भारत में कई लोग चेक (cheque) का इस्तेमाल भुगतान के लिए करते हैं, लेकिन अक्सर लापरवाही के कारण उनका चेक बाउंस (bounce) हो जाता है। चेक बाउंस का मतलब है कि आपने किसी को भुगतान के लिए चेक दिया, लेकिन खाते (bank account) में उतनी रकम नहीं थी, जिससे वह चेक क्लियर नहीं हो पाया। यह सिर्फ एक बैंकिंग गलती नहीं बल्कि एक गंभीर अपराध (criminal offense) माना जाता है। कानून के अनुसार, यह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (Negotiable Instruments Act) की धारा 138 के अंतर्गत आता है। इसका मतलब है कि अगर आपने चेक बाउंस कराया है, तो आपके खिलाफ कानूनी कार्रवाई (legal action) हो सकती है। यह कार्रवाई जुर्माने (fine) से लेकर जेल (imprisonment) तक जा सकती है। इसीलिए चेक लिखते समय हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि खाते में पर्याप्त राशि हो।
कई लोग सोचते हैं कि अगर चेक की राशि कम है, जैसे ₹1000 या ₹500, तो कोई कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन ऐसा सोचना गलत है। कानून में ऐसी कोई सीमा नहीं तय की गई है कि कितनी राशि पर सजा नहीं दी जाएगी। अगर चेक की राशि चाहे कितनी भी हो, अगर वह बाउंस होती है और उसकी शिकायत की जाती है, तो आरोपी को नोटिस (notice) मिलेगा और वह अदालत में घसीटा जा सकता है। सजा में 2 साल तक की जेल और चेक राशि से दोगुना तक का जुर्माना हो सकता है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि छोटी राशि का चेक भी बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है।
जब किसी का चेक बाउंस होता है, तो सबसे पहले बैंक एक रिटर्न मेमो (return memo) जारी करता है जिसमें वजह दी होती है — जैसे ‘अपर्याप्त राशि’ (insufficient funds)। इसके बाद भुगतान पाने वाले व्यक्ति (payee) को 30 दिनों के भीतर चेक जारी करने वाले व्यक्ति (drawer) को एक कानूनी नोटिस भेजना होता है। इस नोटिस के जरिए उसे बताया जाता है कि चेक बाउंस हुआ है और वह 15 दिनों में भुगतान करे। अगर वह फिर भी भुगतान नहीं करता, तो शिकायतकर्ता (complainant) अदालत में केस दायर कर सकता है। अदालत यदि यह मानती है कि आरोपी ने जानबूझकर भुगतान नहीं किया, तो उसे सजा सुनाई जा सकती है।
सालों में इस कानून में बदलाव (amendments) भी किए गए हैं ताकि पीड़ित व्यक्ति को जल्दी न्याय मिल सके। धारा 143A के तहत अब अदालत यह अधिकार रखती है कि वह अभियुक्त (accused) को ट्रायल से पहले ही बाउंस राशि का 20% तक मुआवज़ा (interim compensation) देने का आदेश दे सकती है। इसका मतलब है कि ट्रायल लंबा चले या न चले, लेकिन शिकायतकर्ता को कुछ राहत जल्दी मिल सकती है। वहीं धारा 148 के अनुसार, अगर ट्रायल कोर्ट आरोपी को दोषी ठहराती है और वह ऊपरी अदालत में अपील करता है, तो भी उसे कम से कम 20% राशि जमा करनी होती है। इससे चेक का पैसा लौटाने का दबाव बना रहता है।
लोग अक्सर चेक बाउंस को सिर्फ पैसों की समस्या मानते हैं, लेकिन यह आपकी साख (credibility) पर सीधा वार करता है। अगर किसी व्यापारी का चेक बाउंस होता है, तो उसका बाजार में भरोसा (reputation) कमजोर हो जाता है। कई बार यह समस्या कारोबारी रिश्ते (business relations) तोड़ने तक पहुंच जाती है। यह स्थिति तब और गंभीर होती है जब एक ही व्यक्ति के कई चेक बार-बार बाउंस होने लगते हैं। ऐसे में उसे डिफॉल्टर (defaulter) तक घोषित किया जा सकता है। इससे न केवल उसका बैंकिंग रिकॉर्ड खराब होता है बल्कि भविष्य में लोन (loan) या क्रेडिट कार्ड मिलने में भी दिक्कत होती है।
इस मुसीबत से बचने का सबसे आसान तरीका है — सावधानी। चेक लिखने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके खाते में उतनी राशि हो। चेक पर सही तारीख (date) डालें, हस्ताक्षर (signature) स्पष्ट करें और उसमें कोई कटिंग (cutting) न हो। किसी भी परिस्थिति में ब्लैंक चेक (blank cheque) कभी न दें। यदि किसी चेक के भुगतान में विलंब हो रहा है, तो सामने वाले को समय रहते सूचित (inform) कर दें। ईमानदारी से व्यवहार करना और समय पर भुगतान करना आपको इन कानूनी पचड़ों से दूर रख सकता है।