खेती के क्षेत्र में कम संसाधनों से अधिक मुनाफा कमाने की संभावनाएं हमेशा से आकर्षक रही हैं। नवंबर और दिसंबर के महीने में ढाई एकड़ भूमि का उपयोग कर के कुछ विशेष फसलों की बुआई और उचित प्रबंधन से यह संभव हो सकता है कि किसान केवल चार महीनों में चार से पाँच लाख रुपये तक की आय प्राप्त कर सकें। आइए जानें, इस ढाई एकड़ मॉडल के अंतर्गत कैसे फसलों का संयोजन और प्रबंधन किया जा सकता है।
इस मॉडल के तहत, किसान को सबसे पहले अपनी ढाई एकड़ भूमि को पाँच बराबर हिस्सों में बाँटना होगा, ताकि हर हिस्से में आधा एकड़ की जमीन हो। इसके बाद, प्रत्येक हिस्से में कौन-कौन सी फसलें उगानी हैं, इसे निर्धारित किया जाएगा। हर फसल का समयानुसार और सही विधि से रोपण करना भी महत्वपूर्ण है।
पहले आधे एकड़ में चार प्रकार की फसलों की बुआई की जाएगी: फूल गोभी, पत्ता गोभी, मेथी और चुकंदर। इनमें से फूल गोभी और पत्ता गोभी मुख्य फसलें होंगी, जबकि मेथी और चुकंदर को सहायक (intercropping) फसलों के रूप में रोपा जाएगा। पहले मेथी के बीजों की बुआई करनी है, और उसके सात दिन बाद फूल गोभी के पौधों को खेत में ट्रांसप्लांट किया जाएगा। फूल गोभी और पत्ता गोभी की पौधों के बीच दूरी लगभग डेढ़ फीट रखनी है, जबकि चुकंदर के बीजों की बुआई की दूरी एक फीट होनी चाहिए। इस तरह से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रत्येक फसल का विकास सटीक और संतुलित रहे।
दूसरे आधा एकड़ के हिस्से में ब्रोकली, पाक चोई, धनिया और गाजर की खेती की जाएगी। इन फसलों का चयन उनके स्थानीय बाजार में मांग के अनुसार किया जा सकता है। इस हिस्से में भी इंटरक्रॉपिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जिससे प्रत्येक फसल की अधिकतम उत्पादन क्षमता प्राप्त हो सके। यदि किसान बड़े शहर के पास हैं, तो ब्रोकली और पाक चोई की अच्छी कीमत मिलने की संभावना है, अन्यथा इनकी जगह पारंपरिक सब्जियों को उगाना बेहतर रहेगा।
तीसरे आधे एकड़ में आलू की खेती करने का सुझाव दिया गया है। आलू के लिए नवंबर का पहला पखवाड़ा आदर्श समय माना जाता है। इसके लिए ‘कुफरी चिप्सोना वन’, ‘कुफरी बादशाह’ जैसी आलू की लोकप्रिय किस्मों का चयन किया जा सकता है। आलू की खेती से लगभग 50 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे संभावित आय 60,000 रुपये तक हो सकती है।
चौथे आधे एकड़ में लहसुन की खेती की जाएगी। लहसुन के बीजों का उपचार करके ही बुआई करनी चाहिए। एक एकड़ में लहसुन की फसल से 35 क्विंटल तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, जिससे संभावित आय 1.6 लाख रुपये तक हो सकती है।
अंतिम आधे एकड़ में मटर की खेती की जाएगी। मटर का भाव आमतौर पर उच्च रहता है, विशेषकर पछेती मटर की फसल में। मटर से संभावित उत्पादन 12 क्विंटल तक हो सकता है, और बाजार में इसका अच्छा मूल्य मिलने से कुल आय लगभग 50,000 रुपये तक हो सकती है।
इस मॉडल से चार महीनों में कुल मिलाकर करीब चार लाख रुपये की आय प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक फसल से अपेक्षित आय निम्न प्रकार से है:
इस प्रकार कुल आय 4,20,000 रुपये तक हो सकती है। यह मॉडल उन किसानों के लिए बेहद लाभकारी है जो कम भूमि में अधिक आय प्राप्त करना चाहते हैं।
सत्कार्ये नित्ययत्नेन कृषिं योऽधितिष्ठति।
स्वविभागं प्रयोक्तव्यं, लाभाय स याति ध्रुवम्॥
जो व्यक्ति सदैव प्रयास और उचित विधियों से खेती करता है और अपनी भूमि को सही प्रकार से विभाजित कर उपयोग करता है, उसे निश्चित रूप से लाभ प्राप्त होता है। यह श्लोक इस लेख के विषय से मेल खाता है, जो उचित तकनीक, फसल योजना और भूमि के विभाजन के माध्यम से अधिकतम लाभ प्राप्त करने पर आधारित है।