ध्यान करते समय ये दिखे तो हो जाए सावधान!

इस लेख में ध्यान के माध्यम से आत्मिक जागृति और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग का वर्णन किया गया है। माँ काली और माँ दुर्गा के रूपों के माध्यम से अंतरात्मा की यात्रा और उनके महत्व को उजागर किया गया है। यह दर्शाता है कि कैसे ध्यान व्यक्ति को भौतिक माया से परे ले जा सकता है।

ध्यान और आत्मिक जागृति
ध्यान और आत्मिक जागृति

ध्यान की दुनिया में प्रवेश करते समय, व्यक्ति अक्सर अनेक प्रकार के विचारों और दृश्यों से गुजरता है, जैसे कि विविध प्रकार के जानवर, युद्ध के उपकरण, और अन्य विचलित करने वाली छवियाँ। ऐसे में लगता है कि कोई हमारे आस-पास है, हमें खींच रहा है, या हमारे बगल में खड़ा है। ये सभी अनुभव, विचारों की अधिकता, इच्छाओं में वृद्धि और भौतिक लालसा के कारण होते हैं। इस प्रकार की घटनाओं से गुजरने वाले अनेक लोग ध्यान करना छोड़ देते हैं, जबकि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि अगर आपके साथ ऐसा हो तो समझें कि यह एक विशेष संकेत है।

ब्रह्मांड की बात करें तो दिन-रात, सूरज-चाँद, और पृथ्वी के उत्तर-दक्षिण जैसे तत्वों में एक संतुलन होता है। इसी तरह मानव जीवन में भी शिव और शक्ति के रूप में पॉजिटिव और नेगेटिव ऊर्जा का संतुलन होता है। जन्म के समय ब्रह्मांड इस शक्ति को हमारे मूलाधार चक्र में स्थापित करता है, जो हमें पृथ्वी से जोड़ता है और भौतिक जीवन को जीने में सहायता करता है।

कुछ व्यक्ति जो इस शक्ति के सही उपयोग और उसे ऊपर की ओर ले जाने की महत्वपूर्णता को समझते हैं वो ध्यान का अभ्यास शुरू करते हैं। उनका उद्देश्य होता है कि शक्ति को ऊपर ले जाकर शिव से मिलाकर कुंडलिनी जागरण करें, जिससे वे मोक्ष प्राप्त कर सकें। हालांकि ध्यान की इस यात्रा में विभिन्न तरह की चुनौतियाँ और परेशानियाँ भी सामने आती हैं, जो उस माया से बचने के लिए थी, जिससे मुक्ति पाने के लिए ध्यान शुरू किया गया था।

यहाँ तक कि मां काली और रक्तबीज की कहानी भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है। रक्तबीज, एक ऐसा दानव जिसके खून से और अधिक रक्तबीज पैदा हो जाते थे, केवल मां काली ही उसे पराजित कर सकीं। इस कहानी के माध्यम से हमें बताया जाता है कि अंधकार को पराजित करने के लिए हमें उस शक्ति और दृढ़ता की आवश्यकता है जो मां काली से प्राप्त होती है।

मां काली और रक्तबीज की युद्ध कथा हमें बताती है कि किस तरह मां काली ने अपने अद्वितीय प्रयासों से रक्तबीज को पराजित किया। जब उन्होंने देखा कि रक्तबीज के खून से और अधिक रक्तबीज पैदा हो रहे हैं, तो उन्होंने उन सभी के खून को पी लिया और इस प्रकार रक्तबीज के अस्तित्व को समाप्त कर दिया। हालांकि इस प्रक्रिया में मां काली ने एक उग्र रूप धारण कर लिया, जिसे नियंत्रित करने के लिए भगवान शिव को अंततः हस्तक्षेप करना पड़ा।

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारी इच्छाएं जो रक्तबीज का प्रतीक हैं, अगर उन्हें सही तरीके से नहीं संभाला जाए तो वे बढ़ती ही जाती हैं। पहली इच्छा पैसा कमाने की होती है जिससे अन्य इच्छाएँ जैसे कि नौकरी, छुट्टियाँ, और अच्छे भोजन की इच्छा उत्पन्न होती हैं। इस प्रकार इच्छाओं का एक चक्र बनता है जो कभी खत्म नहीं होता।

जब हम ध्यान करते हैं तो हमारी इनर शक्ति जो मूलाधार चक्र में बैठी होती है, मां काली का स्वरूप ले लेती है और हमारी सभी इच्छाओं और डरों का सामना करती है। इस प्रक्रिया में कई बार यौन इच्छाएं और वासनाएं भी बढ़ सकती हैं क्योंकि मां काली जब मूलाधार चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र में प्रवेश करती हैं तो वह चक्र हमारी सेक्सुअलिटी से संबंधित होता है।

ध्यान के माध्यम से हम सीखते हैं कि कैसे अपनी इच्छाओं को परे रखते हुए हम अपने आंतरिक स्वयं से जुड़ सकते हैं और एक उच्च आत्मिक स्तर तक पहुँच सकते हैं। यह यात्रा हमें अपने आप में गहराई तक ले जाती है, जहाँ हम अपने आंतरिक डरों और इच्छाओं का सामना करते हैं और सीखते हैं कि कैसे जब ध्यान की प्रक्रिया में विभिन्न चक्र सक्रिय होते हैं व्यक्ति अपनी आंखों के सामने विभिन्न इमेजेस और असामान्य आकृतियों को देख सकता है। ये असामान्य आकृतियाँ विभिन्न देवियों के रूपों को प्रेरित करती हैं, जैसे कि महाकाली के विभिन्न स्वरूप जिनमें गुह्य काली भी शामिल हैं। ये सभी रूप और आकृतियाँ व्यक्ति के भीतरी अनुभवों और चित्रणों से उत्पन्न होती हैं। जब ध्यान की गहराई में उतरते हैं तो सेक्सुअल ऊर्जा और अन्य तामसिक गुण धीरे-धीरे शांत होने लगते हैं और व्यक्ति का ईगो कंट्रोल में आ जाता है।

मां काली अब दुर्गा का रूप ले लेती हैं, और यह परिवर्तन दर्शाता है कि जैसे-जैसे ध्यान में ऊर्जा ऊपर की ओर बढ़ती है तामसिक नेचर को कंट्रोल में लाया जाता है। यह प्रक्रिया ध्यान के दौरान आंतरिक युद्ध को दर्शाती है, जहां महाकाली और अन्य महाविद्या देवियां अलग-अलग चित्रों और अनुभवों के माध्यम से व्यक्ति के तामसिक गुणों से लड़ती हैं। जैसे ही यह आंतरिक युद्ध समाप्त होता है और ध्यानी इसे पार कर लेता है वह अधिक शांति और प्रकाश की ओर बढ़ता है। विभिन्न चक्रों के सक्रिय होने से ध्यान में अनुभव किए जाने वाले तनाव, भय, और उत्तेजना धीरे-धीरे शांति, प्रकाश, और समझ में परिवर्तित होते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति अपने आंतरिक संघर्षों और माया से ऊपर उठने में सक्षम होता है जिससे अध्यात्मिक विकास और अंतरात्मा की गहराई से जुड़ाव होता है।

इस यात्रा में महाकाली न केवल एक चुनौती का प्रतीक है बल्कि एक संरक्षक के रूप में भी कार्य करती है, जो ध्यानी को आंतरिक शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह प्रक्रिया दिखाती है कि कैसे ध्यान और अध्यात्मिक साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतरी डरों और आसक्तियों को पार कर सकता है और अंततः एक अधिक शांत, संतुलित, और प्रेरित जीवन की ओर बढ़ सकता है।

“ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना। अन्ये सांख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे॥”

कुछ लोग ध्यान द्वारा, आत्मा को आत्मा से देखते हैं; अन्य लोग सांख्य योग और कर्म योग के द्वारा। यह श्लोक ध्यान और आत्मिक जागृति के मार्ग पर चलने वालों के लिए प्रेरणा देता है, जैसा कि इस लेख में वर्णित है। ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की यात्रा को दर्शाया गया है।