हाल ही में एक बेहद रोचक वैज्ञानिक अध्ययन सामने आया है, जिसने आत्मा के अस्तित्व और उसके शरीर से निकलने की प्रक्रिया को लेकर एक नई सोच को जन्म दिया है। यह विषय भले ही सदियों से धर्म, दर्शन और अध्यात्म में गहराई से जुड़ा रहा हो, लेकिन अब विज्ञान भी धीरे-धीरे ऐसे पहलुओं की ओर ध्यान देने लगा है जिन्हें अब तक केवल मान्यताओं और आस्थाओं से जोड़ा जाता रहा है। यह अध्ययन दर्शाता है कि आत्मा ( Soul ) , जिसे सदियों से एक रहस्यमयी और अमर तत्व माना जाता है, वास्तव में एक बेहद सूक्ष्म ऊर्जा रूप हो सकती है जो मृत्यु के समय शरीर से अलग होती है।
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में आत्मा को शरीर से अलग एक शाश्वत तत्व के रूप में बताया गया है। यह भी कहा गया है कि आत्मा न तो मरती है और न ही जन्म लेती है, बल्कि यह केवल एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित होती है। वैज्ञानिकों ने इस विषय को प्रयोगों और गहन निरीक्षण के माध्यम से समझने की कोशिश की। एक हालिया अध्ययन में सात ऐसे मरीजों को शामिल किया गया, जो जीवन के अंतिम चरण में थे। इन सभी को जीवन रक्षक प्रणाली (life support) से हटाया गया और उनके मस्तिष्क में विशेष सेंसर लगाए गए जिससे यह समझा जा सके कि शरीर के पूरी तरह निष्क्रिय हो जाने के बाद भी क्या मस्तिष्क में कोई हलचल होती है या नहीं।
जैसे ही इन मरीजों के हृदय ने धड़कना बंद किया और रक्तचाप (blood pressure) शून्य पर पहुंच गया, वैसे ही यह मान लिया गया कि व्यक्ति की मृत्यु हो गई है। परंतु इसी समय कुछ अप्रत्याशित हुआ – मस्तिष्क में कुछ न्यूरॉन्स (neurons) एक विशेष प्रकार की उच्च आवृत्ति वाली तरंगें उत्पन्न करने लगे जिन्हें वैज्ञानिक गामा वेव्स कहते हैं। यह वेव्स सामान्यतः तब देखी जाती हैं जब व्यक्ति उच्च स्तर की चेतना (consciousness) में होता है, यानी कि वह सोच रहा हो, जाग्रत हो और पूरी तरह सजग हो।
यह देखना चौंकाने वाला था कि मृत घोषित किए जा चुके मरीज के दिमाग में गामा वेव्स एक सिंक्रोनाइज्ड (synchronized) तरीके से लगभग 90 सेकंड तक चलती रहीं। इससे यह संकेत मिलता है कि मृत्यु के बाद भी चेतना या आत्मा जैसा कोई तत्व कुछ समय तक सक्रिय रह सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ‘लो एनर्जी प्रोसेस’ (low energy process) हो सकता है, यानी कि बहुत ही सूक्ष्म स्तर पर काम करने वाली ऊर्जा जो शरीर के अन्य कार्यों से अलग है।
इस परिकल्पना को ‘क्वांटम ब्रेन हाइपोथेसिस’ (quantum brain hypothesis) का नाम दिया गया है, जिसमें यह माना जा रहा है कि मस्तिष्क में ऐसे तंत्र होते हैं जो बहुत ही निम्न स्तर की ऊर्जा पर काम करते हैं और शायद यही आत्मा के अस्तित्व से जुड़े होते हैं। यह सिद्धांत बताता है कि ब्रेन डेड घोषित किए जाने के बाद भी कुछ न्यूरॉन्स आपस में संवाद कर सकते हैं और यह संवाद किसी गहरी चेतना या आत्मा से संबंधित हो सकता है।
इस पूरे अध्ययन में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉक्टर स्टुअर्ट हेमरॉफ़ का नाम प्रमुख रूप से सामने आया है, जो एरिज़ोना विश्वविद्यालय में एनस्थीसियोलॉजी के प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि जब मरीजों को जीवन रक्षक प्रणाली से हटाया गया, तब मस्तिष्क की गतिविधियों में जो असामान्य संकेत मिले, वे बेहद खास थे। उनके अनुसार, यह गतिविधियाँ सामान्य मृत्यु प्रक्रिया से अलग थीं और इसका कारण वही ऊर्जा हो सकती है जिसे आत्मा कहा जाता है।
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली समझने के लिए विभिन्न प्रकार की ब्रेन वेव्स की पहचान की जाती है – जैसे डेल्टा वेव्स, थीटा, अल्फा, बीटा और गामा वेव्स। इनमें से गामा वेव्स का संबंध उच्चतम प्रकार की सोच, ध्यान (meditation), समाधि जैसी अवस्थाओं से होता है। जब कोई व्यक्ति ध्यान में गहराई से उतरता है या कोई जटिल मानसिक कार्य करता है, तब मस्तिष्क गामा वेव्स उत्पन्न करता है। परंतु इस अध्ययन में जो देखा गया, वह इससे कहीं अधिक रोमांचक था – मृत्यु के बाद भी मस्तिष्क में गामा सिंक्रोनी देखी गई।
यहां तक कि यह भी माना जा रहा है कि मृत्यु के समय व्यक्ति को अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षण फ्लैशबैक के रूप में दिखाई देते हैं। कई लोग इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि क्लीनिकल डेथ के समय उन्हें पूरा जीवन उनकी आंखों के सामने गुजरता दिखा। यह अनुभव कई बार पुनर्जीवित होने वाले मरीजों ने साझा किया है, जिसे ‘नियर डेथ एक्सपीरियंस’ (near-death experience) कहा जाता है। ऐसे अनुभवों में अक्सर प्रकाश की तेज किरण, शरीर से बाहर निकलना और दिव्य उपस्थिति का आभास भी शामिल होता है।
एक और अध्ययन में ऐसे व्यक्तियों को ‘साइलोसाइबिन’ नामक तत्व दिया गया, जिससे उन्हें गहराई तक जाने वाले मानसिक अनुभव हुए। यह एक प्रकार का हॉलुसीनोजेनिक पदार्थ (hallucinogenic substance) है जो मस्तिष्क की चेतना को अलग स्तर पर ले जाता है। परंतु एमआरआई स्कैन में देखा गया कि इन अनुभवों के दौरान मस्तिष्क की कुल गतिविधि बेहद कम थी, यानी कि व्यक्ति गहरे अनुभव से गुजर रहा था लेकिन उसका दिमाग न्यूनतम ऊर्जा का प्रयोग कर रहा था। यह तथ्य आत्मा के ऊर्जा स्वरूप होने की संभावना को और मजबूत करता है।
इस पूरे शोध का निष्कर्ष यह नहीं है कि आत्मा का अस्तित्व पूरी तरह से सिद्ध हो गया है, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि विज्ञान अब उस दिशा में बढ़ रहा है जहां आत्मा जैसी अवधारणाओं को भी वैज्ञानिक भाषा में समझाया जा सकेगा। यह रिसर्च कई ऐसे सवालों के उत्तर देने की कोशिश करता है जो अब तक केवल आध्यात्मिक या धार्मिक दायरे में सीमित थे।
जैसे-जैसे विज्ञान की पकड़ चेतना और मस्तिष्क की गहराइयों तक पहुंच रही है, वैसे-वैसे यह संभावना बढ़ रही है कि आने वाले वर्षों में आत्मा जैसी गूढ़ अवधारणाओं को हम वैज्ञानिक रूप से समझ सकेंगे। अभी बहुत कुछ जानना बाकी है। यह भी संभव है कि आने वाले समय में और शोध हों, जिनसे आत्मा और मृत्यु के बाद की अवस्था के बारे में और स्पष्ट जानकारी मिले। फिलहाल यह शोध इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिसने न केवल वैज्ञानिकों को बल्कि आम लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सचमुच हमारे भीतर कोई ऐसी ऊर्जा है जो शरीर से अलग है, अमर है और मृत्यु के बाद भी सक्रिय रह सकती है।
हमारा शरीर तो मात्र एक भौतिक ढांचा है, जिसे एक दिन मिट जाना है। लेकिन अगर उसमें कोई चेतना, कोई आत्मा है जो शरीर से अलग अस्तित्व रखती है, तो यह हमारे जीवन को समझने का नजरिया ही बदल सकता है। आज जो वैज्ञानिक सवाल उठाए जा रहे हैं, वे कहीं न कहीं हमारी प्राचीन मान्यताओं के बेहद करीब हैं। शायद विज्ञान और अध्यात्म का मिलन अब बहुत दूर नहीं है, और आने वाले वर्षों में हम आत्मा को केवल आस्था का नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक सत्य के रूप में भी पहचान सकेंगे।