UN में हारा ईरान और जीता इजराइल!
- फिलिस्तीन के संयुक्त राष्ट्र (UN) में पूर्ण सदस्यता प्राप्त करने का प्रयास विफल रहा, जिससे ईरान और फिलिस्तीन के लिए निराशा हुई।
- सुरक्षा परिषद की समिति ने फिलिस्तीनी प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया, जिससे ईरान और इजराइल के बीच तनाव बढ़ा।
- सऊदी अरब, यूएई, और जॉर्डन जैसे देशों ने इजराइल का समर्थन किया, जिससे तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ा।
संयुक्त राष्ट्र (UN) में फिलिस्तीन के पूर्ण सदस्य बनने के प्रयास के विषय में एक बार फिर से अड़चन आई है, जिसे ईरान के लिए भी एक बड़ा झटका माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति द्वारा फिलिस्तीनी प्राधिकरण के पूर्ण सदस्य बनने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अनुमोदन न दिए जाने के कारण यह प्रयास बाधित हुआ है। फिलिस्तीनी राज्य को इस प्रक्रिया के जरिए मान्यता मिलनी थी, जिसका फिलहाल केवल नॉन-मेंबर ऑब्जर्वर स्टेट के रूप में दर्जा है। इस प्रक्रिया को 193 सदस्य संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2012 में एक अनौपचारिक मान्यता दी थी, लेकिन पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद की मंजूरी आवश्यक है। इस मामले में इज़राइल का प्रमुख सहयोगी अमेरिका इसे रोकने की स्थिति में है।
सुरक्षा परिषद की समिति ने इस संदर्भ में दो बार बैठक की और अंततः यह निर्णय लिया कि वे फिलिस्तीनी आवेदन के समर्थन में सर्वसम्मति से सिफारिश नहीं कर सकते। यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब ईरान और इजराइल के बीच संघर्ष चरम पर है और इजराइल हमास के ठिकानों पर लगातार हमले कर रहा है। ये घटनाक्रम न केवल इजराइल और फिलिस्तीन के बीच के तनाव को दर्शाता है, बल्कि ईरान के साथ उनके बढ़ते संघर्ष को भी प्रकट करता है।
इस तनावपूर्ण माहौल में, सऊदी अरब, यूएई, और जॉर्डन जैसे देश इजराइल के समर्थन में खड़े हैं, जिससे तीसरे विश्व युद्ध के खतरे में वृद्धि होती है। ये देश इजराइल के विरोध में ईरान से उपजे विवाद के बीच में आने का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते। यह दर्शाता है कि क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति कैसे विभिन्न देशों के आपसी संबंधों और सामरिक नीतियों को प्रभावित करती है और कैसे यह सब अंततः वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
समर्यादा परिषद्यां या नाधिगच्छति विजयम्।
सा विज्ञानेन संयुक्ता सर्वत्र विनश्यति॥
जो परिषद में मर्यादा का पालन नहीं करता और विजय प्राप्त नहीं करता, वह ज्ञान के साथ युक्त होकर भी सब जगह हारता है। इस श्लोक का संबंध लेख से यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फिलिस्तीनी प्रस्ताव का न समर्थन मिलना और ईरान के लिए यह बड़ी निराशा दिखाता है कि कैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी विजय का अभाव होता है।