न्याय व्यवस्था को बदल कर रख देगा -भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023 

संसद के शीतकालीन सत्र में हाल ही में एक महत्वपूर्ण विधेयक, ‘भारतीय न्याय संहिता विधेयक’ पारित किया गया, जिसका उद्देश्य 1860 में अधिनियमित और 1862 में लागू हुई भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) को प्रतिस्थापित करना है। इस विधेयक के माध्यम से भारतीय आपराधिक कानून में कई महत्वपूर्ण और समकालीन बदलाव किए गए हैं।

Indian Penal Code, जिसे थॉमस बेबिंगटन मैकाले ने तैयार किया था, भारत की आधिकारिक आपराधिक संहिता है और यह अपराधों को परिभाषित करती है और उनसे संबंधित दंड निर्धारित करती है। हालांकि, समय के साथ इसमें कई संशोधन किए गए हैं, फिर भी इसे आधुनिक भारतीय समाज की जरूरतों के अनुरूप बनाने की आवश्यकता महसूस की गई।

‘भारतीय न्याय संहिता विधेयक’ में किए गए प्रमुख बदलावों में आतंकवाद की परिभाषा का विस्तार, महिलाओं के विरुद्ध क्रूर व्यवहार, न्यायिक कार्यवाही से संबंधित मामलों की गोपनीयता, छोटे संगठित अपराधों की अधिक सटीक परिभाषा, और मॉब लिंचिंग जैसे घृणित अपराधों को हत्या की एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता देना शामिल है। इन सभी बदलावों का उद्देश्य कानून व्यवस्था को सरल और मजबूत करना है।

विधेयक में आतंकवाद की परिभाषा को गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम की धारा 15 के साथ संरेखित किया गया है। इसके अलावा, महिलाओं के विरुद्ध क्रूर व्यवहार के लिए एक अलग प्रावधान शामिल किया गया है जिसमें 3 वर्ष तक की जेल की सजा का प्रावधान है। न्यायिक कार्यवाही से संबंधित किसी भी मामले को बिना अनुमति के मुद्रित या प्रकाशित करने पर 2 वर्ष की जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

इस विधेयक के माध्यम से छोटे संगठित अपराधों की अधिक सटीक परिभाषा दी गई है, जिसमें चोरी, स्नैचिंग, धोखाधड़ी, टिकटों की अनधिकृत बिक्री, अनधिकृत सट्टेबाजी या जुआ, सार्वजनिक परीक्षा प्रश्न पत्रों को बेचना या इसी तरह का कोई अन्य आपराधिक कृत्य शामिल है। मॉब लिंचिंग को पहली बार मूल विधेयक में हत्या की एक अलग श्रेणी माना गया है, और इसमें अब हत्या के समान सजा का प्रावधान किया गया है।

इन सभी प्रस्तावित सुधारों की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि औपनिवेशिक काल के पुराने कानून आधुनिक भारतीय समाज के साथ संरेख नहीं हैं। इस विधेयक के माध्यम से भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक प्रभावी, समकालीन और न्यायपूर्ण बनाने की कोशिश की गई है। इस विधेयक के पारित होने से भारतीय न्याय प्रणाली में एक नई दिशा और गति प्रदान की जाएगी, जिससे नागरिकों को अधिक सुरक्षा और न्याय मिल सकेगा।

“धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।”

अर्थ– धर्म से रहित व्यक्ति पशुओं के समान होते हैं। यह श्लोक ‘भारतीय न्याय संहिता विधेयक’ के संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक है। यह विधेयक भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में आवश्यक सुधार और नवीनीकरण का प्रतीक है। श्लोक का अर्थ है कि जो लोग धर्म या न्याय के मार्ग से विचलित होते हैं, वे मानवीय गरिमा से नीचे गिर जाते हैं। इसी तरह, एक समाज जो न्याय और धर्म के सिद्धांतों पर आधारित नहीं होता, वह अराजकता और अन्याय की ओर अग्रसर होता है।

‘भारतीय न्याय संहिता विधेयक’ के माध्यम से, सरकार ने आपराधिक कानूनों को अधिक प्रभावी, समकालीन और न्यायपूर्ण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। यह विधेयक न केवल अपराधों की परिभाषा और दंड को अद्यतन करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्याय प्रणाली आधुनिक भारत की जरूरतों के अनुरूप हो। इस प्रकार, यह श्लोक और विधेयक दोनों ही न्याय और धर्म के महत्व को रेखांकित करते हैं और एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की दिशा में अग्रसर होते हैं।

यह भी जानें –

आपराधिक न्याय प्रणाली क्या है?

आपराधिक न्याय प्रणाली एक संगठित प्रक्रिया है जो कानूनी ढांचे के अंतर्गत अपराधों की जांच, अभियोजन, और दंड निर्धारण को संभालती है। इसमें पुलिस, न्यायालय, और सुधारात्मक संस्थान शामिल होते हैं। भारत में, यह प्रणाली ब्रिटिश राज के दौरान विकसित हुई और समय के साथ इसमें कई सुधार हुए हैं।

संगठित अपराध क्या है?

संगठित अपराध वह अपराध होता है जो संगठित समूहों द्वारा योजनाबद्ध और समन्वित तरीके से किया जाता है। इसमें चोरी, धोखाधड़ी, तस्करी, और अन्य आपराधिक गतिविधियां शामिल होती हैं। भारतीय न्याय संहिता विधेयक में इन अपराधों की अधिक सटीक परिभाषा और दंड का प्रावधान है।

औपनिवेशिक कानून क्या है?

औपनिवेशिक कानून वे कानून होते हैं जो ब्रिटिश राज के दौरान भारत में लागू किए गए थे। इनमें भारतीय दंड संहिता, भारतीय दीवानी संहिता, और अन्य कई कानून शामिल हैं। ये कानून उस समय की शासन व्यवस्था और समाज की जरूरतों के अनुसार बनाए गए थे।

आधुनिकीकरण क्या है?

आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें पुरानी प्रणालियों, विचारों, और तकनीकों को नवीनतम और अधिक प्रभावी तरीकों से बदला जाता है। यह समाज, शिक्षा, तकनीकी, और कानूनी प्रणालियों में सुधार और नवाचार को शामिल करता है। ‘भारतीय न्याय संहिता विधेयक’ भारतीय कानूनी प्रणाली में आधुनिकीकरण का एक उदाहरण है।

मॉब लिंचिंग क्या है?

मॉब लिंचिंग, जिसे हिंदी में ‘भीड़ द्वारा हत्या’ कहा जाता है, एक गंभीर सामाजिक अपराध है जहां एक भीड़ बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के किसी व्यक्ति या समूह को सजा देने के लिए हिंसा का सहारा लेती है। यह घटना अक्सर अफवाहों, धार्मिक या जातीय तनावों, या सामाजिक असंतोष के कारण होती है। मॉब लिंचिंग के मामले में, पीड़ित को अक्सर बेरहमी से पीटा जाता है और कई बार तो मौत के घाट उतार दिया जाता है। यह न केवल व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह समाज में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर भी प्रश्न उठाता है।