जानें कैसे अघोरा ने पाए अपने पापों से छुटकारा!

अघोरी अघोरा ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करके और योगिनियों की साधना से अपने ब्रह्म हत्या के पापों से मुक्ति पाई और अंततः शिवधाम को प्राप्त किया।

जानें कैसे अघोरा ने पाए अपने पापों से छुटकारा!

बहुत समय पहले की बात है, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच, असम राज्य में एक प्राचीन और रहस्यमय मंदिर स्थित था। यह मंदिर उन दिनों साधकों और तांत्रिकों का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। यहां आने वाले साधक घोर तपस्या और तांत्रिक क्रियाओं का अभ्यास करते थे। इसी मंदिर में एक अघोरी, जिसका नाम सुमाली था, साधना में लीन था। सुमाली ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा इस साधना में लगा दिया था। उसके शरीर पर लिपटी हुई चिता की भस्म और उसकी लाल आंखें उसे और भी भयावह बनाती थीं। इस अघोरी का लक्ष्य केवल साधना की सिद्धि तक सीमित नहीं था, बल्कि वह प्रतिशोध की आग में जल रहा था। वह महा अघोरी अघोरा बनने के लिए अपनी साधना में जुटा था।

अघोरा, जिसे लोग अब इस नाम से जानते थे, का वास्तविक नाम सुमाली था। सुमाली का जन्म उत्तर प्रदेश के काशी (बनारस) के निकट स्थित एक छोटे से गांव में हुआ था। वह एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ था, जहां उसके पिता गांव के मठ में पूजा-पाठ किया करते थे। उसके पिता मठ में सम्मानित व्यक्ति थे, और मठाधीश बनने की दौड़ में वे अग्रणी थे। लेकिन इसी मठ में एक अन्य ब्राह्मण था, जो सुमाली के पिता से उम्र में छोटा और महत्वाकांक्षी था। उसने मठ के मठाधीश बनने के लिए षड्यंत्र रचा और सुमाली के पिता पर चोरी का आरोप लगा दिया। यह आरोप सुमाली के पिता के लिए अपमानजनक था, और उन्होंने इसे सहन नहीं कर पाए। इस आरोप के बाद, सुमाली के पिता बीमार रहने लगे और अंततः उनका देहांत हो गया। इस घटना ने सुमाली के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया।

सुमाली केवल 14-15 वर्ष का था जब उसके पिता की मृत्यु हुई। यह वह उम्र होती है जब किशोरों के मन में विद्रोह की भावना प्रबल होती है। सुमाली के मन में अपने पिता के अपमान और मौत का बदला लेने की तीव्र इच्छा जागी। लेकिन वह जानता था कि वह साधारण तरीकों से अपने पिता के अपमान का बदला नहीं ले सकता। उसने तंत्र विद्या का सहारा लेने का निर्णय लिया। उसे विश्वास था कि तांत्रिक विद्या के माध्यम से वह अपने पिता का सम्मान वापस पा सकता है और उस ब्राह्मण से बदला ले सकता है जिसने उनके पिता पर झूठा आरोप लगाया था।

सुमाली ने अपने गांव और घर को छोड़ दिया और तंत्र विद्या की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बनारस की ओर चल पड़ा। बनारस तब तांत्रिकों और साधकों का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। वहां पहुंचकर उसने कई गुरुओं से तंत्र विद्या सीखी, लेकिन उसकी जिज्ञासा और तांत्रिक विद्या में महारत हासिल करने की चाह उसे असम की ओर ले गई। असम की पहाड़ियों में स्थित कामरु कामख्या मंदिर में उसने अघोर विद्या की दीक्षा ली। इस विद्या को सीखने में उसे कई वर्ष लग गए, और वह एक सिद्ध अघोरी बन गया।

15 वर्षों की कठोर साधना और तांत्रिक क्रियाओं के अभ्यास के बाद, सुमाली अब महा अघोरी अघोरा के नाम से प्रसिद्ध हो चुका था। उसका नाम अब लोगों के बीच भय और रहस्य का पर्याय बन गया था। लेकिन इतने वर्षों के बाद जब वह अपने गांव वापस लौटा, तो उसने देखा कि सब कुछ बदल चुका है। न तो वह ब्राह्मण बचा था जिससे वह बदला लेना चाहता था और न ही उसके पिता रहे थे जिनके लिए वह यह सब कर रहा था। उसके घर-परिवार का अस्तित्व समाप्त हो चुका था। इस बदले हुए माहौल ने अघोरा को और भी निराश कर दिया, लेकिन उसकी महत्वाकांक्षा और बढ़ गई। अब उसका एक ही उद्देश्य था – अमीर बनना और सम्मान पाना।

अघोरा ने सोचा कि जब तक वह अमीर नहीं हो जाता, तब तक वह अपने पिता के सम्मान को वापस नहीं पा सकेगा। उसने तंत्र विद्या का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। एक सच्चा तांत्रिक आम लोगों पर तंत्र का प्रयोग नहीं करता, लेकिन अघोरा ने अपनी संपन्नता के लिए इस नियम को तोड़ दिया। उसने छोटे-मोटे तांत्रिक चमत्कारों का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। वह लोगों की समस्याओं का तांत्रिक उपाय करके उनका समाधान करता और इसके बदले में धन कमाने लगा। लेकिन उसे संतोष नहीं हुआ। उसे और अधिक धन की लालसा थी।

एक दिन, एक व्यक्ति उसके पास आया और उसने अघोरा से कहा कि अगर वह उसके 12 दुश्मनों को मार देगा, तो वह उसे सोने से भरा हुआ एक कलश देगा। अघोरा के मन में अब सही और गलत का कोई भेद नहीं बचा था। उसे लगा कि 12 लोगों की हत्याएं करने में क्या दिक्कत है, और अगर इसके बदले में उसे सोने का कलश मिल जाए तो उसका जीवन सफल हो जाएगा। अघोरा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। उस व्यक्ति ने 12 लोगों के कपड़े और अन्य सामान अघोरा को दे दिए, जिन्हें वह मारना चाहता था। अघोरा ने अपने प्रेतों का उपयोग करके एक-एक अमावस्या की रात को चार-चार लोगों की हत्या करवाई। जब सभी 12 दुश्मनों की हत्या हो गई, तो वह व्यक्ति सोने का कलश लेकर अघोरा के पास आया और उसे दे दिया।

अब अघोरा के पास इतनी संपत्ति थी कि वह कुछ भी कर सकता था। उसने सोचा कि अब उसे विवाह करके अपना घर बसा लेना चाहिए। उसने अपने प्रेतों को आदेश दिया कि वे उसके लिए कोई सुंदर लड़की ढूंढें, लेकिन जब प्रेतों ने बताया कि आसपास ऐसी कोई लड़की नहीं है जो उसके योग्य हो, तो उसने अप्सरा सिद्धि की साधना करने का निर्णय लिया। वह जानता था कि अप्सरा को प्रसन्न करके वह उससे विवाह कर सकता है। उसने 21 दिनों की कठिन साधना की, और अंततः अप्सरा उसके सामने प्रकट हुई। अप्सरा ने उससे पूछा कि वह क्या चाहता है, तो अघोरा ने कहा कि वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है।

अप्सरा इस पर हंस पड़ी और उसने कहा कि तुम जैसे पापी व्यक्ति के साथ मैं विवाह नहीं कर सकती। उसने बताया कि अघोरा के ऊपर 12 ब्रह्म हत्याओं का श्राप है, और अगर वह उससे विवाह करती है, तो उसे भी इस श्राप को भुगतना पड़ेगा। अप्सरा ने अपनी शक्ति से अघोरा के शरीर में 12 कोढ़ के घाव दिखाए और कहा कि यह वही घाव हैं जो तुम्हारे पापों का परिणाम हैं। अघोरा ने यह सुनकर पूछा कि इन घावों को कैसे समाप्त किया जा सकता है। अप्सरा ने उसे बताया कि वह तब तक इन पापों से मुक्त नहीं हो सकता जब तक कि वह द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा नहीं करता और वहां के यक्षणियों की साधना करके उन्हें प्रसन्न नहीं करता।

अघोरा ने अप्सरा की बातों को गंभीरता से लिया और उसने द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा शुरू की। उसका पहला पड़ाव सोमनाथ ज्योतिर्लिंग था, जो गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में स्थित है। सोमनाथ मंदिर के महंत ने अघोरा को सोमनाथ की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि प्रजापति दक्ष की 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था, लेकिन चंद्रमा उनमें से केवल रोहिणी को ही अधिक प्रेम करता था। इस पर अन्य कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से शिकायत की, और दक्ष ने चंद्रमा को शाप दिया कि उसका क्षय हो जाएगा। इस शाप के प्रभाव से चंद्रमा धीरे-धीरे नष्ट होने लगा और पृथ्वी पर विपत्तियों का दौर शुरू हो गया। देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की, और ब्रह्मा जी ने चंद्रमा को प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान शिव की आराधना करने का निर्देश दिया। चंद्रमा ने महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें शाप से मुक्ति मिली। इसी कारण इस स्थान का नाम सोमनाथ पड़ा।

अघोरा ने इस कथा को ध्यान से सुना और सोमनाथ के दर्शन किए। उसने एकांत में सोमनाथ योगिनी की साधना शुरू की और कुछ ही समय में योगिनी ने उसे दर्शन दिए। योगिनी ने अघोरा के शरीर के उस अंग को छुआ जहां का पाप सबसे अधिक था, और उस पाप को समाप्त कर दिया। इस प्रकार अघोरा की एक ब्रह्म हत्या का पाप समाप्त हो गया। उसके बाद वह दूसरे ज्योतिर्लिंग की ओर बढ़ गया।

दूसरा ज्योतिर्लिंग श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग था, जो आंध्र प्रदेश के श्री शैल पर्वत पर स्थित है। यहां के मठाधीश ने अघोरा को बताया कि महाभारत, शिव पुराण और पद्म पुराण में इस स्थान का विस्तृत वर्णन किया गया है। एक बार भगवान शिव के दोनों पुत्र श्री गणेश और श्री कार

्तिकेय विवाह के लिए आपस में झगड़ने लगे। भगवान शंकर और माता पार्वती ने निर्णय लिया कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आएगा, उसका विवाह पहले होगा। श्री कार्तिकेय ने मयूर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा शुरू की, लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धि का उपयोग किया और अपने माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा की बराबरी की। जब कार्तिकेय पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे, तो उन्होंने देखा कि गणेश जी का विवाह हो चुका था। यह देखकर कार्तिकेय बहुत क्रोधित हुए और वे श्री शैल पर्वत पर चले गए। माता पार्वती और भगवान शंकर उन्हें मनाने के लिए वहां पहुंचे और वहीं पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।

अघोरा ने इस कथा को सुनने के बाद मल्लिकार्जुन योगिनी की साधना शुरू की। योगिनी की कृपा से अघोरा का दूसरा पाप भी समाप्त हो गया, और वह ब्राह्मण जो उसकी प्रेत साधना के कारण मारा गया था, मुक्त होकर शिवलोक चला गया। इसके बाद अघोरा ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा शुरू की, जो मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग शिप्रा नदी के किनारे अवंतिका पुरी में स्थित है, जिसे उज्जैनी भी कहा जाता है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में उज्जैनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे, जो परम शिव भक्त थे। एक दिन, शिखर नाम का एक पांच वर्षीय बालक अपनी मां के साथ वहां से गुजर रहा था। उसने राजा के द्वारा शिव जी की पूजा देखी और उसे देखकर उसकी भी पूजा करने की इच्छा जागी। उसने रास्ते से एक पत्थर का टुकड़ा उठाया और उसे शिवलिंग के रूप में स्थापित करके पूजा शुरू कर दी। जब उसकी मां ने उसे भोजन के लिए बुलाया, तो उसने पूजा छोड़ने से इनकार कर दिया। उसकी मां ने गुस्से में आकर पत्थर को फेंक दिया, जिससे बालक शिखर बहुत दुखी हुआ और जोर-जोर से रोने लगा।

बालक की भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने उसके सामने एक विशाल मंदिर प्रकट किया, जिसमें सोने और रत्नों से बना एक ज्योतिर्लिंग स्थापित था। इस घटना के बाद, राजा चंद्रसेन और उज्जैनी के सभी लोग बालक की भक्ति से प्रभावित हुए और भगवान शिव की स्तुति करने लगे। इस घटना के बाद, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा उज्जैनी में फैल गई।

अघोरा ने महाकालेश्वर की इस कथा को सुना और फिर महाकाल योगिनी की साधना शुरू की। कुछ ही समय में महाकाल योगिनी ने अघोरा को दर्शन दिए और उसके तीसरे पाप को भी समाप्त कर दिया। अब अघोरा अपने चौथे ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर की ओर बढ़ा। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। नर्मदा नदी की दो धाराओं के बीच बने एक द्वीप पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसे मानधाता पर्वत भी कहा जाता है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, विंध्याचल पर्वत ने भगवान शिव की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे वरदान प्राप्त किया। भगवान शिव ने विंध्याचल के अनुरोध पर अपने लिंग को दो भागों में विभाजित किया, जिन्हें ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के नाम से जाना जाता है। अघोरा ने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा सुनी और फिर ओंकारेश्वर योगिनी की साधना शुरू की। कुछ समय बाद योगिनी ने उसे दर्शन दिए और चौथे पाप से मुक्त कर दिया।

इसके बाद अघोरा ने केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा शुरू की, जो हिमालय के केदार नामक चोटी पर स्थित है। केदारनाथ की महिमा शास्त्रों और पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित है। कहा जाता है कि भगवान नर और नारायण ने यहां तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे लोक कल्याण के लिए यहीं बस जाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां स्थापित हो गए।

अघोरा ने केदारनाथ की कथा को सुना और फिर केदार योगिनी की साधना की। योगिनी ने उसे दर्शन दिए और पांचवे पाप से मुक्त कर दिया। इसके बाद अघोरा ने भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा की, जो पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर सह्याद्री की पहाड़ियों में स्थित है।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में भीम नाम का एक महाबली राक्षस था, जो रावण के भाई कुंभकर्ण का पुत्र था। उसने भगवान शिव की तपस्या की और उनसे वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के बल पर उसने देवताओं और भगवान विष्णु को भी पराजित कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे उसके अंदर पाप की वृत्ति बढ़ने लगी, और उसने शिव भक्त राजा सुदीन को मार डाला। राजा के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने भीम राक्षस को जलाकर राख कर दिया। इस घटना के बाद, भगवान शिव ने भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास किया।

अघोरा ने भीमाशंकर योगिनी की साधना की और छठे पाप से मुक्त हो गया। इसके बाद वह काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा पर निकला, जो काशी (वाराणसी) में स्थित है। काशी नगरी को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है, और यहां आकर सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।

काशी विश्वनाथ की कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि वे पर्वत पर रहते हैं, जो उनके पिता का घर है, और उन्हें ससुराल में रहना अच्छा नहीं लगता। इस पर भगवान शिव ने त्रिशूल के ऊपर काशी नगरी की स्थापना की और माता पार्वती के साथ यहां निवास करने लगे। अघोरा ने काशी विश्व योगिनी की साधना की और एक और पाप से मुक्त हो गया।

इसके बाद अघोरा ने त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा की, जो महाराष्ट्र के नासिक से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, गौतम ऋषि पर ब्राह्मणों ने गौहत्या का झूठा आरोप लगाया था। गौतम ऋषि ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे इस श्राप को हटाने का आग्रह किया। भगवान शिव ने उन्हें बताया कि उन्होंने यह पाप नहीं किया है और उनके आग्रह पर त्र्यंबकेश्वर के रूप में यहां निवास करने लगे।

अघोरा ने त्र्यंबकेश्वर योगिनी की साधना की, लेकिन साधना में हुई त्रुटि के कारण उसका पूरा शरीर जलने लगा। योगिनी ने उसे इस नए रोग से मुक्त करने के लिए वैद्यनाथ धाम जाने की सलाह दी। वैद्यनाथ धाम झारखंड के दुमका जिले में स्थित है। अघोरा ने वहां जाकर वैद्यनाथ योगिनी की साधना की और अपने शरीर के रोग से मुक्त हो गया। अब वह ब्रह्म हत्या के आठ पापों से मुक्त हो चुका था।

नौवे ज्योतिर्लिंग की यात्रा के लिए अघोरा नागेश्वर धाम पहुंचा, जो गुजरात में द्वारिका पुरी से कुछ मील की दूरी पर स्थित है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, एक वैश्या सुप्रिया, जो भगवान शिव की अनन्य भक्त थी, को दारुक नामक राक्षस ने बंदी बना लिया था। सुप्रिया ने भगवान शिव की पूजा जारी रखी, और जब दारुक ने उसे मारने का प्रयास किया, तो भगवान शिव प्रकट हुए और दारुक का वध कर दिया।

अघोरा ने नागेश्वर योगिनी की साधना की और अपने नौवे पाप से मुक्त हो गया। इसके बाद वह रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की यात्रा पर निकला, जो तमिलनाडु में स्थित है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने के बाद यहां भगवान शिव की पूजा की थी। अघोरा ने रामेश्वरी योगिनी की साधना की और दसवें पाप से मुक्त हो गया।

अंतिम ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर था, जो महाराष्ट्र के दौलताबाद के निकट स्थित है। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा के अनुसार, सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण की पत्नी घुशमा भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। उन्होंने 100 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा की और भगवान शिव से संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान शिव की कृपा से उन्हें संतान प्राप्त हुई, लेकिन उनकी बड़ी बहन सुदेवा ने ईर्ष्या के कारण उनके पुत्र की हत्या कर दी। घुशमा ने भगवान शिव की आराधना जारी रखी, और अंत में भगवान शिव ने उनके पुत्र को पुनर्जीवित किया और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां निवास किया।

अघोरा ने घुश्मेश्वर योगिनी की साधना की और अपने अंतिम पाप से भी मुक्त हो गया। लेकिन जब वह साधना कर रहा था, तब एक विशाल बैल वहां प्रकट हुआ

और उसे मारने के लिए दौड़ा। अघोरा ने पहले भागने की सोची, लेकिन फिर उसने निर्णय लिया कि अगर भगवान शिव की यही इच्छा है, तो वह यहां से नहीं हटेगा। बैल ने उसे बार-बार टक्कर मारी, लेकिन अघोरा ने अपनी साधना नहीं छोड़ी। अंततः बैल ने मानव रूप धारण किया और अघोरा को बताया कि वह भगवान शिव का सेवक है और उसे उसके पापों से मुक्त करने आया है।

इस प्रकार, अघोरा को उसके सभी पापों से मुक्ति मिली और वह शिवलोक जाने के लिए तैयार हो गया। उसने अपने जीवन को भगवान शिव के प्रति समर्पित कर दिया और तंत्र का त्याग करके एक परम शिवभक्त बन गया। अघोरा की इस यात्रा ने उसे ब्रह्म हत्या के पापों से मुक्त कर दिया और वह अंततः शिवधाम को प्राप्त हुआ।

इस कथा का श्रवण करने से भगवान शिव की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। अगर आप भी इस कथा को सुनकर प्रभावित हुए हैं, तो इसे दूसरों के साथ साझा करें ताकि उन्हें भी इस पुण्य का लाभ मिल सके। भगवान शिव की महिमा अनंत है, और उनकी कथा का श्रवण करना हमारे जीवन को पवित्र बनाता है।

शिवाय नमः सर्वपापविनाशकाय।
द्वादश ज्योतिर्लिंगपूजायै नमो नमः॥

शिव जी को नमस्कार है, जो सभी पापों का विनाश करते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा को नमस्कार है। यह श्लोक उस यात्रा का सार है जिसमें अघोरी अघोरा ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पूजा करके अपने ब्रह्म हत्या के पापों से मुक्ति पाई। भगवान शिव की महिमा और उनकी पूजा ने उसे मोक्ष प्राप्त करने में सहायता की।