उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के ऊसराहार थाना क्षेत्र स्थित पूरनपुरा गांव में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सामाजिक रिश्तों की मर्यादा और पारिवारिक बुनियाद पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक महिला, जो तीन बच्चों की मां है, अपने चाचा ससुर के साथ घर छोड़कर फरार हो गई है। यह घटना केवल एक घरेलू मामला नहीं रही, बल्कि पूरे गांव में चर्चा का विषय बन गई है। महिला अपने पति जितेंद्र कुमार की गैरमौजूदगी में दो छोटी बेटियों को साथ लेकर चली गई। उसका बेटा घर पर ही रह गया। यह घटना 3 अप्रैल 2025 की बताई जा रही है। पति जितेंद्र, जो पेशे से टैक्सी चालक है, जब कानपुर से लौटा, तो घर सूना मिला और उसकी दुनिया ही बदल गई। इस पूरी घटना ने ना सिर्फ एक परिवार को तोड़ दिया, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी झकझोर कर रख दिया है।
जितेंद्र की हालत अब दयनीय हो चुकी है। पत्नी के अचानक घर छोड़ जाने और बच्चों के बिछड़ने का ग़म उसे अंदर से तोड़ चुका है। वो अपने हाथों में तख्ती लेकर गांव-गांव भटक रहा है, जिसमें लिखा है कि “मेरी पत्नी और बेटियों को खोजने वाले को 20,000 रुपये का इनाम दिया जाएगा।” उसका चेहरा दर्द से भरा हुआ है, और उसकी आंखों में उम्मीद की किरण अब भी झलक रही है। वह कहता है कि अगर पत्नी लौटना नहीं चाहती तो न सही, पर कम से कम बच्चियों को वापस कर दे। जितेंद्र के अनुसार, यह महिला नंदराम नामक चाचा ससुर के साथ फरार हुई है। वह नंदराम को अपने घर का सदस्य समझता था, लेकिन वही विश्वासघात की सबसे बड़ी वजह बन गया। पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट तो दर्ज है, लेकिन नामजद एफआईआर (FIR) आज तक नहीं की गई, जिससे पीड़ित परिवार की निराशा और भी बढ़ गई है।
जितेंद्र के पिता श्याम किशोर, जो अब दादा भी हैं, अपने पोतियों के लिए दर-दर भटक रहे हैं। उन्होंने साफ कहा है कि अगर बहू घर लौटना नहीं चाहती तो न सही, लेकिन उनकी पोतियों को वापस कर दे। वह इस बात से हैरान हैं कि उनका ही छोटा भाई, नंदराम, ऐसा कृत्य कर सकता है। श्याम किशोर कहते हैं, “मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरा छोटा भाई मेरी बहू को भगाकर ले जाएगा। ये हमारे लिए सामाजिक कलंक से कम नहीं है।” उन्होंने जनता से अपील की है कि जो भी उनकी बहू और पोतियों का पता लगाएगा, उसे 20,000 रुपये का नकद इनाम मिलेगा। यह बात गांव में भी चर्चा का विषय बन चुकी है। परिवार का कहना है कि वे पुलिस थाने के कई चक्कर लगा चुके हैं लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। अधिकारी केवल आश्वासन देते हैं।
पीड़ित परिवार लगातार थाने जा रहा है, लेकिन उन्हें हर बार खाली हाथ लौटना पड़ता है। अब तक केवल एक गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई है, जबकि पीड़ित परिवार नामजद रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहता है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि “जैसे ही महिला और नंदराम की बरामदगी होगी, दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।” लेकिन यह आश्वासन अब तक सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। डेढ़ महीने बीत चुके हैं, लेकिन महिला और बच्चियां अब तक लापता हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या पुलिस प्रशासन संवेदनहीन हो चुका है या फिर किसी दबाव में काम कर रहा है? इस मामले ने कानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। समाज में जब ऐसे संवेदनशील मामलों में भी कार्रवाई में देरी हो, तो आम आदमी न्याय की उम्मीद कैसे करे?
पूरनपुरा गांव में यह घटना अब केवल एक पारिवारिक संकट नहीं रही, बल्कि गांव की गरिमा से जुड़ा मुद्दा बन चुकी है। लोगों का कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई महिला अपने ही चाचा ससुर के साथ भाग गई हो। यह न केवल रिश्तों का अपमान है, बल्कि समाज के लिए एक कड़वी सच्चाई भी। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि पहले के समय में ससुराल में महिलाएं चाचा ससुर को पिता तुल्य मानती थीं, लेकिन अब समय बदल गया है। बच्चों के भविष्य को लेकर भी गांव वाले चिंतित हैं। उनका कहना है कि मां के बिना बच्चों की परवरिश अधूरी रह जाएगी। वहीं, महिला के इस कदम ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। अब लोग अपने घरों में भी रिश्तों को लेकर सतर्क हो गए हैं।
महिला की दो बेटियां भी इस पूरी घटना का हिस्सा बन चुकी हैं। उन्हें जबरन या सहमति से ले जाया गया, यह तो जांच के बाद ही स्पष्ट होगा, लेकिन उनकी मासूमियत पर यह घटना एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है। उन बच्चियों को शायद यह भी नहीं पता कि उनकी मां उन्हें कहां और क्यों ले जा रही है। अब उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। स्कूल, दोस्तों और परिवार से दूर वे एक अनजाने माहौल में जी रही होंगी। उनके लिए न तो शिक्षा है, न ही सुरक्षा। इस उम्र में उन्हें अपने माता-पिता के संरक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता है, लेकिन अब वही अभिभावक उनके जीवन से दूर हो चुके हैं। यह केवल एक पारिवारिक संकट नहीं बल्कि बाल अधिकारों का भी हनन (violation) है।
इस मामले ने रिश्तों की परिभाषा को ही बदल कर रख दिया है। जिस व्यक्ति को घर का सदस्य और संरक्षक समझा गया, वही विश्वासघात का सबसे बड़ा कारण बन गया। चाचा ससुर का यह कदम न केवल एक अनैतिक कार्य है, बल्कि यह सामाजिक मर्यादा को भी तोड़ता है। ऐसे मामलों में सामाजिक प्रतिष्ठा (reputation) को भारी नुकसान होता है। परिवार के छोटे सदस्य इससे मानसिक रूप से आहत हो सकते हैं। समाज में अब विश्वास कम होता जा रहा है और लोग अपने ही रिश्तेदारों पर संदेह करने लगे हैं। यह एक खतरनाक स्थिति है जो पारिवारिक ढांचे को कमजोर कर रही है।
पीड़ित परिवार अभी भी न्याय की उम्मीद में दिन-रात पुलिस थानों के चक्कर काट रहा है। जितेंद्र और उसके पिता दोनों ही टूट चुके हैं, लेकिन उनके अंदर अपनी बेटियों के लिए लड़ने का हौसला बाकी है। वे चाहते हैं कि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिले और बच्चियों को सुरक्षित घर वापस लाया जाए। वहीं पुलिस प्रशासन का दावा है कि जल्द ही महिला और नंदराम की बरामदगी की जाएगी। लेकिन जनता और मीडिया की भूमिका इस केस में अहम हो जाती है। जब तक यह मामला सुर्खियों में रहेगा, प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बना रहेगा। पीड़ित परिवार को न्याय दिलाना अब समाज की जिम्मेदारी बन चुकी है। यही नहीं, यह केस आने वाले समय में कानून में संशोधन (amendment) और सामाजिक चेतना का कारण भी बन सकता है।
पूरनपुरा गांव की यह घटना हमें एक बार फिर सोचने पर मजबूर करती है कि क्या रिश्तों की मर्यादा अब केवल नाम मात्र रह गई है? क्या समाज अब उस मोड़ पर आ गया है जहां कोई भी किसी पर भरोसा नहीं कर सकता? तीन बच्चों की मां का यूं अपने चाचा ससुर के साथ भाग जाना ना केवल उसके परिवार को तोड़ता है, बल्कि एक पूरे गांव की आत्मा को भी झकझोर देता है। इस मामले में न्याय कब मिलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात तो साफ है कि समाज को अब रिश्तों की परिभाषा पर फिर से चिंतन करना होगा।