Jyotish Secrets : 7वें भाव में राहु या केतु क्यों बदल देते हैं शादी की पूरी किस्मत? जानिए ऐसा रहस्य जिसे ज्योतिषी भी छुपाते हैं!

By NCI
On: November 15, 2025 1:59 PM
rahu ketu 7th house

Jyotish Secrets : कुंडली के सप्तम भाव को विवाह, साझेदारी, दांपत्य सुख, जीवनसाथी की प्रकृति और शादी के बाद की स्थिरता से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यह केवल विवाह का प्रतीक नहीं है, बल्कि रिश्तों की गहराई, आकर्षण, समझ, सहयोग, नैतिकता और भावनात्मक संतुलन का भी कारक है। जब इस अत्यंत संवेदनशील भाव में राहु या केतु प्रवेश करते हैं—तो यह व्यक्ति के जीवन में ऐसे परिवर्तन लाते हैं जिन्हें सामान्य लोग समझ नहीं पाते। यहां राहु–केतु का प्रभाव सबसे ज़्यादा रहस्यमय, अप्रत्याशित और कभी-कभी क्रांतिकारी माना जाता है। कारण यह है कि दोनों ही “छाया ग्रह” हैं, और छाया का स्वभाव हमेशा या तो भ्रम पैदा करना होता है, या फिर अचानक सच्चाई सामने ला देना। यही कारण है कि सप्तम भाव में राहु या केतु का होना व्यक्ति के विवाह को जितना प्रभावित करता है, उतना कोई और ग्रह नहीं करता, और यही वजह है कि ज्योतिष में इसे सबसे रहस्यों से भरा योग माना गया है।

सबसे पहले बात करते हैं सप्तम भाव में राहु की। राहु एक ऐसा ग्रह है जो इच्छाओं, जुनून, लालसा, असामान्य आकर्षण, विदेशीता, वर्जित चीज़ों, भ्रम और अप्रत्याशित परिस्थितियों का कारक है। जब राहु विवाह के घर में आता है, तो व्यक्ति के मन में शादी या रिश्तों को लेकर एक अलग ही तरह का आकर्षण या जिज्ञासा जन्म लेती है। वह सामान्य रिश्तों से जल्दी संतुष्ट नहीं होता, बल्कि कुछ “अलग”, “असामान्य” या कभी-कभी “ग़ैर-पारंपरिक” चीज़ों की ओर खिंचता है। ऐसे लोग अक्सर प्रेम, विवाह या साझेदारी में ऐसी परिस्थितियाँ अनुभव करते हैं जो समाज की सामान्य सीमा से बाहर होती हैं—जैसे अंतर-जातीय संबंध, अंतर-धार्मिक विवाह, आयु अंतर वाला संबंध, विदेशी जीवनसाथी, इंटरनेट या दूर-दराज़ के स्थानों पर मिलने वाले रिश्ते, या फिर बेहद आकर्षक लेकिन जटिल साथी। राहु व्यक्ति को चुंबकीय बनाता है—ऐसा इंसान जो दूसरों को सहज रूप से आकर्षित करता है, परंतु उसके रिश्तों में स्थिरता बनाए रखना कठिन हो जाता है।

राहु की वजह से व्यक्ति अक्सर जीवनसाथी के प्रति बहुत अधिक अपेक्षाएँ रखता है—वह चाहता है कि साथी आकर्षक हो, समझदार हो, आधुनिक विचारों वाला हो, और उसे निरंतर उत्साह या रोमांच प्रदान करे। लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब वास्तविक जीवन में ये अपेक्षाएँ पूरी नहीं होतीं। तब राहु संबंधों में भ्रम, असुरक्षा, झूठ या अधूरी इच्छाओं का जाल बुन देता है। कई बार राहु सप्तम भाव वाले लोगों के जीवन में दोहरी स्थितियाँ भी आती हैं—यानी व्यक्ति एक रिश्ता निभाते हुए दूसरे संबंध की ओर भी आकर्षित हो सकता है। कुछ मामलों में यह योग “देर से विवाह” का भी कारण बनता है, क्योंकि व्यक्ति को वह साथी ढूंढने में समय लगता है जो उसकी आंतरिक आकांक्षाओं को पूरा कर सके।

अब बात करते हैं सप्तम भाव में केतु की, जो राहु का ठीक उल्टा लेकिन उतना ही शक्तिशाली प्रभाव देता है। केतु वैराग्य, विरक्ति, आध्यात्मिकता, पूर्वजन्म के कर्म, अंतर्ज्ञान और अतीत से जुड़े अनुभवों का प्रतिनिधित्व करता है। जब केतु विवाह के घर में बैठता है, तो व्यक्ति के विवाह और रिश्तों के प्रति दृष्टिकोण बहुत अलग हो जाता है। ऐसा व्यक्ति प्रेम या विवाह से बहुत अधिक उम्मीदें नहीं रखता—वह रिश्तों को गहराई से समझता है, लेकिन उन पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहता। यह व्यक्ति या तो विवाह के प्रति उदासीन हो सकता है, या विवाह में होने के बावजूद मानसिक रूप से थोड़ा दूरी महसूस कर सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि केतु रिश्ते खराब करता है, बल्कि यह व्यक्ति को भावनात्मक स्तर पर साधारण चीज़ों से निराश होने की प्रवृत्ति देता है। उसे एक साधारण या पारंपरिक शादी में संतुष्टि नहीं मिलती; उसे या तो आध्यात्मिक रूप से परिपक्व साथी चाहिए, या ऐसा संबंध चाहिए जो सामान्य रिश्तों से अलग किसी ऊँचे उद्देश्य से जुड़ा हो।

केतु सप्तम भाव में अक्सर “अचानक विवाह”, “अचानक अलगाव”, या “अचानक भावनात्मक परिवर्तन” जैसे अनुभव कराता है। यह व्यक्ति कभी-कभी ऐसे साथी से विवाह कर बैठता है जिससे वह वास्तव में गहराई से जुड़ा नहीं होता, या फिर विवाह के बाद उसे एहसास होता है कि उसे अपनी स्वतंत्रता अधिक प्रिय है। कई बार केतु ऐसे साथी को आकर्षित करता है जो आध्यात्मिक, रहस्यमय, भावनात्मक रूप से संवेदनशील या कभी-कभी मानसिक रूप से कमजोर भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त, केतु मंगल, शनि या राहु के साथ कोई संबंध बना ले, तो रिश्तों में गलतफहमियाँ, दूरी, एकतरफा प्रयास या संदेह जैसी स्थितियाँ भी उत्पन्न हो सकती हैं।

अब सवाल उठता है कि राहु और केतु में से कौन ज्यादा प्रभाव डालता है?
उत्तर सरल है—दोनों का असर अलग तरह से होता है। राहु रिश्तों में “अत्यधिक लालसा और भ्रम” लाता है, जबकि केतु “कम अपेक्षाएँ या भावनात्मक दूरी” उत्पन्न करता है। परिणाम दोनों के अपने होते हैं—एक रिश्ता बनाता भी है और तोड़ भी सकता है, यह इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति अपनी ऊर्जा को कैसे दिशा देता है।

अब जीवनसाथी की प्रकृति पर इनके प्रभाव की बात करते हैं। सप्तम भाव राहु वाला व्यक्ति अक्सर ऐसा साथी पाता है जो देखने में आकर्षक, आधुनिक, बिंदास, हमेशा व्यस्त, कभी-कभी स्वार्थी या रहस्यमय प्रवृत्ति का होता है। कई बार साथी का जन्म विदेशी संस्कृति या दूर के स्थान से भी जुड़ जाता है। वहीं सप्तम भाव केतु वाला व्यक्ति अक्सर ऐसा साथी पाता है जो शांत, अंतर्मुखी, आध्यात्मिक या भावनात्मक रूप से अप्रकट होता है। कभी-कभी ऐसा साथी बहुत अधिक संवेदनशील या अपने आप में रहने वाला भी हो सकता है। अगर किसी की कुंडली में सप्तम भाव में राहु या केतु हों, तो यह भी देखा जाता है कि विवाहोपरांत जीवन में उतार-चढ़ाव, भ्रम, संघर्ष या दूरी के अनुभव सामान्य से अधिक होते हैं। लेकिन यह केवल तब होता है जब कुंडली में शुभ ग्रहों का संतुलन नहीं होता। उदाहरण के लिए, अगर गुरु की दृष्टि राहु/केतु पर हो, तो विवाह बेहद सुखद, स्थिर और आध्यात्मिक हो जाता है। शुक्र का प्रभाव रिश्ते में मिठास लाता है, चंद्रमा का प्रभाव भावनात्मक स्थिरता देता है, और मंगल या शनि के संतुलित प्रभाव से जिम्मेदारी और वफादारी बढ़ती है।

अब बात करते हैं राहु/केतु के उपायों की।
1️⃣ राहु के लिए “ॐ रां राहवे नमः” मंत्र का जप मन को स्थिर करता है और रिश्तों में भ्रम को खत्म करता है।
2️⃣ केतु के लिए “ॐ कें केतवे नमः” मंत्र व्यक्ति को भावनात्मक स्पष्टता और आत्मिक शांति देता है।
3️⃣ बुधवार, शनिवार और रविवार को छाया ग्रहों का संतुलन करने के लिए दान जैसे काले तिल, कंबल, नारियल, लोहे की वस्तुएँ लाभकारी रहता है।
4️⃣ राहु/केतु से प्रभावित व्यक्तियों के लिए ध्यान, प्राणायाम और मन की शुद्धि का अभ्यास सबसे प्रभावी उपाय माना गया है।

अंततः कहा जा सकता है कि सप्तम भाव में राहु या केतु विवाह को नाश करने नहीं आते—वे केवल आपकी आत्मा की अधूरी सीखें पूरी करवाते हैं। राहु आपको सिखाता है कि इच्छा और लालसा में संतुलन जरूरी है। केतु आपको सिखाता है कि संबंध तभी पूर्ण होते हैं जब आप स्वयं पूर्ण हों। दोनों ग्रह आत्मा को एक गहरी यात्रा पर ले जाते हैं—जहाँ प्रेम केवल एक भाव नहीं, बल्कि एक समझ बनकर सामने आता है। इसलिए अगर आपकी कुंडली में सप्तम भाव में राहु या केतु हैं, तो डरने की नहीं, समझने और संतुलन बनाने की जरूरत है—क्योंकि यही योग आपको वह प्रेम और अनुभव दे सकते हैं जो किसी साधारण जन्म में संभव नहीं होता।

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