ओमान ने भारत को दिया बंदरगाह, चीन की बढ़ेगी टेंशन!

हिंद महासागर के रणनीतिक महत्व को देखते हुए भारत और ओमान के बीच हुए एक महत्वपूर्ण समझौते के बारे में चर्चा आवश्यक है। इस समझौते के तहत, ओमान ने भारत को अपने एक प्रमुख बंदरगाह का उपयोग करने की अनुमति दी है, जो हिंद महासागर में चीन की बढ़ती नौसेनिक उपस्थिति के मुकाबले में भारत के लिए एक रणनीतिक लाभ उपलब्ध कराता है। यह बंदरगाह, डुकम बंदरगाह के नाम से जाना जाता है, न केवल भौगोलिक रूप से रणनीतिक स्थान पर स्थित है बल्कि इसे पश्चिमी और दक्षिणी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की भूमिका को मजबूती प्रदान करने में मदद मिलेगी।

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डुकम बंदरगाह की महत्वपूर्णता को उसके भौगोलिक स्थान से भी समझा जा सकता है। यह बंदरगाह मुंबई से पश्चिम की ओर सीध में स्थित है, जिससे भारत को सऊदी अरब और उससे भी आगे के देशों तक अपना माल आसानी से पहुंचाने में सहूलियत होगी। इस बंदरगाह के माध्यम से भारतीय नौसेना अदन की खाड़ी और लाल सागर से सटे इलाकों में हुती विद्रोहियों के हमले को मिनटों में निपटा सकेगी, जो हाल के दिनों में हिंसा के कारण समुद्री व्यापार को प्रभावित कर रहे हैं।

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इस समझौते के अन्तर्गत भारत को ओमान में चार मिलिट्री बेस की उपलब्धता भी है, जिसमें तीन नौसैनिक अड्डे और एक एयर बेस शामिल है। इसके अलावा, भारत ने ओमान के रास अल हद में एक लिसनिंग सेंटर भी स्थापित किया है, जो रणनीतिक सूचना संग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ये सभी कदम न केवल हिंद महासागर में भारत की नौसेनिक उपस्थिति को मजबूत करेंगे बल्कि चीन की बढ़ती नौसेनिक गतिविधियों के मुकाबले में भारत को एक रणनीतिक लाभ भी प्रदान करेंगे।

“समुद्रगा महीयसी, बंधुभिः सह संयुता।
सागरेषु निवेशश्च, शक्तिम् आवर्धते नृणाम्॥”

समुद्र के माध्यम से विस्तृत भूमि, मित्र राष्ट्रों के साथ जुड़कर, समुद्रों में अपना स्थान बनाने से मनुष्यों की शक्ति बढ़ती है। यह श्लोक भारत और ओमान के बीच हुए समझौते को दर्शाता है, जिसमें भारत को हिंद महासागर में एक रणनीतिक बंदरगाह का उपयोग करने का अधिकार मिला है। यह समझौता दोनों देशों के बीच की मित्रता को प्रगाढ़ करता है और भारत की समुद्री शक्ति को बढ़ाता है।