लेखक – सात्विक भारती via NCI
Bhojpuri Film और संगीत इंडस्ट्री ने बीते कुछ दशकों में जबरदस्त बदलाव देखा है, लेकिन इन बदलावों में एक कड़वी सच्चाई भी छिपी हुई है। कभी यह इंडस्ट्री अपनी संस्कृति, परंपराओं और लोकगीतों के लिए जानी जाती थी, लेकिन अब इसका स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। वर्तमान में भोजपुरी इंडस्ट्री को नग्नता, द्विअर्थी गीतों और सेक्सुअल कंटेंट (sexual content) के लिए ज्यादा पहचाना जाता है। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि यह बदलाव समाज पर गहरा असर डाल रहा है, खासकर युवा पीढ़ी पर। पहले भोजपुरी गानों में गांव की मिट्टी की महक हुआ करती थी, देशभक्ति के गीत होते थे, प्रकृति की सुंदरता का वर्णन किया जाता था। अब वही भोजपुरी गाने केवल अश्लीलता फैलाने का माध्यम बन गए हैं। इसमें बड़े-बड़े सुपरस्टार भी शामिल हैं, जो इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। भोजपुरी इंडस्ट्री 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अब सिर्फ वल्गर (vulgar) कंटेंट से भरा हुआ है।
पहले Bhojpuri Film इंडस्ट्री की पहचान उसकी साफ-सुथरी फिल्मों और गानों से होती थी। जैसे कि कभी इस इंडस्ट्री में माइग्रेशन (migration) को लेकर गाने बनाए जाते थे, जिनमें गांव छोड़कर शहर जाने वाले लोगों की पीड़ा को दिखाया जाता था। लोगों की भावनाओं को छू लेने वाले गीत होते थे, जिनमें मां-बाप के आशीर्वाद, प्रेम और संघर्ष की बातें होती थीं। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं। आज भोजपुरी गानों में सिर्फ द्विअर्थी संवाद, उत्तेजक डांस और अश्लीलता देखने को मिलती है। यह सिर्फ पुरुष दर्शकों के मनोरंजन के लिए बनाए जा रहे हैं, जिसमें महिलाओं की छवि को बेहद खराब तरीके से पेश किया जाता है। दुखद बात यह है कि भोजपुरी के कई बड़े कलाकार और गायक खुद इस अश्लीलता को बढ़ावा दे रहे हैं। रवि किशन, खेसारी लाल यादव, पवन सिंह, निरहुआ जैसे कलाकार, जो पहले अच्छे कंटेंट का हिस्सा थे, अब इन्हीं द्विअर्थी गानों और फिल्मों का हिस्सा बन चुके हैं।
बिहार और उत्तर प्रदेश में भोजपुरी को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। यह भाषा वहां के लोगों की पहचान थी, लेकिन अब यह भाषा मजाक बन चुकी है। जब कोई ‘भोजपुरी’ शब्द सुनता है तो उसके दिमाग में अश्लील गानों और सस्ते मनोरंजन की छवि बन जाती है। इससे भोजपुरी बोलने वालों की छवि भी खराब हुई है। मलयालम, तमिल, तेलुगु इंडस्ट्रीज को देखिए, वहां की फिल्में कंटेंट और क्वालिटी में लगातार बेहतर होती जा रही हैं, लेकिन भोजपुरी फिल्में लगातार नीचे गिरती जा रही हैं। मलयालम इंडस्ट्री शानदार कहानियों पर फिल्में बना रही है, वहीं भोजपुरी इंडस्ट्री सिर्फ अश्लीलता परोस रही है। यह सोचने वाली बात है कि आखिर भोजपुरी इंडस्ट्री इस हाल तक कैसे पहुंच गई।
एक और गंभीर समस्या है इस इंडस्ट्री में होने वाला शोषण (exploitation)। यहां काम करने वाली महिलाओं का जमकर शोषण होता है, लेकिन वे डर के कारण कुछ कह नहीं पातीं। कई अभिनेत्रियों ने अपने अनुभव साझा किए हैं कि किस तरह उन्हें इस इंडस्ट्री में काम करने के लिए समझौते करने पड़ते हैं। जो ऐसा नहीं करतीं, उन्हें काम नहीं मिलता। भोजपुरी इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच (casting couch) एक बड़ी समस्या बन चुका है, लेकिन इस पर कोई खुलकर बात नहीं करता। कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि यहां महिलाओं का मानसिक और शारीरिक शोषण होता है, लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं देता।
भोजपुरी गानों में अब ‘लहंगा उठा देबू’, ‘जीनस ढीला कर देबू’ जैसे गाने ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं। ये गाने समाज में गलत संदेश दे रहे हैं और खासकर युवाओं के दिमाग में गलत धारणाएं बैठा रहे हैं। आज के बच्चे छोटे-छोटे उम्र में ही इस तरह के गानों से प्रभावित हो रहे हैं, जो बेहद खतरनाक है। बिहार और यूपी में शादी-ब्याह के कार्यक्रमों में ऐसे गाने बजाना आम हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे इन गानों पर नाचते हैं और इसे सामान्य मानने लगते हैं। पहले जहां भोजपुरी गीतों में सामाजिक संदेश होते थे, अब वहां केवल वल्गरिटी (vulgarity) बची है।
यह स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि इस पर कोर्ट को भी दखल देना पड़ा है। हाल ही में एक PIL (जनहित याचिका) दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की गई, जिसमें भोजपुरी गानों में हो रहे महिला शोषण और अश्लीलता को रोकने की मांग की गई थी। हालांकि कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन बिहार पुलिस ने अश्लील गानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई शुरू कर दी। अब इस तरह के गानों पर बैन (ban) लगाने की मांग की जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बैन लगाना इस समस्या का समाधान है?
दरअसल, यह समस्या केवल भोजपुरी इंडस्ट्री की नहीं है। बॉलीवुड भी इसी राह पर चल पड़ा है। अनुराग कश्यप जैसे निर्देशकों ने खुद कहा है कि बॉलीवुड इस समय भयानक गिरावट पर है। पहले की फिल्मों में जहां मजबूत कहानी होती थी, वहीं अब फिल्मों में सिर्फ ग्लैमर और मसाला देखने को मिलता है। आज साउथ इंडस्ट्री लगातार बेहतर फिल्में बना रही है, लेकिन बॉलीवुड में वही घिसे-पिटे कंटेंट देखने को मिल रहे हैं। भोजपुरी इंडस्ट्री भी इसी राह पर चल रही है, लेकिन इसका प्रभाव और भी गंभीर है, क्योंकि यह छोटे शहरों और गांवों तक गहराई से जुड़ी हुई है।
मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है। पहले यह गाने केवल होली या शादी जैसे खास मौकों पर बजते थे, लेकिन अब यह 365 दिन इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। आज कोई भी बच्चा मोबाइल खोलकर आसानी से यह सब देख सकता है। सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म्स ने भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री को और बड़ा बना दिया है। आज भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री से 5 गुना बड़ा मार्केट भोजपुरी म्यूजिक का हो गया है, और इसका सबसे बड़ा कारण है सेक्सुअल कंटेंट।
यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इसका समाधान क्या है? क्या हमें इस इंडस्ट्री को पूरी तरह बैन कर देना चाहिए? बैन कोई समाधान नहीं हो सकता, लेकिन इस पर सख्ती जरूरी है। बड़े कलाकारों और निर्माताओं को चाहिए कि वे जिम्मेदारी से काम करें। उन्हें समझना होगा कि पैसे कमाने के लिए समाज को गंदगी में नहीं धकेला जा सकता। सरकार को भी सख्त कदम उठाने चाहिए और इस तरह के कंटेंट को सेंसर करने के लिए नियम बनाने चाहिए। दर्शकों को भी समझना होगा कि वे क्या देख रहे हैं और क्या सुन रहे हैं। जब तक जनता खुद ऐसे गानों और फिल्मों को नकारेगी नहीं, तब तक यह सिलसिला नहीं रुकेगा।
अंत में, भोजपुरी इंडस्ट्री की यह अंधेरी सच्चाई समाज के लिए खतरा बन चुकी है। यह न केवल एक भाषा को बदनाम कर रही है, बल्कि पूरे समाज को नैतिक पतन (moral degradation) की ओर धकेल रही है। जरूरत है कि इसे रोका जाए, नहीं तो आने वाले समय में यह समस्या और गंभीर हो जाएगी। भोजपुरी सिर्फ अश्लीलता के लिए नहीं जानी जानी चाहिए, बल्कि इसे फिर से अपनी समृद्ध संस्कृति और लोकगीतों के लिए पहचान दिलाने की जरूरत है।