोना स्कीम।” यह कार्ड अब उनके लिए केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि एक उम्मीद की किरण बन गया था, जिसे वे शायद कभी पूरा होते नहीं देख पाएंगे।

सौरव ने अपनी मौत से पहले एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के आखिरी पलों की दुखद गाथा लिखी थी। इस पत्र में सौरव ने खुलासा किया कि वे कर्ज के भारी बोझ तले दबे हुए थे। “हर घर सोना” स्कीम में उन्होंने कई लोगों से पैसा लिया था और अब उन्हें उन लोगों को सोना लौटाना था। इसके लिए सौरव ने सहारनपुर के ही एक बड़े कारोबारी से 7 करोड़ रुपये का सोना बुक किया था। लेकिन, उनके साथ धोखा हो गया। वह कारोबारी का बेटा 5 करोड़ रुपये लेकर दुबई भाग गया था। सौरव ने उस पैसे को वापस पाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे नाकाम रहे।

यहां तक कि सौरव के ऊपर पहले से ही 3 करोड़ का लोन था, जो उन्होंने अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए लिया था। जब सौरव ने देखा कि उनके पास किसी भी तरह से अपने ग्राहकों का सोना लौटाने का साधन नहीं बचा, तो उन्होंने आत्महत्या का कठोर कदम उठाया। कर्जदारों का दबाव और सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता ने उन्हें इस हद तक तोड़ दिया कि उन्होंने अपनी और अपनी पत्नी की जिंदगी समाप्त कर दी।

सौरव ने अपनी संपत्ति को अपने छोटे-छोटे बच्चों के नाम कर दिया था और अपनी पत्नी मोना के साथ हरिद्वार चले गए थे। वहां, उन्होंने रात के अंधेरे में गंगा नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। पुलिस ने सौरव की लाश को बरामद कर लिया है, लेकिन अभी तक मोना की लाश नहीं मिली है। यह घटना उनके बच्चों के लिए भी एक ऐसी यादगार बन गई, जिसे वे जीवन भर नहीं भुला पाएंगे।

सौरव के पड़ोसियों और जान-पहचान वालों का कहना है कि वह एक नेकदिल इंसान थे। वे हमेशा समाज की भलाई के कामों में आगे रहते थे। गरीब लड़कियों की शादी करानी हो, बेसहारा बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम करना हो या बूढ़े और बीमारों के लिए मुफ्त दवाइयों की व्यवस्था करनी हो, सौरव इन सभी सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहते थे। लेकिन, कर्ज के भारी बोझ और सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता ने उन्हें अंदर से इतना कमजोर कर दिया कि उन्होंने इस कठोर कदम को उठाने का फैसला किया।

इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि कर्ज का बोझ कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे संभालने के लिए संयम, धैर्य और सही दिशा में प्रयास आवश्यक होते हैं। सौरव बब्बर की दुखद कहानी उन सभी के लिए एक चेतावनी है, जो कर्ज में डूबे हुए हैं और इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं देख पा रहे हैं।

इस कहानी के माध्यम से, यह संदेश भी मिलता है कि हमें अपनी समस्याओं का समाधान शांतिपूर्वक ढूंढना चाहिए और किसी भी स्थिति में हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। जीवन में समस्याएं आती रहती हैं, लेकिन उनका समाधान भी होता है। सौरव की तरह आत्महत्या करने का निर्णय न केवल खुद के लिए, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी हानिकारक है। हमें इस कहानी से सबक लेना चाहिए और अपनी जिंदगी में आने वाली हर कठिनाई का सामना साहस और धैर्य के साथ करना चाहिए।

सौरव बब्बर और उनकी पत्नी मोना की दुखद मौत ने न केवल सहारनपुर को, बल्कि पूरे समाज को एक बड़ा संदेश दिया है। यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वास्तव में हम अपनी समस्याओं से भागकर उनका समाधान पा सकते हैं, या फिर हमें उनका सामना करना चाहिए। सौरव बब्बर की कहानी एक चेतावनी है, एक सीख है, और सबसे बढ़कर, यह एक ऐसी दास्तान है, जो हमें जिंदगी के हर पहलू को गहराई से समझने के लिए प्रेरित करती है।

श्रीमान् धन्यः स जनो यः कर्तव्यम् न लुप्यते।
धैर्यं धृत्वा स्वधर्मेण, जीवनं रक्षितुं सदा॥

वह व्यक्ति धन्य है जो अपने कर्तव्य को नहीं भूलता। धैर्य धारण कर, अपने धर्म के अनुसार जीवन को हमेशा सुरक्षित रखने का प्रयास करता है।  यह श्लोक उस व्यक्ति की ओर इशारा करता है जो अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाते हुए जीवन की कठिनाइयों का सामना धैर्यपूर्वक करता है। इस संदर्भ में, सौरव बब्बर की त्रासदी हमें यह सिखाती है कि कठिन समय में भी हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए और सही मार्ग पर चलते हुए अपनी समस्याओं का समाधान खोजना चाहिए।