पाकिस्तान के पास मौजूद न्यूक्लियर हथियार (परमाणु अस्त्र) पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं। यह देश वर्षों से न्यूक्लियर ब्लैकमेल (परमाणु धमकी) की नीति का सहारा लेता आया है। जहां अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और यूके जैसे देश ज़िम्मेदारी से अपने परमाणु हथियारों को नियंत्रित करते हैं, वहीं पाकिस्तान का रिकॉर्ड न सिर्फ अविश्वसनीय है, बल्कि आतंकवाद से गहराई से जुड़ा हुआ है। पाकिस्तान की राजनीति और सुरक्षा तंत्र में जिहादी तत्वों की घुसपैठ किसी से छुपी नहीं है। यही वजह है कि इनके न्यूक्लियर हथियार किसी दिन आतंकियों के हाथ लग सकते हैं। यह सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरे की घंटी है।
पाकिस्तान लंबे समय से भारत सहित कई देशों को यह कहकर धमकाता रहा है कि अगर उनकी आर्थिक मदद नहीं की गई तो उनके न्यूक्लियर हथियार आतंकियों तक पहुंच सकते हैं। यह एक प्रकार की परमाणु ब्लैकमेलिंग है, जिसमें वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को डराता है। आईएमएफ जैसी संस्थाएं तक इस डर में रहती हैं कि कहीं पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता न्यूक्लियर हथियारों की असुरक्षा में न बदल जाए। पाकिस्तान की यह नीति उसे ज़िम्मेदार परमाणु राष्ट्र की श्रेणी से बाहर कर देती है। उसे केवल एक ऐसा राज्य माना जाता है जहां हथियार सत्ता की बजाय कट्टरपंथियों के नियंत्रण में जा सकते हैं।
भारत हमेशा से एक ज़िम्मेदार न्यूक्लियर स्टेट रहा है। ‘नो फर्स्ट यूज़’ की नीति भारत की शांतिप्रिय सोच को दर्शाती है। लेकिन मौजूदा हालात में यह नीति पुनः समीक्षा की मांग कर रही है। पाकिस्तान बार-बार भारत को परमाणु युद्ध की धमकी देता रहा है। अगर भारत को इस धमकी से निपटना है तो उसे अपने सैन्य सिद्धांतों में कुछ सख्त बदलाव करने पड़ेंगे। इसमें सबसे बड़ा बदलाव यह हो सकता है कि भारत अपनी ‘नो फर्स्ट यूज़’ नीति को खत्म कर दे और पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत दे कि किसी भी हरकत का जवाब पूरी ताकत से दिया जाएगा। इससे पाकिस्तान की परमाणु तैयारियों पर भी दबाव बनेगा और उसकी आंतरिक अर्थव्यवस्था पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान की कई न्यूक्लियर साइट्स ऐसी जगहों पर स्थित हैं जहां उनकी सुरक्षा पर सवाल खड़े होते हैं। सरगोधा जैसी जगहों पर इन हथियारों को भूमिगत रखा गया है। अगर इनमें से कोई साइट आतंकी हमले का शिकार होती है तो पूरी दुनिया संकट में आ सकती है। इसके अलावा भारत और इज़राइल जैसे देशों की सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान के न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर पर कड़ी नजर रखती हैं। तकनीकी रूप से इन साइट्स को निष्क्रिय (डिजिटल माध्यम से) करने की रणनीति पर भी काम किया जा रहा है। लेकिन यह आसान कार्य नहीं है, क्योंकि अगर जरा सी चूक हुई तो परिणाम चर्नोबिल या फुकुशिमा जैसे हो सकते हैं।
विश्व समुदाय को यह समझना होगा कि पाकिस्तान जैसे देश के पास न्यूक्लियर हथियार होना सिर्फ एक क्षेत्रीय समस्या नहीं है, यह वैश्विक संकट बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र में एक ठोस प्रस्ताव लाना होगा जिससे पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियारों को डीन्यूक्लियराइज़ (परमाणु निरस्त्रीकरण) किया जा सके। हालांकि इसमें चीन जैसे देश वीटो कर सकते हैं, लेकिन इस विषय पर वैश्विक जनमत तैयार करना आवश्यक है। भारत को इस विषय में पहल करनी होगी। कूटनीतिक मंचों पर बार-बार यह बात उठानी होगी कि पाकिस्तान का परमाणु शस्त्रागार मानवता के लिए खतरा है। मीडिया कैंपेन, वैश्विक सम्मेलनों और सुरक्षा संगठनों के माध्यम से इस विषय को जोर-शोर से उठाना होगा।
पाकिस्तान के आंतरिक हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। बलूचिस्तान अलगाव की ओर बढ़ रहा है और खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। ये दोनों ही संगठन पाकिस्तान के सरकारी तंत्र से भिड़ने की स्थिति में हैं। अगर ऐसे कट्टरपंथी संगठनों को न्यूक्लियर हथियार मिल गए तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। यह न सिर्फ भारत के लिए खतरा होगा, बल्कि अमेरिका, यूरोप और एशिया तक पर इसका असर पड़ेगा। इसलिए पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइट्स का नियंत्रण एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी संस्था के हाथ में होना चाहिए ताकि इन पर आतंकियों का कब्जा न हो सके।
आज भारत वैश्विक मंच पर एक सशक्त राष्ट्र बनकर उभर रहा है। भारत की सैन्य ताकत, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके भरोसे को देखते हुए उसे नेतृत्व करना होगा। पाकिस्तान को न्यूक्लियर मुद्दे पर घेरना अब सिर्फ भारत की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया की आवश्यकता बन चुकी है। भारत को अमेरिका, इज़राइल, जापान और यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक साझा रणनीति बनानी चाहिए। इसके माध्यम से पाकिस्तान की परमाणु क्षमताओं पर कड़ी निगरानी, तकनीकी नियंत्रण और रणनीतिक दबाव बनाया जा सकता है। यह रणनीति धीरे-धीरे पाकिस्तान के न्यूक्लियर खतरों को खत्म करने में मददगार होगी।
दक्षिण एशिया की स्थिति बहुत ही संवेदनशील है। अगर भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार का परमाणु युद्ध होता है तो इसके प्रभाव से केवल ये दो देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित होगी। एक अनुमान के अनुसार अगर परमाणु हमला होता है तो लगभग 9 करोड़ लोग जान गंवा सकते हैं। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन, रेडिएशन का फैलाव, पीढ़ियों तक विकलांग बच्चों का जन्म और अन्न संकट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह एक ऐसा भयावह परिदृश्य होगा जो न सिर्फ युद्ध क्षेत्र को तबाह करेगा, बल्कि पूरी मानव सभ्यता पर गहरा असर डालेगा। इसलिए परमाणु निरस्त्रीकरण (denuclearisation) ही एकमात्र विकल्प है।
पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार केवल उसके स्वयं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक ticking time bomb (घड़ी की सुई की तरह टिकता हुआ बम) हैं। इस देश की आतंरिक अस्थिरता, आतंकवाद से गठजोड़ और विदेशी मदद के भरोसे चल रही नीति इसे एक खतरनाक परमाणु राष्ट्र बना देती है। भारत को अपने स्तर पर रणनीति बनाकर इस समस्या से निपटना होगा, लेकिन यह तभी संभव है जब वैश्विक समुदाय पाकिस्तान की परमाणु नीति को गंभीरता से ले और उसके डीन्यूक्लियराइजेशन की दिशा में ठोस कदम उठाए।