अंतरिक्ष इंसान के लिए एक अनजानी और रहस्यमयी दुनिया है। जहां पृथ्वी पर हम हर चीज़ के लिए डॉक्टर, दवा, अस्पताल और उपकरणों पर निर्भर हैं, वहीं अंतरिक्ष में यह सब संभव नहीं होता। वैज्ञानिकों ने दशकों की मेहनत से अंतरिक्ष यात्रियों के लिए एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है, जिससे वे स्पेस में बीमार पड़ने की स्थिति में भी सुरक्षित रह सकें। लेकिन यह व्यवस्था कितनी कारगर है, और आखिर अंतरिक्ष में इलाज कैसे होता है — यह सवाल अब भी लोगों के मन में उठता है।
अंतरिक्ष का वातावरण न सिर्फ पृथ्वी से अलग है, बल्कि बेहद कठिन भी है। वहां गुरुत्वाकर्षण लगभग नहीं के बराबर होता है, जिससे शरीर पर कई असर पड़ते हैं। मसलन, एस्ट्रोनॉट की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं और इम्यून सिस्टम भी प्रभावित होता है। इसके अलावा माइक्रोग्रैविटी की वजह से दिल की कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ता है।
यही कारण है कि NASA या किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी के लिए यह बेहद जरूरी होता है कि स्पेस मिशन से पहले यात्रियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति का पूरी तरह परीक्षण किया जाए। कोई भी व्यक्ति जो थोड़ी सी भी बीमारी या कमजोरी से ग्रसित होता है, उसे मिशन का हिस्सा नहीं बनाया जाता।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में एक खास मेडिकल किट मौजूद होती है, जिसे “Health Maintenance System” कहा जाता है। इस किट में तमाम जरूरी प्राथमिक उपचार से जुड़ी सामग्री होती है जैसे —
बुखार, सिरदर्द, उल्टी और दर्द की दवाइयां
सेडेटिव्स (शरीर को शांत रखने वाली दवा)
ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर जांचने की डिवाइसेज
एलर्जी और संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक
जख्म साफ करने के लिए डिसइंफेक्टेंट और ड्रेसिंग मटेरियल
इस किट को विशेष रूप से उस माहौल के हिसाब से डिजाइन किया जाता है ताकि गुरुत्वाकर्षण की कमी में भी दवाएं ठीक से दी जा सकें। उदाहरण के लिए, लिक्विड दवा की जगह टैबलेट या जेल का प्रयोग ज्यादा किया जाता है।
हर अंतरिक्ष मिशन के दौरान, एक ऐसा सदस्य जरूर होता है जिसे सामान्य मेडिकल ट्रेनिंग से ज्यादा गहन चिकित्सा प्रशिक्षण दिया गया होता है। यह सदस्य किसी मेडिकल ऑफिसर की तरह काम करता है। अन्य सभी क्रू मेंबर्स को भी CPR (Cardiopulmonary Resuscitation), बेसिक फर्स्ट-एड, इंजेक्शन लगाना, चोट का इलाज, और इमरजेंसी रिस्पांस जैसी ट्रेनिंग दी जाती है।
इसके अलावा, धरती पर मौजूद कंट्रोल सेंटर से लगातार संपर्क बना रहता है। वहां की मेडिकल टीम उन्हें जरूरत के मुताबिक वीडियो कॉल या रेडियो के जरिए गाइड करती रहती है। NASA, ESA, और Roscosmos जैसी अंतरिक्ष एजेंसियों के पास रियल-टाइम हेल्थ मॉनिटरिंग सिस्टम होते हैं, जो हर एस्ट्रोनॉट की बॉडी कंडीशन ट्रैक करते रहते हैं।
यदि कोई एस्ट्रोनॉट इतनी गंभीर स्थिति में आ जाए कि उसकी जान को खतरा हो, तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के पास पहले से एक योजना होती है जिसे Contingency Return Plan कहते हैं। इसके तहत, अंतरिक्ष स्टेशन पर एक खास यान पहले से डॉक किया हुआ रहता है जिसे “लाइफबोट” कहा जाता है। यह स्पेसक्राफ्ट इमरजेंसी के समय तुरंत पृथ्वी पर वापसी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
जैसे हाल ही में SpaceX के Crew Dragon, और पहले Soyuz Capsule इसी काम के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। NASA के रिकॉर्ड के मुताबिक अब तक बहुत कम ही ऐसे मौके आए हैं जब किसी को मेडिकल कारणों से वापस लाना पड़ा हो, लेकिन पूरी तैयारी हमेशा रहती है।
NASA और अन्य स्पेस एजेंसियां किसी भी मिशन से पहले क्रू को लगभग 2 से 3 साल की कठोर ट्रेनिंग देती हैं। इसमें मेडिकल ट्रेनिंग, साइकोलॉजिकल सपोर्ट, फिटनेस प्रोग्राम और माइक्रोग्रैविटी में शरीर की प्रतिक्रिया को समझने की प्रक्रिया शामिल होती है। इतना ही नहीं, अंतरिक्ष में खाने-पीने से लेकर नींद तक सबका बायोमेडिकल ऑब्जर्वेशन किया जाता है।
वर्तमान में, स्पेस में किसी भी प्रकार की बड़ी सर्जरी करना लगभग असंभव है। माइक्रोग्रैविटी में शरीर से खून का बहाव, उपकरणों की पकड़ और संक्रमण को नियंत्रित करना बेहद कठिन होता है। हालांकि भविष्य की तैयारी में NASA और अन्य एजेंसियां रोबोटिक सर्जरी, टेलीमेडिसिन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित इलाज के विकल्प तैयार कर रही हैं।
अंतरिक्ष में बीमार होना कोई आम बात नहीं, लेकिन असंभव भी नहीं है। वहां के हर मिशन के पीछे सालों की तैयारी और सुरक्षा की पूरी गारंटी होती है। बीमारियों के लिए मेडिकल सपोर्ट, ट्रेनिंग, तकनीक और इमरजेंसी योजनाएं लगातार विकसित हो रही हैं। यह मानवीय प्रयासों की एक ऐसी कहानी है, जिसमें विज्ञान, दया और तकनीक मिलकर ब्रह्मांड के रहस्यों के बीच इंसान की जिंदगी बचाने की कोशिश करते हैं।