असाइलम पाने की राहें मुश्किल?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गिरती छवि के कारण भारतीय नागरिकों के लिए असाइलम (Asylum) पाना अत्यंत कठिन हो गया है। प्रशासनिक और सामाजिक बाधाओं के कारण सफलता दर बेहद कम हो गई है, और पेंडेंसी बढ़ती जा रही है।

असाइलम पाने की राहें मुश्किल?

भारत में विदेश जाकर बसने का सपना एक ऐसा सपना है जो लाखों युवाओं की आंखों में बसा हुआ है। खासकर पंजाब, हरियाणा और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में यह प्रवृत्ति अत्यधिक देखी जाती है। यहाँ के लोग यूके (UK), यूएस (US), कनाडा (Canada) और अन्य विकसित देशों में बसने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। इस प्रवृत्ति ने कई परिवारों में एक अनोखी परंपरा को जन्म दिया है, जिसमें उनके घरों पर हवाई जहाज का चित्र बनवाया जाता है, यह दर्शाने के लिए कि उनका बेटा या बेटी विदेश में जाकर बस चुका है। लेकिन इस सपने के पीछे की सच्चाई बेहद कठिन और जटिल है, खासकर जब बात असाइलम (Asylum) लेने की आती है।

असाइलम के प्रति भारतीय युवाओं का जुनून

आजकल, हर भारतीय युवा के मन में विदेश जाकर बसने की एक गहरी लालसा है। यह लालसा उनके जीवन के हर पहलू में दिखाई देती है। शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, हर क्षेत्र में वे विदेश में बेहतर अवसरों की तलाश में जुटे रहते हैं। लेकिन क्या यह सपना उतना आसान है जितना इसे समझा जाता है? हाल की रिपोर्ट्स और आंकड़े बताते हैं कि असाइलम की प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है, बल्कि यह बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण हो चुकी है।

असाइलम की चुनौतियों का सामना

असाइलम की प्रक्रिया बेहद जटिल और लंबे समय तक चलने वाली होती है। जब कोई भारतीय नागरिक यूएस या यूके में असाइलम के लिए आवेदन करता है, तो उसे कई कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। इन प्रक्रियाओं में से एक प्रमुख समस्या पेंडेंसी है। वर्तमान में, भारतीय नागरिकों के असाइलम मामलों में इतनी अधिक पेंडेंसी हो चुकी है कि उन्हें कई महीनों या सालों तक अपने मामले का निर्णय आने का इंतजार करना पड़ता है।

यह पेंडेंसी केवल एक प्रशासनिक समस्या नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी एक मानसिक और भावनात्मक संकट है जो अपने देश में उत्पीड़न, हिंसा या अन्य गंभीर परिस्थितियों के कारण असाइलम की मांग करते हैं। पाकिस्तान, ईरान, बांग्लादेश, और चीन जैसे देशों के नागरिकों के मामले में, असाइलम मिलने की संभावना अधिक होती है। लेकिन भारतीय नागरिकों को इस प्रक्रिया में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

भारतीय नागरिकों के असाइलम के लिए संघर्ष

2019 से 2023 के बीच, केवल 300 भारतीयों को असाइलम मिला। यह संख्या बेहद चौंकाने वाली है, खासकर तब जब इसे अन्य देशों के नागरिकों के आंकड़ों से तुलना की जाती है। असाइलम मिलने की यह कमी केवल प्रशासनिक बाधाओं के कारण नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ गहरे सामाजिक और राजनीतिक कारण भी हैं।

भारत की वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक स्थिति, जिसमें मणिपुर की हिंसा, पश्चिम बंगाल में डॉक्टर की रेप की घटना, और किसानों के आंदोलन जैसी घटनाएं शामिल हैं, भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल कर रही हैं। इन घटनाओं के कारण भारत की छवि एक अस्थिर और हिंसक देश के रूप में उभर रही है, जिसका सीधा असर असाइलम की प्रक्रिया पर पड़ता है।

असाइलम की प्रक्रिया: एक विस्तृत विवेचना

असाइलम प्राप्त करने के लिए, आवेदक को कई कठिन और जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। सबसे पहले, उसे अपने देश के भीतर उत्पीड़न या हिंसा के प्रमाण प्रस्तुत करने होते हैं। इसके बाद, उसे असाइलम देने वाले देश की स्थानीय ट्राइबल्स और प्रशासनिक एजेंसियों से अनुमोदन लेना पड़ता है।

ट्राइबल्स का अनुमोदन असाइलम प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। अगर ट्राइबल्स अस्वीकार कर देती हैं, तो आवेदक का मामला खारिज हो जाता है। इसके बाद, आवेदक को जुडिशियस रिव्यू का सहारा लेना पड़ता है, जो एक लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में भी सफलता दर बेहद कम होती है।

2019 से 2023 के बीच, भारतीय नागरिकों के असाइलम मामलों में सफलता दर मात्र 15% से भी कम रही है। इस दौरान, असफल असाइलम एप्लीकेशन्स का बैकलॉग बढ़ता गया, जिससे और अधिक आवेदकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

ब्रेक्जिट के बाद असाइलम के अवसर

ब्रेक्जिट, जिसने 2016 में ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया, ने भारतीय नागरिकों के लिए असाइलम प्रक्रिया को थोड़ी हद तक आसान बना दिया था। लेकिन इसके बावजूद, वर्तमान में असाइलम की सफलता दर फिर से घट गई है।

ब्रेक्जिट के बाद, यूके में असाइलम के लिए आवेदन करने वाले भारतीयों की संख्या में थोड़ी वृद्धि हुई थी। लेकिन भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि में आई गिरावट ने इन अवसरों को सीमित कर दिया है। पंजाब, हरियाणा और अन्य राज्यों के लोग अभी भी बड़ी संख्या में न्यूजीलैंड, यूके, और अन्य देशों में बसने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी सफलता दर बहुत कम है।

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अंतरराष्ट्रीय छवि और असाइलम की सफलता का संबंध

भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि का असाइलम की प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ता है। मणिपुर की हिंसा, पश्चिम बंगाल में डॉक्टर की रेप की घटना, और किसानों के आंदोलन जैसी घटनाएं, भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचा रही हैं।

यह घटनाएं केवल सामाजिक और राजनीतिक समस्याएं नहीं हैं, बल्कि ये भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी धूमिल करती हैं। जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि अस्थिर और हिंसक देश के रूप में बनती है, तो इसका सीधा असर असाइलम की प्रक्रिया पर पड़ता है। असाइलम देने वाले देश, जैसे कि यूएस और यूके, भारत के नागरिकों के आवेदन को गंभीरता से नहीं लेते हैं, और उन्हें असफलता का सामना करना पड़ता है।

असाइलम की प्रक्रिया में भविष्य की संभावनाएं

भारत के युवाओं के लिए असाइलम की प्रक्रिया में सफलता पाने के लिए एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय छवि का निर्माण करना जरूरी है। इसके लिए, घरेलू स्तर पर होने वाली सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं को नियंत्रित करना होगा, ताकि भारत की छवि एक स्थिर और शांतिपूर्ण देश के रूप में उभर सके।

असाइलम की प्रक्रिया में सफलता पाने के लिए, भारतीय नागरिकों को अपनी कानूनी और प्रशासनिक समझ को भी बढ़ाना होगा। उन्हें असाइलम की प्रक्रिया के हर चरण को अच्छी तरह समझना होगा, और इसके लिए उन्हें पेशेवर कानूनी सहायता लेनी होगी।

निष्कर्ष

असाइलम की प्रक्रिया में सफलता पाने के लिए भारतीय नागरिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह प्रक्रिया बेहद जटिल, लंबी और चुनौतीपूर्ण है, और इसमें सफलता की संभावना बेहद कम होती है।

लेकिन इसके बावजूद, अगर भारतीय नागरिक अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधारने के लिए घरेलू स्तर पर सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को नियंत्रित करते हैं, तो असाइलम की प्रक्रिया में सफलता पाने की संभावना बढ़ सकती है। इसके लिए, उन्हें कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की गहरी समझ विकसित करनी होगी, और इसके साथ ही उन्हें एक मजबूत और स्थिर अंतरराष्ट्रीय छवि का निर्माण करना होगा।

अन्तर्देशीय संघर्षाः सदा शोचनीयाः,
छविः पतनं कुरुते सर्वसामाजिकम्।
विदेशे यदाऽपि प्रार्थ्यते सुकीर्तिम्,
संपूर्णजीवनं तदा हीनं भवति॥

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संघर्ष सदैव चिंता का विषय होते हैं, क्योंकि यह समाज की समग्र छवि को नुकसान पहुँचाते हैं। जब विदेश में भी मान-सम्मान की प्रार्थना की जाती है, तब सम्पूर्ण जीवन कमजोर और कठिन हो जाता है। यह श्लोक उस कठिनाई को दर्शाता है जो एक देश की अंतरराष्ट्रीय छवि के पतन के कारण उसके नागरिकों को असाइलम जैसी प्रक्रियाओं में झेलनी पड़ती है। भारत में हो रही हिंसा और सामाजिक अशांति की घटनाएं अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल कर रही हैं, जिससे भारतीय नागरिकों को विदेश में असाइलम पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।