Kisan: करोड़ों कमा रहे कच्छ के किसान!

गुजरात के कच्छ जिले के किसान रासायनिक (chemical) खेती छोड़कर अब प्राकृतिक और नई तकनीकों को अपना रहे हैं, जिससे उन्हें काफी लाभ मिल रहा है। इन किसानों के इस प्रयास से कृषि के क्षेत्र में एक नई क्रांति देखने को मिल रही है। कच्छ के भचाऊ में रहने वाले रतीलाल सेठिया एक ऐसे ही किसान हैं जो पहले मूंगफली, कपास, जीरा और सब्जियों की रासायनिक खेती करते थे। लेकिन जब उन्हें रसायन के हानिकारक प्रभाKisan: करोड़ों कमा रहे कच्छ के किसान!वों के बारे में पता चला, तो उन्होंने 2009 में ऑर्गेनिक (organic) खेती करनी शुरू की। इसके अंतर्गत उन्होंने सुभाष पालेकर नेचुरल फार्मिंग (natural farming) की पद्धति और बहु फसली प्रणाली को अपनाया जिसे जंगल मॉडल (jungle model) भी कहा जाता है। इस प्रणाली को अपनाने के बाद उनकी किस्मत ही बदल गई।

उन्होंने 2017 में खजूर की ऑर्गेनिक खेती भी शुरू की और आज वह अपनी खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं। यह जंगल मॉडल पूरा बोला जाता है। आप देख रहे हैं, यह खजूर का बाग है जो 2017 से लगाया गया है। इसके बीच में अमरूद भी है, आम भी लगाया है, केला भी है। तो यह पूरा जंगल मॉडल है। हम इसको फूड फॉरेस्ट्री (food forestry) भी कहते हैं। इसे एटीएम (ATM) भी कहा जाता है क्योंकि खजूर तो साल में एक बार ही आती है। यदि कभी बारिश आ जाती है या कुछ भी बाधा होती है, तो किसान का इनकम (income) रुक जाता है और उसे साल भर इंतजार करना पड़ता है। लेकिन खजूर का सीजन खत्म होने के बाद उन्हें अमरूद, आम, केले, पपीते और सब्जियों से आय होती है। यह पूरी प्रक्रिया नेचरल फार्मिंग के पांच पिलरों का पालन करके विकसित की गई है। साल भर में वे 12 से 15 लाख रुपये की आय प्राप्त कर रहे हैं।

रतीलाल ने अपने साथी हितेश वोरा के साथ मिलकर ऑर्गेनिक खजूर का एक सफल ब्रांड बनाया है, जो उनकी उपज की मार्केटिंग में मदद करता है। ये दोनों मिलकर फार्म टू फिंगर (farm to finger) कांसेप्ट के तहत अपने ताजे फलों को सीधे 500 परिवारों को सप्लाई करते हैं। यदि वे यह प्रणाली नहीं अपनाते, तो उनकी फसल को होलसेल वाले खरीदते और रिटेल में बेचते, जहां कीमत में काफी वृद्धि हो जाती है। लेकिन इस कांसेप्ट के माध्यम से, उन्हें सही दाम में सही प्रोडक्ट और डायरेक्ट फार्म टू फिंगर की सुविधा मिलती है, जिससे ग्राहक को सही कीमत पर उत्पाद मिलता है।

कच्छ के खेतों में बढ़ती इन नई तकनीकों का एक और उदाहरण हरेश ठक्कर का खेत है, जहां बड़े पैमाने पर ड्रैगन फ्रूट्स का उत्पादन किया जा रहा है। इसे ड्रैगन फ्रूट्स का स्वर्ग कहा जाता है। हरेश ठक्कर के अनुसार, उन्हें इसकी खेती करने की प्रेरणा 2012 में वियतनाम की यात्रा से मिली और उन्होंने इजराइल में ड्रिप इरिगेशन (drip irrigation) तकनीक को सीखा। साथ ही, उन्होंने जंगल मॉडल जैसी नई तकनीक को भी अपनाया और उन्हें सरकार का भी समर्थन मिला, जो उनके लिए एक गेम चेंजर (game changer) साबित हुआ।

जब सरकार ड्रिप इरिगेशन में 75% सब्सिडी (subsidy) देती है और ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए तीन लाख से पांच लाख रुपये प्रति हेक्टर (hectare) सब्सिडी मिलती है, तो यह किसानों के लिए एक बड़ी सहायता है। जब फल पैकिंग के लिए मंडी (market) में भेजा जाता है, तो सरकार पैकिंग के लिए भी सब्सिडी प्रदान करती है। एक वरिष्ठ बागवानी अधिकारी के अनुसार, कच्छ में लगभग 59,000 हेक्टेयर में फलों की खेती की जा रही है और यहां अपार संभावनाएं हैं। उनके मुताबिक, सरकार उन किसानों का समर्थन करने के लिए प्रयासरत है जो सस्टेनेबल (sustainable) प्रैक्टिस और इन तकनीकों को अपनाते हैं।

किसान अपने आप को अपग्रेड करने के लिए अलग-अलग रिसर्च इंस्टिट्यूट (research institute) में जाते हैं, जहां से खेती सीखते हैं और नई टेक्नोलॉजी (technology) के बारे में जानते हैं और उसे अपनाते हैं। कुछ किसान यहां ऐसे भी मिलेंगे जो विदेश में जाकर वहां की खेती सीखकर यहां के फार्मिंग को सुधारते हैं। इन सब चीजों को मिलाकर टेक्नोलॉजी एडॉप्शन, लार्ज स्केल फार्मिंग और जियोग्राफिक डायवर्सिटी (geographic diversity) के कारण यहां का हॉर्टिकल्चर (horticulture) काफी उन्नति कर रहा है।

खेती में इन नई तकनीकों को अपनाकर जिस तरह से कच्छ के किसान आगे बढ़ रहे हैं, उससे गुजरात में कृषि का भविष्य भी काफी उज्जवल दिख रहा है। ये किसान न केवल फसलें उगाकर बेहतर कमाई कर रहे हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण भी कर रहे हैं।

इस प्रकार, कच्छ जिले के किसानों ने नई तकनीकों और प्राचीन ज्ञान का समावेश करके एक क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की है। यह न केवल उन्हें आर्थिक लाभ दे रहा है बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षित कर रहा है। यह सभी प्रयास किसानों को न केवल वित्तीय स्वतंत्रता दिला रहे हैं बल्कि उनके जीवन को भी समृद्ध बना रहे हैं।

उपजायते कृषिः साध्वी पालेकरसमीक्षितैः।
प्रकृत्या सह जीवत्वं धरित्री फलमञ्जसा॥

जब हम पालेकर द्वारा सुझाई गई प्राकृतिक पद्धतियों को अपनाते हैं, तब हमारी खेती फलदायी होती है। यह प्रकृति के साथ मिलकर धरती को सहजता से फलित करती है। यह श्लोक लेख में वर्णित किसानों के प्रयासों को दर्शाता है, जो प्राकृतिक खेती की पद्धतियों को अपनाकर सफल हो रहे हैं। वे रासायनिक खेती से हटकर जैविक खेती को अपना रहे हैं और इसके सकारात्मक परिणाम देख रहे हैं। लेख में बताया गया है कि कैसे कच्छ के किसान पर्यावरण के अनुकूल तरीके अपनाकर अपनी कृषि को समृद्ध बना रहे हैं, जिससे न केवल उनकी आय बढ़ रही है, बल्कि भूमि भी सुरक्षित और उपजाऊ हो रही है।