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USA’s ‘Golden Dome’ |
दुनिया में जब भी किसी अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की चर्चा होती है, तो सबसे पहले इजराइल के “आयरन डोम” का नाम सामने आता है। यह सिस्टम कई सालों से इजराइल को दुश्मन देशों और आतंकवादी संगठनों से बचाने में अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन अब अमेरिका ने भी अपनी सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए “गोल्डन डोम” नामक एक नए मिसाइल डिफेंस सिस्टम की योजना बनाई है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस डिफेंस शील्ड को प्रस्तावित किया है, जो अमेरिका को संभावित मिसाइल हमलों से बचाने के लिए डिजाइन किया जाएगा। इस सिस्टम की खासियत यह है कि यह इजराइल के आयरन डोम से अलग और अधिक उन्नत (advanced) होगा, क्योंकि यह पूरे अमेरिका को कवर करेगा और इसमें कई आधुनिक तकनीकों (technologies) का उपयोग किया जाएगा।
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में कांग्रेस को संबोधित करते हुए इस प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग की मांग की थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि इजराइल और अन्य देशों के पास अपने डिफेंस सिस्टम हैं, तो अमेरिका को भी इस तरह की सुरक्षा कवच (shield) की जरूरत है। इस प्रस्ताव के तहत अमेरिका एक राष्ट्रीय स्तर का मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैयार करेगा, जिससे वह बैलिस्टिक मिसाइलों (ballistic missiles) और अन्य संभावित हवाई हमलों से बच सके। ट्रंप ने कहा कि आज की दुनिया बहुत खतरनाक हो चुकी है और अमेरिका को भविष्य में किसी भी बड़े हमले से बचाने के लिए यह सिस्टम बेहद आवश्यक है।
हालांकि, यह विचार नया नहीं है। इस तरह की मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करने की योजना पहले भी बन चुकी है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समय भी “स्ट्रेटेजिक डिफेंस इनिशिएटिव” (Strategic Defense Initiative) नामक एक योजना लाई गई थी, जिसे “स्टार वॉर्स प्रोग्राम” (Star Wars Program) के नाम से भी जाना जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ (Soviet Union) की बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट (intercept) करना था। लेकिन उस समय तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी कि इस तरह का प्रोजेक्ट सफल हो सके। अब, जब तकनीक काफी विकसित हो चुकी है, अमेरिका एक बार फिर से इसे वास्तविकता में बदलने के लिए प्रयासरत है।
गोल्डन डोम सिस्टम को 27 जनवरी को लॉन्च किया गया था, और इसका उद्देश्य अमेरिका को विभिन्न प्रकार के मिसाइल हमलों से सुरक्षित रखना है। वर्तमान में दुनिया में जो हालात बन रहे हैं, उनमें चीन और रूस जैसे देशों की बढ़ती सैन्य शक्ति को ध्यान में रखते हुए अमेरिका अपनी सुरक्षा को और अधिक मजबूत करना चाहता है। चीन लगातार नई-नई मिसाइल तकनीकों का विकास कर रहा है और उसकी सैन्य शक्ति (military power) भी तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में अमेरिका को अपनी सुरक्षा के लिए एक विश्वसनीय और आधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम की आवश्यकता महसूस हो रही है।
गोल्डन डोम को बनाने के लिए कई अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें स्पेस-बेस्ड इंफ्रारेड सिस्टम (Space-Based Infrared System – SBIRS) की अहम भूमिका होगी। यह सिस्टम पृथ्वी की कक्षा (orbit) में तैनात कई उपग्रहों (satellites) के जरिए काम करेगा। यदि किसी भी देश से अमेरिका की ओर मिसाइल दागी जाती है, तो ये उपग्रह तुरंत उसे ट्रैक (track) करेंगे और मिसाइल की दिशा और गति की सटीक जानकारी देंगे। इसके अलावा, अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में उन्नत रडार सिस्टम और भूमि-आधारित (land-based) सेंसर तैनात किए जाएंगे, जो मिसाइलों की पहचान कर उन्हें नष्ट करने में मदद करेंगे।
जब किसी दुश्मन देश से मिसाइल लॉन्च की जाएगी, तो यह सिस्टम सबसे पहले उसे डिटेक्ट (detect) करेगा। इसके बाद उसकी सटीक लोकेशन (location) और दिशा का निर्धारण किया जाएगा। जब यह पुष्टि हो जाएगी कि मिसाइल अमेरिका के किसी महत्वपूर्ण स्थान पर गिर सकती है, तो तुरंत काउंटर मिसाइल (counter missile) दागी जाएगी, जो हवा में ही उस मिसाइल को नष्ट कर देगी। यह प्रक्रिया कुछ सेकंड्स के भीतर पूरी हो जाएगी, ताकि किसी भी प्रकार का नुकसान न हो।
इस सिस्टम के तहत अमेरिका अपने शिप-बेस्ड (ship-based) और लैंड-बेस्ड मिसाइल सिस्टम को भी एकीकृत करेगा। अमेरिका के पास पहले से ही “THAAD” (Terminal High Altitude Area Defense) नामक एक अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम मौजूद है, जो बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट करने में सक्षम है। गोल्डन डोम इस तरह की सभी मौजूदा (existing) तकनीकों को जोड़कर एक व्यापक (comprehensive) सुरक्षा प्रणाली बनाएगा।
अब सवाल यह उठता है कि गोल्डन डोम और आयरन डोम में क्या अंतर है? इजराइल का आयरन डोम एक छोटा लेकिन अत्यधिक प्रभावी मिसाइल डिफेंस सिस्टम है, जो मुख्य रूप से शॉर्ट-रेंज (short-range) मिसाइलों और रॉकेट हमलों से बचाने के लिए विकसित किया गया है। इजराइल को लगातार हमास (Hamas) और हिज़्बुल्लाह (Hezbollah) जैसे संगठनों से छोटे मिसाइल हमलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए आयरन डोम का डिजाइन इस तरह से किया गया है कि यह कम दूरी की मिसाइलों और रॉकेटों को इंटरसेप्ट कर सके। दूसरी ओर, गोल्डन डोम पूरे अमेरिका को सुरक्षित रखने के लिए विकसित किया जाएगा और यह बैलिस्टिक मिसाइलों, क्रूज़ मिसाइलों (cruise missiles) और अन्य उच्च क्षमता वाली मिसाइलों को भी रोकने में सक्षम होगा।
इस प्रोजेक्ट को लागू करने के लिए अमेरिकी सरकार ने कई बड़ी रक्षा कंपनियों (defense companies) से प्रस्ताव मांगे हैं। इसमें लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin), रेथियॉन (Raytheon) और अन्य प्रमुख कंपनियां शामिल हैं, जो उन्नत मिसाइल डिफेंस टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं। अमेरिका की योजना है कि 2026 तक इस सिस्टम का एक प्रोटोटाइप (prototype) विकसित कर लिया जाए और 2028-2029 तक इसे पूरी तरह से लागू कर दिया जाए।
अब यदि हम भारत की बात करें, तो भारत भी अपने मिसाइल डिफेंस सिस्टम को लगातार विकसित कर रहा है। हाल ही में डीआरडीओ (DRDO) ने “रक्षा कवच” नामक एक एडवांस मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित किया है, जो भारत के महत्वपूर्ण स्थानों और सैन्य ठिकानों (military bases) की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। यह प्रणाली इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर (electronic warfare), लेजर आधारित हथियारों (laser weapons) और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करती है। हालांकि, यह अभी पूरे देश को कवर नहीं करता है, लेकिन भविष्य में इसे और अधिक विस्तारित (expand) किया जा सकता है।
गोल्डन डोम का विकास निश्चित रूप से अमेरिका के सैन्य शक्ति को और अधिक मजबूती देगा और इसे एक अजेय (invincible) रक्षा प्रणाली बनाएगा। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह प्रणाली वास्तविक युद्ध स्थितियों में आयरन डोम की तरह प्रभावी साबित होती है या नहीं। दुनिया के बदलते परिदृश्य (geopolitical scenario) को देखते हुए, अमेरिका की यह नई पहल वैश्विक सुरक्षा (global security) में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।