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Embryo Freezing is Silent Revolution : माँ बनने की नई उम्मीद!

NCIvimarsh4 days ago

लेखक- डॉ सुनीता जी मीणा via NCI

भारत में हाल ही के वर्षों में चिकित्सा विज्ञान ने ऐसे मुकाम हासिल किए हैं, जो न केवल विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति (revolution) ला रहे हैं, बल्कि सामाजिक सोच और जीवनशैली को भी गहराई से प्रभावित कर रहे हैं। ऐसी ही एक क्रांतिकारी तकनीक है ‘एम्ब्रियो फ्रीजिंग’ ( Embryo Freezing ), जो अब भारत में तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है। इस तकनीक ने उन लोगों के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगाई है, जो किसी कारणवश प्राकृतिक रूप से संतान प्राप्ति में सक्षम नहीं हैं या फिर भविष्य में संतान की योजना बना रहे हैं लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में वह संभव नहीं हो पाता। यह तकनीक विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रही है जो गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर से जूझ रही हैं, या फिर अपनी बायोलॉजिकल क्लॉक को आगे बढ़ाना चाहती हैं।

एक उदाहरण के तौर पर पूनम (बदला हुआ नाम) की कहानी बेहद प्रेरणादायक है, जिन्हें 2017 में ब्रेस्ट कैंसर हो गया था। उस समय वे अपने बच्चे की योजना बना रही थीं, लेकिन कीमोथेरेपी जैसी आक्रामक (aggressive) चिकित्सा प्रक्रिया से उनके एग्स को नुकसान पहुँचने की आशंका थी। ऐसे में डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी कि वे अपने एम्ब्रियो को फ्रीज करवा लें। पूनम ने इन्ट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) तकनीक का इस्तेमाल कर एम्ब्रियो को बनवाया और उसे फ्रीज करवा लिया। कीमोथेरेपी के बाद जब उनकी सेहत ठीक हुई, तो डॉक्टरों ने उसी फ्रोज़न एम्ब्रियो को उनके गर्भ में ट्रांसफर किया, जिससे वे गर्भवती हो सकीं। यह एक जीता-जागता उदाहरण है कि कैसे एम्ब्रियो फ्रीजिंग ( Embryo Freezing ) तकनीक ने जीवन में उम्मीद और नई शुरुआत का अवसर दिया।

भारत में इनफर्टिलिटी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इंडियन सोसाइटी ऑफ असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी के अनुसार 2024 में 27.5 मिलियन यानी लगभग 2 करोड़ 75 लाख कपल्स इनफर्टाइल थे। यह आंकड़ा केवल दर्ज हुए मामलों का है, वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है। बढ़ती उम्र, बदलती जीवनशैली, पर्यावरणीय कारक, और स्ट्रेस इस समस्या को और जटिल बना रहे हैं। डॉक्टर बताते हैं कि 35 साल के बाद प्रेगनेंसी की संभावना कम होती है, ऐसे में एम्ब्रियो को पहले ही फ्रीज करवाना एक समझदारी भरा निर्णय हो सकता है।

एम्ब्रियो फ्रीजिंग, एग फ्रीजिंग से अलग है। इसमें पहले एग और स्पर्म को मिलाकर उन्हें फर्टिलाइज किया जाता है और फिर उस एम्ब्रियो को एक विशेष अवस्था, जिसे ब्लास्टोसिस्ट स्टेज कहा जाता है, तक पहुंचने के बाद फ्रीज किया जाता है। यह स्टेज फर्टिलाइजेशन के पाँच से छह दिन बाद आती है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर उच्च गुणवत्ता वाले एम्ब्रियो को ही फ्रीज किया जाता है ताकि भविष्य में सफलता की संभावना अधिक हो।

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आज की तारीख में तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) जैसी प्रक्रिया के माध्यम से माता-पिता एक नहीं बल्कि दो या तीन बच्चों की भी योजना बना सकते हैं। एक बार सफल एम्ब्रियो फ्रीजिंग ( Embryo Freezing ) हो जाए, तो उसे कई वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। कुछ महिलाओं को एंडोमेट्रियोसिस, मिसकैरेज या यूटेराइन समस्याएं होती हैं, जिससे वे गर्भधारण नहीं कर पातीं, लेकिन फ्रीजिंग तकनीक के माध्यम से यह बाधाएं भी पार की जा सकती हैं।

भारत में यह तकनीक न केवल घरेलू मरीजों के लिए बल्कि विदेश से आने वाले मरीजों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन चुकी है। एक डॉक्टर ने बताया कि कैसे एक विदेशी कपल, जिनकी अनक्लियर फर्टिलिटी थी, भारत आया और यहाँ छह उच्च गुणवत्ता वाले एम्ब्रियो बनवाकर उन्हें फ्रीज करवाया। चार साल बाद, जब वे फिर से बच्चा चाहते थे, तो उन्हीं फ्रोज़न एम्ब्रियो में से एक को गर्भ में प्रत्यारोपित (implant) किया गया और वे दोबारा माता-पिता बने।

यहां तक कि अगर किसी महिला का मेनोपॉज हो गया है, तब भी वह फ्रोज़न एम्ब्रियो के ज़रिये गर्भधारण कर सकती है। 2021 में आए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन एक्ट के अनुसार एक एम्ब्रियो को अधिकतम 10 साल तक संरक्षित किया जा सकता है। इसके बाद या तो उसे डोनेट किया जाता है या फिर डिस्कार्ड। वहीं, सरोगेसी के मामले में भी यह तकनीक बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जहां एक महिला की कोख में किसी अन्य महिला के एम्ब्रियो को प्रत्यारोपित किया जाता है। इससे वे महिलाएं भी माँ बन सकती हैं जो किसी वजह से खुद गर्भधारण नहीं कर सकतीं।

विज्ञान के इस चमत्कार से अब प्रेगनेंसी से पहले ही यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि जन्म लेने वाला बच्चा किसी जेनेटिक बीमारी से ग्रसित न हो। पहले यह टेस्ट केवल गर्भधारण के बाद होते थे, जिससे डॉक्टर को कई बार अबॉर्शन की सलाह देनी पड़ती थी। लेकिन अब एडवांस्ड जेनेटिक स्क्रीनिंग टेक्निक्स के माध्यम से डॉक्टर पहले ही यह पता लगा सकते हैं कि कौन सा एम्ब्रियो पूरी तरह स्वस्थ है।

हालांकि, यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि केवल एम्ब्रियो को फ्रीज करवाने से प्रेगनेंसी की गारंटी नहीं होती। सफलता की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि महिला की उम्र कितनी है, यूटेरस की सेहत कैसी है और एम्ब्रियो की गुणवत्ता क्या है। टियर-1 सिटीज़ में यह प्रक्रिया सस्ती नहीं है। एम्ब्रियो फ्रीजिंग पर ₹1.5 लाख से ₹2 लाख तक का खर्च आता है, और हर साल फ्रीजिंग मेंटेनेंस का खर्च लगभग ₹15,000 से ₹20,000 तक होता है। लेकिन यह खर्च उन कपल्स के लिए एक बेहतरीन निवेश हो सकता है जो संतान की योजना को लेकर किसी भी तरह की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं।

भारत में धीरे-धीरे यह सामाजिक रूप से भी स्वीकार किया जा रहा है। अब महिलाएं अपने करियर और निजी ज़िंदगी को बैलेंस करते हुए भविष्य में मातृत्व की योजना बना रही हैं, और एम्ब्रियो फ्रीजिंग उन्हें वह विकल्प देता है जो पहले केवल सपना था। यह एक साइलेंट रिवोल्यूशन है, जो बिना शोर किए लाखों ज़िंदगियों में बदलाव ला रहा है।

कुल मिलाकर, एम्ब्रियो फ्रीजिंग ( Embryo Freezing ) एक ऐसी तकनीक है जो आज के समय में न केवल चिकित्सा विज्ञान की उन्नति का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक संरचना में भी बदलाव का संकेत देती है। यह उन महिलाओं और कपल्स के लिए एक नई उम्मीद बनकर उभरी है, जो किसी कारणवश वर्तमान में संतान प्राप्ति में सक्षम नहीं हैं, लेकिन भविष्य में उसका सपना साकार करना चाहते हैं। यह तकनीक केवल मेडिकल प्रोसेस नहीं, बल्कि एक नई सोच और जीवन जीने की आज़ादी का नाम है।

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