चंद्रास्वामी : तांत्रिक का रहस्यमय सफर
चंद्रास्वामी, एक रहस्यमय तांत्रिक, ने भारतीय राजनीति में अपनी गहरी पकड़ बनाई। विवादों से घिरे, उन्होंने बड़े नेताओं को प्रभावित किया, लेकिन उनका जीवन अंततः विवादों में डूब गया।
चंद्रास्वामी का जीवन एक रहस्यमय और दिलचस्प गाथा है, जो भारतीय राजनीति और सामाजिक जीवन के अनगिनत पहलुओं को उजागर करता है। उनका जन्म 1948 में गुजरात के एक जैन परिवार में हुआ था। उनके पिता धर्मचंद गांधी जैन एक साहूकार थे, जो चंद्रास्वामी के जन्म से पहले ही गुजरात छोड़कर राजस्थान के बहरोड़ में बस गए थे। हालांकि, चंद्रास्वामी का परिवार बाद में हैदराबाद चला गया, जहां उनका बचपन बीता।
चंद्रास्वामी का शुरुआती जीवन सामान्य रूप से बीता, लेकिन उनकी रुचि तंत्र-मंत्र की ओर तेजी से बढ़ी। उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा को छोड़कर तंत्र साधना का मार्ग चुना। बचपन से ही वे तंत्र-मंत्र की ओर आकर्षित थे और उन्होंने इस दिशा में अपनी यात्रा की शुरुआत की। उनके गुरु उपाध्याय अमर मुनि और तंत्र के विद्वान महामहोपाध्याय गोपीनाथ कविराज थे, जिन्होंने उन्हें इस मार्ग पर निर्देशित किया।
चंद्रास्वामी ने बिहार के जंगलों में तपस्या की और चार साल की कठिन साधना के बाद, उन्होंने दावा किया कि उन्हें अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त हुईं। हालांकि, उनके दावों को लेकर हमेशा संदेह बना रहा। उनके समर्थकों का मानना था कि वे एक सिद्ध तांत्रिक थे, जबकि उनके विरोधी उन्हें एक धूर्त और चालाक व्यक्ति मानते थे, जो केवल दिखावे के सहारे लोगों को प्रभावित करते थे।
1971 में, जब पी.वी. नरसिंहा राव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब चंद्रास्वामी ने भारतीय राजनीति में अपनी पहचान बनानी शुरू की। राव के साथ उनकी गहरी मित्रता थी, और वे अक्सर उनके साथ देखे जाते थे। नरसिंहा राव ने चंद्रास्वामी को अपना आध्यात्मिक गुरु और सलाहकार मान लिया था। राव के सत्ता में आने के बाद, चंद्रास्वामी का प्रभाव और बढ़ गया और वे दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए।
चंद्रास्वामी की प्रसिद्धि केवल भारत तक सीमित नहीं रही। उन्होंने विदेशों में भी अपनी धाक जमाई। 1975 में, चंद्रास्वामी ने ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी की पहली महिला अध्यक्ष मार्गरेट थैचर से मुलाकात की। यह मुलाकात बहुत ही खास और अनोखी थी। चंद्रास्वामी ने थैचर के सामने कुछ ऐसा किया जिससे वे प्रभावित हो गईं। उन्होंने थैचर के मन में उठ रहे सवालों को बिना पढ़े ही बता दिया, जिससे थैचर चकित हो गईं। इस मुलाकात के दौरान, चंद्रास्वामी ने थैचर को प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की, जो बाद में सच साबित हुई। 1979 में थैचर ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं और उन्होंने 11 साल तक इस पद को संभाला।
चंद्रास्वामी के जीवन में ऐसे कई और किस्से हैं जो उनकी रहस्यमय शक्तियों और राजनीतिक पकड़ को दर्शाते हैं। उन्होंने दुनिया के कई ताकतवर नेताओं के साथ संबंध बनाए और अपनी तांत्रिक शक्तियों का प्रभाव जमाया। उनका जीवन विवादों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने समर्थकों और शिष्यों के बीच एक विशेष स्थान बनाए रखा।
उनके जीवन का एक और दिलचस्प पहलू यह था कि उन्होंने भारत में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर मध्यस्थता की। 1993 में, चंद्रास्वामी ने राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में सोम यज्ञ का आयोजन किया। इस आयोजन में दुनिया भर से हिंदू इकट्ठा हुए थे। चंद्रास्वामी के इस यज्ञ ने उन्हें हिंदू धार्मिक नेताओं के बीच एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। हालांकि, उनकी भूमिका विवादास्पद रही, लेकिन उनके समर्थकों ने हमेशा उन्हें एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु के रूप में देखा।
चंद्रास्वामी का जीवन कई विवादों से घिरा रहा। उन पर आरोप लगे कि वे दाऊद इब्राहिम जैसे अंडरवर्ल्ड डॉन के साथ मिलकर हथियारों की डील में शामिल थे। 1995 में, एक हिस्ट्रीशीटर बबलू श्रीवास्तव ने चंद्रास्वामी पर दाऊद इब्राहिम के साथ मिलकर हवाला के जरिए बड़ी रकम ट्रांसफर करने का आरोप लगाया। बबलू के अनुसार, चंद्रास्वामी ने गृह मंत्रालय में अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए इन मामलों को दबा दिया था।
चंद्रास्वामी पर सबसे गंभीर आरोप 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में शामिल होने का था। 1997 में, कांग्रेस ने जैन कमीशन के सामने यह आरोप लगाया कि चंद्रास्वामी ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने के लिए लिट्टे के आतंकियों को धन मुहैया कराया था। इस आरोप के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने चंद्रास्वामी के विदेश यात्रा पर रोक लगा दी। इस घटना के बाद से चंद्रास्वामी का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा।
चंद्रास्वामी का जीवन अंततः गुमनामी की ओर बढ़ गया। 2011 में, सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) के उल्लंघन का दोषी ठहराते हुए 9 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। इसके बाद से उनकी हालत और बिगड़ने लगी। उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 23 मई 2017 को नई दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई। उनके कुछ अनुयायियों का मानना था कि उन्हें अस्पताल में धीमा जहर दिया गया था, लेकिन इसकी कोई पुष्टि नहीं हो सकी।
चंद्रास्वामी का जीवन भारतीय राजनीति और समाज के कई पहलुओं को उजागर करता है। उन्होंने एक साधारण जैन परिवार से उठकर भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया, लेकिन उनके जीवन का अंत विवादों और गुमनामी में हुआ। उनका जीवन एक रहस्यमय तांत्रिक की कहानी है, जिसने अपने समय में कई ताकतवर लोगों को प्रभावित किया और भारतीय राजनीति और समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनके जीवन की यह कहानी आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी रहती है, और उनके जीवन के कई पहलू आज भी रहस्य बने हुए हैं।
कर्मणा जायते यशो, कर्मणा जायते कुलम्।
कर्मणा जायते स्वर्गं, कर्मणा जायते परम्॥
कर्म से ही यश की प्राप्ति होती है, कर्म से ही कुल की पहचान होती है। कर्म से ही स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। चंद्रास्वामी का जीवन उनके कर्मों के आधार पर बना और बिखरा। उनकी तांत्रिक शक्तियाँ और राजनीतिक संबंधों ने उन्हें यश दिलाया, लेकिन विवादों और आरोपों ने उनके जीवन को गुमनामी की ओर धकेल दिया। यह श्लोक उनके जीवन की इस यात्रा को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है।
Disclaimer: This article is for informational purposes only and reflects interpretations based on available sources. It does not claim to be exhaustive or definitive. The views expressed do not necessarily represent any official stance. Readers are encouraged to verify details independently and use their discretion. The content is not intended to defame or harm any individual or group. The author and publisher are not liable for actions taken based on this information.