पाकिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के सख्त फैसलों के घेरे में आ गया है। IMF ने पाकिस्तान को 11 नई आर्थिक शर्तें दी हैं, जिनका पालन करना अब उसकी वित्तीय सहायता के लिए आवश्यक बना दिया गया है। यह शर्तें न केवल आर्थिक सुधारों से जुड़ी हैं, बल्कि वे सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर भी गंभीर प्रभाव डालने वाली हैं। IMF ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि ये शर्तें पूरी नहीं की गईं, तो कोई वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी। पाकिस्तान की सरकार, पहले ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही है, और इन शर्तों से उसकी स्थिति और भी कठिन हो जाएगी। गरीबी, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक अस्थिरता के बीच ये नया बोझ देश को और गहरे आर्थिक गड्ढे में धकेल सकता है। IMF की यह नई रणनीति पश्चिमी देशों के हितों को प्राथमिकता देती है, जो पाकिस्तान जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए नीतिगत रूप से घातक साबित हो सकती है।
IMF की सबसे अहम और विवादास्पद शर्तों में से एक है – डिफेंस बजट में कटौती। पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहाँ परंपरागत रूप से सेना और रक्षा क्षेत्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती रही है। हर वर्ष राष्ट्रीय बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा के लिए आवंटित किया जाता है, जबकि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। IMF का कहना है कि पाकिस्तान ने अब तक जितनी भी वित्तीय मदद ली है, उसका बड़ा हिस्सा डिफेंस पर खर्च किया गया, जिससे आम जनता को कोई लाभ नहीं मिला। अब IMF चाहता है कि पाकिस्तान अपनी प्राथमिकताएं बदले, और रक्षा के बजाय विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करे। यह मांग पाकिस्तान के सत्ता ढांचे को असहज कर रही है क्योंकि सेना का राजनीतिक प्रभाव बहुत अधिक है। इस कदम से राजनीतिक उथल-पुथल और विरोध प्रदर्शन की आशंका बढ़ गई है, जो पहले ही अस्थिर वातावरण को और तनावपूर्ण बना सकते हैं।
एक अन्य प्रमुख शर्त है – कृषि क्षेत्र पर टैक्स लागू करना। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अभी भी बड़ी हद तक कृषि पर निर्भर है, और देश की बड़ी आबादी इसी क्षेत्र से आजीविका प्राप्त करती है। देश के चार प्रमुख प्रांतों में से तीन – पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान – मुख्य रूप से कृषि आधारित हैं। यहां पर न तो कोई मजबूत इंडस्ट्री है और न ही सर्विस सेक्टर का पर्याप्त विकास हुआ है। ऐसे में IMF की शर्त कि हर किस्म की आय, विशेषकर कृषि से होने वाली आय पर टैक्स लगाया जाए, गरीब किसानों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है। किसान पहले ही महंगाई और प्राकृतिक आपदाओं की मार से परेशान हैं, और अब उन पर टैक्स का बोझ डालना उनके लिए आर्थिक आपदा जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। कृषि टैक्स को लागू करना IMF की शर्तों में से एक है, लेकिन इसका सामाजिक प्रभाव व्यापक और गंभीर हो सकता है।
IMF ने पाकिस्तान से यह भी कहा है कि वह बिजली और गैस जैसी मूलभूत सेवाओं पर दी जा रही सब्सिडी (सरकारी सहायता) को तुरंत समाप्त करे। इसका अर्थ है कि अब जनता को ये सेवाएं पूरी कीमत पर खरीदनी होंगी। पहले से ही आर्थिक संकट से गुजर रही जनता के लिए यह बोझ असहनीय होगा। सब्सिडी खत्म करने से बिजली और गैस के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि होगी, जो महंगाई को और अधिक बढ़ा देगी। इससे पहले पाकिस्तान के कई हिस्सों में बिजली की कटौती और गैस की किल्लत के कारण विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। यदि अब बिल भी बेतहाशा बढ़े तो जनता का गुस्सा सरकार के खिलाफ फूट सकता है। यह कदम केवल आर्थिक सुधार नहीं बल्कि सामाजिक अस्थिरता की जड़ भी बन सकता है। IMF का तर्क है कि इन सेवाओं की वास्तविक लागत जनता से वसूलनी चाहिए ताकि सरकार घाटे में न रहे, लेकिन गरीब जनता के लिए यह नियम जीवन को और कठिन बना देगा।
IMF चाहता है कि पाकिस्तान कर प्रणाली को डिजिटल और पारदर्शी बनाए। इसके अंतर्गत हर नागरिक और संस्थान को टैक्स रजिस्ट्रेशन कराना होगा, और रिटर्न फाइलिंग के डिजिटल प्लेटफॉर्म को सशक्त बनाना होगा। इस व्यवस्था में न केवल सरकारी कर्मचारियों, बल्कि छोटे व्यापारियों और ग्रामीण जनता को भी शामिल किया जाएगा। लेकिन पाकिस्तान की टेक्नोलॉजी और प्रशासनिक क्षमता इस बदलाव के लिए अभी तैयार नहीं है। ऑनलाइन सिस्टम अभी भी पिछड़ा हुआ है और लोगों में टैक्स को लेकर जागरूकता बेहद कम है। IMF ने सलाह दी है कि एक व्यापक जनसंपर्क अभियान चलाया जाए, जिससे जनता को समझाया जाए कि यह टैक्स देना क्यों जरूरी है। लेकिन यह सब करना आसान नहीं होगा, क्योंकि देश में भ्रष्टाचार बहुत गहराई से फैला है और आम जनता सरकार पर भरोसा नहीं करती। ऐसे में यह सुधार एक और प्रशासनिक सिरदर्द साबित हो सकता है।
IMF ने पाकिस्तान से यह भी अपेक्षा की है कि वह अपनी ऊर्जा नीति में आमूलचूल बदलाव करे। पहले जहां उद्योगों को प्राथमिकता देकर उन्हें सीधे ऊर्जा की आपूर्ति दी जाती थी, अब IMF चाहता है कि यह सारी आपूर्ति पहले नेशनल ग्रिड के माध्यम से हो। इससे ऊर्जा वितरण में पारदर्शिता और नियंत्रण बढ़ेगा, लेकिन इससे उद्योगपतियों और आर्मी-संबद्ध कारोबारों को नुकसान होगा। ये वही संस्थान हैं जो पाकिस्तान के सत्ता ढांचे में गहरी जड़ें रखते हैं। साथ ही, IMF ने देश से यह भी कहा है कि वह इंडस्ट्रियल पार्क्स (औद्योगिक क्षेत्र) को विकसित करे, और 2035 तक मौजूदा टैक्स इंसेंटिव्स को बंद कर दे। इस योजना के तहत उद्योगों को विशेष छूट देना बंद करना होगा, जिससे उनके लिए व्यापार करना मुश्किल हो सकता है। पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था में यह निर्णय उद्योगों की रफ्तार को और धीमा कर सकता है, जिससे रोजगार के अवसर घट सकते हैं।
सबसे गंभीर चिंता यह है कि IMF ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट निर्देश दिया है कि आगामी बजट IMF की बताई गई शर्तों के अनुसार ही तैयार किया जाए। इसका मतलब है कि पाकिस्तान की आर्थिक स्वतंत्रता अब पूरी तरह से IMF के निर्देशों पर निर्भर हो गई है। किसी भी देश के लिए यह स्थिति आत्मगौरव और स्वाभिमान के लिए संकट की घंटी होती है। IMF की यह शर्त दिखाती है कि पाकिस्तान अब केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, बल्कि नीति निर्माण के स्तर पर भी परतंत्र हो गया है। इससे पहले IMF द्वारा दी गई सहायता का उपयोग पाकिस्तान ने गैर-जिम्मेदाराना ढंग से किया, और अब IMF कोई रिस्क नहीं लेना चाहता। इस बार की सहायता एक प्रकार से ‘सख्त पिता की चेतावनी’ की तरह है, जो कहता है – या तो सुधर जाओ, या पैसे भूल जाओ।
इन शर्तों के लागू होने से पाकिस्तान में सामाजिक असंतोष बढ़ने की पूरी संभावना है। पहले से ही आर्थिक तंगी, महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रही जनता अब टैक्स और महंगे बिलों के बोझ तले दबेगी। यह स्थिति सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का कारण बन सकती है। सिंध, बलूचिस्तान और पीओके जैसे क्षेत्रों में पहले ही असंतोष की लहरें चल रही हैं। इन शर्तों के लागू होते ही वह और अधिक तीव्र हो सकती हैं। बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में अलगाववादी आंदोलन पहले से ही सक्रिय हैं, और इस आर्थिक दबाव से यह आंदोलन और उग्र हो सकते हैं। साथ ही, पाकिस्तान के भीतर सरकार और सेना के बीच की खींचतान और गहराने की संभावना है, क्योंकि कई शर्तें सेना के हितों को सीधा प्रभावित करती हैं। इन सभी स्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि पाकिस्तान के लिए आगे का रास्ता बेहद कठिन, अस्थिर और संघर्षपूर्ण होगा।
IMF की 11 नई शर्तें पाकिस्तान के लिए केवल आर्थिक चुनौतियाँ नहीं हैं, बल्कि यह उसकी संप्रभुता, सामाजिक ढांचे और राजनीतिक संतुलन को भी चुनौती दे रही हैं। इन शर्तों को मानना पाकिस्तान के लिए ज़रूरी है ताकि वह अंतरराष्ट्रीय आर्थिक समुदाय में अपनी स्थिति बनाए रख सके, लेकिन इनका असर आम जनता पर बहुत ही कठोर होगा। आने वाले महीनों में यह स्पष्ट हो जाएगा कि पाकिस्तान इस मुश्किल राह पर कैसे चलता है – आत्मनिर्भरता की ओर, या और अधिक परतंत्रता की ओर।