कैसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने रचा इतिहास?

कैसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने रचा इतिहास और बना डाला भारत का पहला महान साम्राज्य!
कैसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने रचा इतिहास

मगध का उदय और मौर्य साम्राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह वह काल था जब भारत का पहला बड़ा साम्राज्य मगध से उभरा और मौर्य वंश ने इसे एक महान साम्राज्य के रूप में स्थापित किया। मगध का क्षेत्र आधुनिक बिहार राज्य के पटना, गया, नालंदा और शाहबाद जिलों को कवर करता था, और इसकी प्रारंभिक राजधानी राजगृह थी, जो बाद में पाटलिपुत्र बन गई।

मगध का राजनीतिक इतिहास

मगध का राजनीतिक इतिहास अनेक उतार-चढ़ावों से भरा है। पहले महत्वपूर्ण शासक बिम्बिसार ने कोसल की राजकुमारी से विवाह किया और काशी का कुछ भाग दहेज में प्राप्त किया। इसके बाद उन्होंने अंग पर विजय प्राप्त की और वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी से विवाह कर मगध की कूटनीतिक शक्ति को और बढ़ाया। बिम्बिसार की हत्या उनके बेटे अजातशत्रु ने की, जिन्होंने मगध की शक्ति को और अधिक सशक्त बनाया। अजातशत्रु ने काशी पर अपना नियंत्रण स्थापित किया और वज्जि पर विजय प्राप्त की।

शिशुनाग वंश ने मगध में शासन किया और अवंती की शक्ति को नष्ट कर दिया। इसके बाद नंद वंश का उदय हुआ, जिसे भारत का पहला साम्राज्य निर्माता भी कहा जाता है। महापद्मनंद, जो नंद वंश के संस्थापक थे, ने उत्तरी भारत की सभी शासकीय वंशों का सफाया कर दिया। नंद वंश के अंतिम शासक धनानंद के कठोर शासन और अत्यधिक कर नीतियों ने उन्हें अलोकप्रिय बना दिया, जिससे चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता हासिल करने का अवसर मिला।

सिकंदर का आक्रमण और प्रभाव

मगध के उदय के समय एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना हुई, सिकंदर का आक्रमण। सिकंदर के नेतृत्व में ग्रीक सेना ने ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया और एशिया माइनर तथा इराक को भी जीत लिया। इसके बाद सिकंदर ने भारत की ओर रुख किया, क्योंकि उन्होंने भारत की समृद्धि के किस्से सुने थे। हालांकि, सिकंदर की सेना मगध की मजबूत सेना के सामने आने से हिचकिचाई और अंततः वापस लौट गई।

सिकंदर के आक्रमण ने प्राचीन यूरोप और भारत को पहली बार निकट संपर्क में लाया। इससे भारत और ग्रीस के बीच चार नए भूमि और समुद्री मार्ग खुले, जिससे व्यापार के नए अवसर पैदा हुए। सिकंदर के द्वारा स्थापित शहरों में ग्रीक लोग बसे और इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला। इस आक्रमण ने मौर्य साम्राज्य के विस्तार का मार्ग भी प्रशस्त किया।

चंद्रगुप्त मौर्य का उदय

चंद्रगुप्त मौर्य का उदय भी अत्यंत रोचक कहानी है। उनका पालन-पोषण एक साधारण परिवार में हुआ था। चाणक्य ने चंद्रगुप्त की नेतृत्व क्षमता को पहचानकर उन्हें प्रशिक्षित किया। चंद्रगुप्त ने चाणक्य की मदद से अपनी सेना तैयार की और उत्तर पश्चिमी भारत के क्षेत्रों को जीता। उन्होंने नंद शासक धनानंद को हराकर 321 ईसा पूर्व में मगध का सिंहासन प्राप्त किया।

चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सेना को मजबूत किया और सेल्यूकस निकेटर के साथ शांति समझौता किया, जिसके तहत उन्हें अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध के पश्चिमी क्षेत्रों का नियंत्रण मिला। उन्होंने अपने साम्राज्य को पश्चिमी भारत और दक्षिण के कुछ हिस्सों तक फैलाया। अंत में, उन्होंने अपने पुत्र बिंदुसार के पक्ष में राजगद्दी छोड़ दी और श्रवणबेलगोला में अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए।

मौर्य प्रशासन

मौर्य साम्राज्य का प्रशासन अत्यंत विकसित था। यह चार प्रांतों में विभाजित था, जिनकी केंद्रीय राजधानी पाटलिपुत्र थी। सेंट्रल अथॉरिटी यानी राजा के पास संपूर्ण शक्ति थी। वह मंत्रियों और अधिकारियों की नियुक्ति करता था। मंत्रिपरिषद के प्रमुख को मंत्री परिषद अध्यक्ष कहा जाता था, और बाकी सदस्यों को युवराज और अन्य पदों पर नियुक्त किया जाता था। इनकी संख्या 18 थी और ये लोग प्रशासनिक और न्यायिक कार्य करते थे।

मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था भी अच्छी तरह विकसित थी। कर प्रणाली में भूमि राजस्व, सिंचाई कर और टोल टैक्स शामिल थे। कौटिल्य का अर्थशास्त्र और मेगास्थनीज की इंडिका, मौर्य साम्राज्य के प्रशासन और आर्थिक स्थिति के महत्वपूर्ण स्रोत माने जाते हैं।

कौटिल्य का अर्थशास्त्र राज्य शिल्प और सार्वजनिक प्रशासन पर केंद्रित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसे संस्कृत में लिखा गया है। इसमें राज्य की सप्तांग सिद्धांत यानी राज्य के सात अंग बताए गए हैं, जैसे कि राजा, मित्र, दंड (सेना), कोष (खजाना), दुर्ग (किला), जनपद (क्षेत्र) और अमात्य (मंत्री)।

मेगास्थनीज की इंडिका मौर्य काल के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत है। मेगास्थनीज के अनुसार, पाटलिपुत्र एक खाई से घिरा हुआ शहर था और चंद्रगुप्त मौर्य का महल लकड़ी का बना था। हालांकि, उन्होंने भारत में दासों के न होने की बात कही है, जो संभवतः पश्चिमी दुनिया की तुलना में भारत में दासों की बेहतर स्थिति को दर्शाता है।

निष्कर्ष

मगध का उदय और मौर्य साम्राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के अद्वितीय घटनाक्रम हैं। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी नेतृत्व क्षमता से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया और अपने प्रशासनिक कौशल से इसे संचालित किया। उनका साम्राज्य सिकंदर महान के साम्राज्य से किसी भी प्रकार से कम नहीं था। उनके बाद बिंदुसार ने साम्राज्य का विस्तार जारी रखा। मौर्य साम्राज्य के इस गौरवशाली इतिहास को अगली पीढ़ी में सम्राट अशोक ने आगे बढ़ाया, जिनके बारे में हम विस्तार से चर्चा करेंगे।

धर्मेण च राज्यं नयेन च शासनं,पराक्रमेण च विक्रमस्य विस्तारः।
प्रजासुखे प्रजापालकस्य सन्तोषः,तस्मात् चन्द्रगुप्तो विभवाय सम्यक्॥

धर्म से राज्य का संचालन, नीतियों से शासन, पराक्रम से साम्राज्य का विस्तार, और प्रजा के सुख में शासक का संतोष निहित होता है। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य को समृद्धि और वैभव की ओर अग्रसर किया। यह श्लोक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल को दर्शाता है, जहां उन्होंने धर्म, नीति और पराक्रम के माध्यम से एक सुदृढ़ और समृद्ध साम्राज्य की स्थापना की।