भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव ने एक नया मोड़ ले लिया है जब भारत सरकार ने पाकिस्तान के सैन्य राजनयिकों को ‘Persona Non Grata’ घोषित किया। यह शब्द कूटनीति (diplomacy) में उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी देश के प्रतिनिधियों को मेज़बान देश से निष्कासित कर दिया जाता है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले के बाद यह कड़ा कदम उठाया है। इस फैसले के तहत, पाकिस्तान के डिफेंस, नेवल और एयर अटैचेस को एक सप्ताह के भीतर India छोड़ने का आदेश दिया गया है। सरकार का आरोप है कि ये अधिकारी भारत में रहते हुए आतंकवादियों से संपर्क में थे और कूटनीतिक छूट का दुरुपयोग कर रहे थे। India ने उन्हें 1961 की वियना संधि (Vienna Convention) के अनुच्छेद 41 का उल्लंघनकर्ता बताया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी विदेशी राजनयिक मेज़बान देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जाएगा। पहलगाम में हुए हमले में मिले सबूतों से यह संकेत मिलता है कि हमलावरों के पाकिस्तान स्थित संचालकों से प्रत्यक्ष संपर्क थे। इन आतंकवादियों ने भारत में रहकर आतंक फैलाने की साजिश रची थी। भारत ने न केवल राजनयिक निष्कासन (expulsion) का निर्णय लिया, बल्कि पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक स्टाफ की संख्या भी घटा दी। दोनों देशों के दूतावासों में कर्मचारियों की संख्या अब 55 से घटाकर 30 कर दी गई है। साथ ही भारत में रह रहे अन्य पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर अटारी-वाघा बॉर्डर से देश छोड़ने का निर्देश दिया गया। यह सब भारत की स्पष्ट और सख्त आतंकवाद विरोधी नीति का हिस्सा है, जो यह संकेत देती है कि अब आतंकी घटनाओं के पीछे के जिम्मेदार तत्वों को बख्शा नहीं जाएगा।
भारत ने इस मौके पर एक और बड़ा कदम उठाते हुए 1960 में पाकिस्तान के साथ हुई ‘इंडस वॉटर ट्रीटी’ (Indus Water Treaty) को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है। इस संधि के तहत पाकिस्तान को झेलम, चेनाब और सिंधु नदियों के पानी का अधिकार मिला था, जबकि भारत को रावी, व्यास और सतलज नदियों का। भारत सरकार का यह कदम प्रतीकात्मक (symbolic) है, जिससे पाकिस्तान पर मानसिक दबाव बनाया जा रहा है। हालांकि भारत अभी इन नदियों पर ऐसे बांध नहीं बना पाया है जिससे पानी को रोका जा सके, फिर भी यह घोषणा पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। इसका सीधा प्रभाव पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था पर पड़ सकता है, जो मुख्यतः इन नदियों पर निर्भर है।
भारत पहले भी कई बार पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक स्तर पर सख्त रुख अपना चुका है। 2001 में संसद पर हमले के बाद भारत ने अपने राजनयिकों को पाकिस्तान से वापस बुला लिया था। उरी हमले के बाद पाकिस्तानी उच्चायोग के अधिकारियों को देश से निष्कासित किया गया था। पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा वापस ले लिया और राजनयिक संबंधों को घटा दिया। वर्तमान निर्णय उस श्रृंखला का अगला अध्याय है, जहां भारत लगातार पाकिस्तान की ओर से हो रहे आतंकवादी हमलों का जवाब कूटनीतिक स्तर पर दे रहा है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी भारत के पक्ष में रही है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने पहलगाम हमले की निंदा की और इसे अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी नियमों (humanitarian norms) का उल्लंघन बताया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी भारत के साथ एकजुटता दिखाई और पाकिस्तान को चेतावनी दी कि यदि आतंकवादी गतिविधियाँ बंद नहीं हुईं तो दी जा रही सहायता को रोका जा सकता है। यूरोपीय संघ के कई देशों जैसे यूके, फ्रांस और जर्मनी ने पाकिस्तान से आतंकवाद के ढांचे को समाप्त करने की मांग की है। रूस पहले से ही भारत के साथ खड़ा है, और चीन, जो पाकिस्तान का परंपरागत सहयोगी रहा है, इस बार काफी सतर्क मुद्रा में नजर आ रहा है क्योंकि उसके अपने आर्थिक हित – जैसे कि सीपैक (China-Pakistan Economic Corridor) – खतरे में पड़ सकते हैं।
पाकिस्तान ने हमेशा की तरह भारत के आरोपों को खारिज किया है और इस घटना को ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन’ करार दिया है। उसके रक्षा मंत्री ने भारत की आंतरिक राजनीति पर आरोप लगाए हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की रिपोर्टों के अनुसार हमलावरों और पाकिस्तान स्थित संगठन टीआरएफ के बीच स्पष्ट संबंध हैं। कई हथियारों पर पाकिस्तान की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की निशानियाँ भी मिली हैं, जिससे पाकिस्तान के दावों की सच्चाई संदेह में पड़ जाती है। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान की वैश्विक छवि एक ऐसे देश की बन चुकी है जो आतंकवाद को शह देता है। भारत इसे बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उजागर कर रहा है और अब पाकिस्तान धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग पड़ता जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में भारत की प्रतिक्रिया संतुलित (balanced) और सख्त रही है। भारत ने पहले कूटनीतिक तरीके से अपनी नाराजगी जाहिर की, और अब यह संकेत मिल रहा है कि यदि जरूरत पड़ी तो आगे और कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। भारत आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने में सफल रहा है और अब पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश मिल चुका है कि उसकी हरकतों का जवाब हर स्तर पर दिया जाएगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत सैन्य मोर्चे पर कोई कदम उठाता है या नहीं। परंतु फिलहाल यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत की इस कार्रवाई से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी झटका लगा है और उसकी कूटनीतिक स्थिति पहले से कहीं अधिक कमजोर हो चुकी है।