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USA’s Shocking Mistake! |
डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में एक बड़ा खुलासा हुआ है जिसमें गलती से यमन पर किए जाने वाले हमले की पूरी योजना सार्वजनिक हो गई। यह खबर अटलांटिक मैगजीन के जाने-माने पत्रकार जेफरी गोल्डबर्ग द्वारा सामने लाई गई है। अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सबसे बड़े अधिकारियों की एक सीक्रेट ग्रुप चैट थी, जिसमें यमन पर किए जाने वाले मिसाइल हमले की पूरी रणनीति पर चर्चा हो रही थी। यह जानकारी गलती से लीक हो गई और अब पूरे विश्व में इस पर चर्चा हो रही है कि आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है।
इस ग्रुप चैट का नाम “हुती पीसी स्मॉल ग्रुप” था और इसमें अमेरिका के कई शीर्ष अधिकारी शामिल थे। इनमें नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर, वाइस प्रेसिडेंट जेडी वैंस, डिफेंस सेक्रेटरी पीटर हेगसेट, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट मार्क रूबियो, डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस तुलसी गबार्ड, ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बसंती, सीआईए डायरेक्टर जॉन रैटफ और वाइट हाउस चीफ ऑफ स्टाफ सुफी व्हील्स जैसे बड़े नाम शामिल थे। इस ग्रुप में यमन पर हमला करने की योजना को लेकर विस्तृत चर्चा हो रही थी, जिसमें यह बताया जा रहा था कि कौन-से हथियार इस्तेमाल होंगे, टारगेट कौन होंगे और हमले की टाइमिंग क्या होगी।
गोल्डबर्ग के अनुसार, यह पूरी बातचीत सिग्नल (Signal) ऐप पर हुई थी, जो कि एक सुरक्षित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म माना जाता है। लेकिन किसी गलती की वजह से या फिर किसी के लापरवाही से यह जानकारी बाहर आ गई और अब दुनिया के सामने है। जब यह खबर लीक हुई, तो सरकार की तरफ से पहले इस पर सफाई देने की कोशिश की गई कि यह कोई “वॉर प्लान” नहीं था, बल्कि एक सामान्य चर्चा थी। लेकिन जब गोल्डबर्ग ने इस बातचीत के सबूत पेश किए, तो अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं बचा। उन्होंने बताया कि इस ग्रुप चैट में हमले की सटीक जानकारी थी, जिसमें टारगेट और टाइमिंग भी तय की गई थी।
इस लीक के बाद अमेरिकी प्रशासन पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह हमला पहले ही हो चुका था, लेकिन जिस तरह से इसकी जानकारी बाहर आई, उससे यह साबित होता है कि ट्रंप प्रशासन अपने संवेदनशील दस्तावेजों की सुरक्षा करने में असमर्थ है। इस पूरे घटनाक्रम में वाइस प्रेसिडेंट जेडी वैंस की भूमिका भी अहम मानी जा रही है। जेडी वैंस इस हमले के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने ग्रुप चैट में यह तक कहा कि “हम एक बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि इस हमले के कारण तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं और यूरोप पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।
लेकिन डिफेंस सेक्रेटरी पीटर हेगसेट और सीआईए डायरेक्टर जॉन रैटफ जैसे अधिकारी इस हमले को सही ठहरा रहे थे। हमले के बाद भी इन अधिकारियों ने ग्रुप चैट में एक-दूसरे को “ग्रेट टीम वर्क” और “गुड जॉब” कहकर बधाई दी। इससे यह साफ जाहिर होता है कि इस हमले को लेकर प्रशासन में मतभेद था, लेकिन अंततः हमला कर दिया गया। इस लीक ने यह भी दिखा दिया कि अमेरिका की युद्ध रणनीति कितनी असुरक्षित है और संवेदनशील जानकारियां कैसे आसानी से लीक हो सकती हैं।
अगर इस पूरे मामले को भारत के संदर्भ में देखें, तो कल्पना कीजिए कि अगर भारत में ऐसा कुछ हुआ होता और किसी भारतीय पत्रकार को इस तरह की जानकारी लीक हो गई होती, तो कितना बड़ा बवाल मच जाता। सोचिए, अगर कोई ग्रुप चैट लीक हो जाती, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री जयशंकर शामिल होते और उसमें पाकिस्तान पर हमले की योजना पर चर्चा होती, तो देशभर में हंगामा हो जाता। इस घटना ने दिखाया कि अमेरिका जैसी महाशक्ति भी इस तरह की गलतियों से बच नहीं सकती।
डोनाल्ड ट्रंप पहले भी विवादों में रहे हैं और अब यह नया मामला उनके लिए एक और बड़ी परेशानी बन सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस पर क्या कार्रवाई होती है। क्या अमेरिकी प्रशासन इस गलती की जिम्मेदारी लेगा? या फिर इसे किसी और तरीके से संभालने की कोशिश करेगा? इस पूरे मामले से यह भी पता चलता है कि सूचना सुरक्षा (information security) आज कितनी महत्वपूर्ण हो गई है और सरकारों को अपनी संवेदनशील जानकारियों की रक्षा के लिए और ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। इस घटना से यह भी स्पष्ट है कि अगर अमेरिका जैसा देश इस तरह की लापरवाही कर सकता है, तो बाकी देशों की सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल उठ सकते हैं।
यमन पर हुआ यह हमला पहले से ही विवादास्पद था, लेकिन अब इस लीक के बाद यह और भी ज्यादा गंभीर हो गया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है, यह देखने वाली बात होगी। आने वाले समय में डोनाल्ड ट्रंप और उनकी सरकार पर इस मामले को लेकर और भी दबाव बढ़ सकता है। क्या यह लीक किसी अंदरूनी साजिश का हिस्सा था? या फिर यह वास्तव में एक गलती थी? इन सभी सवालों के जवाब अभी बाकी हैं। लेकिन एक बात तय है कि यह घटना अमेरिकी इतिहास में एक बड़ा विवाद बनकर दर्ज हो गई है और इसका असर आने वाले वर्षों तक देखा जा सकता है।