चीन की अर्थव्यवस्था ढह रही है? जानिए कैसे भारत उठाएगा इसका लाभ!

चीन में आर्थिक मंदी और निवेशकों की वापसी से देश की आर्थिक स्थिरता पर संकट मंडरा रहा है। भारत के लिए यह अवसर है कि वह इन निवेशकों को आकर्षित करे।

चीन की अर्थव्यवस्था ढह रही है? जानिए कैसे भारत उठाएगा इसका लाभ!

चीन की आर्थिक स्थिति में आई मौजूदा गिरावट और इसके परिणामस्वरूप विदेशी निवेशकों द्वारा भारी मात्रा में पूंजी की वापसी एक चिंताजनक परिदृश्य प्रस्तुत करती है। आर्थिक मंदी की यह स्थिति वैश्विक बाजार में चीन की स्थिति को भी कमजोर कर रही है। हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष के दूसरे तिमाही में लगभग 15 बिलियन डॉलर की राशि चीन से बाहर निकाल ली है। यह एक ऐसा परिदृश्य है जो पहले कभी देखने को नहीं मिला था।

इस घटनाक्रम के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला और महत्वपूर्ण कारण है चीन की आर्थिक वृद्धि में आई गिरावट। चीन, जो कि पिछले तीन दशकों में एक बड़ी आर्थिक शक्ति बनकर उभरा था, अब धीमी गति से वृद्धि कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप विदेशी निवेशकों का विश्वास भी कमजोर हो रहा है। हर निवेशक की प्राथमिक चिंता यही होती है कि उसे अपने निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा। लेकिन चीन में मौजूदा आर्थिक स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए, यह आशंका बनी हुई है कि निवेशकों को अपेक्षित रिटर्न नहीं मिलेगा। इसी कारण से, विदेशी निवेशक अब चीन से अपना पैसा निकाल रहे हैं और इसे अन्य देशों में निवेश कर रहे हैं जहां उन्हें बेहतर रिटर्न की उम्मीद है।

चीन की रियल एस्टेट बाजार की स्थिति भी इन निवेशकों की चिंता का एक प्रमुख कारण है। रियल एस्टेट बाजार में आई गिरावट ने कई निवेशकों के मन में डर पैदा कर दिया है। उदाहरण के लिए, यदि किसी ने चीन में एक घर खरीदा है और उस घर की कीमत में अचानक गिरावट आ गई है, तो यह निवेशक के लिए एक बड़ी चिंता की बात है। चीन के कई बड़े शहरों में प्रॉपर्टी के दामों में बड़ी गिरावट आई है, जिसके कारण लोग अपने निवेश को सुरक्षित नहीं मान रहे हैं।

इसके साथ ही, चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते जिओपॉलिटिकल तनाव ने भी विदेशी निवेशकों के मन में नकारात्मकता पैदा की है। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध और अन्य राजनीतिक विवादों ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के बीच चीन को एक जोखिमपूर्ण बाजार के रूप में देखा जाने लगा है। इससे विदेशी निवेशक अपने निवेश को लेकर असमंजस में हैं और वे अन्य बाजारों में निवेश करने की सोच रहे हैं जहां राजनीतिक स्थिति स्थिर और अनुकूल हो।

ऑटोमोबाइल उद्योग की बात करें तो, यह भी चीन के आर्थिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कई विदेशी ऑटोमोबाइल कंपनियों ने चीन में अपनी फैक्ट्रियों को स्थापित किया था, यह सोचकर कि उन्हें वहां पर बड़े पैमाने पर मुनाफा मिलेगा। लेकिन वर्तमान में, वैश्विक बाजार में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की मांग तेजी से बढ़ रही है, और यह बदलाव पारंपरिक पेट्रोल और डीजल गाड़ियों के उत्पादन में लगे निवेशकों के लिए चिंता का कारण बन गया है। इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ते इस बदलाव ने कई विदेशी कार निर्माता कंपनियों को चीन से अपने निवेश को वापस लेने पर मजबूर कर दिया है।

चीन की सरकार और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने विदेशी निवेशकों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की कि चीन में निवेश करना अभी भी एक लाभदायक कदम हो सकता है। उन्होंने अमेरिका के दबाव के बावजूद विदेशी निवेशकों को चीन में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि, इन सभी प्रयासों के बावजूद, वे विदेशी निवेशकों को चीन में बने रहने के लिए मना नहीं सके। इसके विपरीत, कई विदेशी निवेशक चीन से अपने निवेश को हटाकर अन्य देशों की ओर रुख कर रहे हैं।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि केवल विदेशी निवेशक ही नहीं, बल्कि खुद चीन के नागरिक भी अब अपने पैसे को विदेशों में निवेश कर रहे हैं। 2023 की दूसरी तिमाही में, चीन से 39 बिलियन डॉलर की राशि विदेशी निवेश में लगी। यह राशि पिछले वर्ष की तुलना में 80% अधिक थी। इस साल की दूसरी तिमाही में, चीन के लोगों ने करीब 71 बिलियन डॉलर की राशि विदेशों में निवेश की। ये निवेश मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों, बैटरी फैक्ट्रियों और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों में हो रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि चीन अब निवेश के लिए एक आकर्षक बाजार नहीं रह गया है।

इस स्थिति में, भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर उभर सकता है। चीन से निकलने वाले इन निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित करने की कोशिश करना चाहिए। यदि भारत ऐसा कर पाता है, तो यह उसकी आर्थिक वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। भारत में विदेशी निवेश को आकर्षित करने की बड़ी संभावना है, खासकर उस समय जब चीन से निवेशक अपना धन निकाल रहे हैं। यदि भारत इन निवेशकों को आकर्षित करने में सफल होता है, तो इससे उसकी अर्थव्यवस्था को एक बड़ा प्रोत्साहन मिल सकता है।

चीन के पिछले तीन दशकों की आर्थिक वृद्धि को देखते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि भारत भी उसी तरह की वृद्धि हासिल करे ताकि वह अपनी बड़ी आबादी को एक बेहतर जीवन स्तर प्रदान कर सके। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी नीतियों में सुधार करे और एक ऐसा वातावरण तैयार करे जहां विदेशी निवेशक अपने धन को सुरक्षित और लाभदायक मानें। इसके लिए भारत को अपने बुनियादी ढांचे, व्यवसायिक माहौल, और राजनीतिक स्थिरता को और मजबूत करना होगा।

आखिर में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले समय में भारत इस स्थिति का कैसे लाभ उठाता है और क्या कदम उठाता है। चीन की आर्थिक स्थिति में आई इस गिरावट से सीख लेकर, भारत को अपनी आर्थिक नीतियों में सुधार करना चाहिए और एक ऐसे माहौल का निर्माण करना चाहिए जहां विदेशी निवेशक अपने धन को सुरक्षित और लाभदायक मानें। यदि भारत इस अवसर का सही तरीके से लाभ उठा पाता है, तो यह उसकी आर्थिक वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है।

शिथिलं न भवेद्योगे निवेशस्य विजृम्भणे।
विपत्तयः समायान्ति, यत्र न स्थिरता ध्रुवम्॥

जो निवेश स्थिर और सुदृढ़ न हो, उसमें विपत्तियाँ अवश्य आती हैं। जहाँ निवेश की स्थिरता नहीं होती, वहाँ संकट अवश्य आता है। इस श्लोक का अर्थ है कि निवेश तभी सुरक्षित होता है जब वह स्थिर और सुदृढ़ हो। यह श्लोक चीन की वर्तमान आर्थिक स्थिति पर लागू होता है, जहाँ विदेशी निवेशकों ने चीन से अपने निवेश को अस्थिरता और अनिश्चितता के कारण निकाल लिया है।