Manglik Dosha : भारतीय ज्योतिष में “मांगलिक दोष” या “मंगल दोष” का नाम आते ही लोगों के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ उभर आती हैं। किसी भी विवाह की चर्चा शुरू हो, तो सबसे पहले यह सवाल उठता है — “लड़का या लड़की मांगलिक तो नहीं?” यह शब्द सुनते ही माता-पिता, पंडित और रिश्तेदारों की निगाहें कुंडली पर टिकी रह जाती हैं, मानो यह दोष व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी बाधा हो। लेकिन क्या सच में मंगल दोष इतना खतरनाक है जितना उसे बना दिया गया है? क्या यह विवाह टूटने या असफल होने का कारण बनता है? या यह सब केवल परंपरा में रची-बसी एक गलतफहमी है? आइए आज हम विस्तार से समझते हैं कि मांगलिक दोष की सच्चाई क्या है, यह कब बनता है, कब इसका असर होता है, और कब यह बिल्कुल भी भय का कारण नहीं होता।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि मंगल ग्रह क्या दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मंगल, जिसे अंग्रेज़ी में Mars कहा जाता है, एक अग्नि तत्व ग्रह है। यह ऊर्जा, साहस, बल, पराक्रम, आत्मविश्वास, युद्ध कौशल और इच्छा शक्ति का कारक है। यह ग्रह तेज़ी, निर्णय क्षमता और क्रियाशीलता का प्रतीक है। लेकिन जब यही ऊर्जा असंतुलित हो जाती है, तो यह क्रोध, अहंकार, हिंसा, और असहिष्णुता के रूप में प्रकट होती है। इसी असंतुलन को ज्योतिष में “मंगल दोष” कहा जाता है। जब किसी की कुंडली में मंगल कुछ विशेष भावों में स्थित होता है, तो माना जाता है कि वह व्यक्ति अपने जीवनसाथी के साथ तालमेल बनाने में कठिनाई महसूस करेगा — क्योंकि उसका स्वभाव अत्यधिक उग्र या आवेगपूर्ण हो सकता है।
अब सवाल उठता है कि यह “दोष” किन स्थितियों में बनता है। ज्योतिष के अनुसार, यदि मंगल ग्रह प्रथम (लग्न), चतुर्थ (4th), सप्तम (7th), अष्टम (8th) या द्वादश (12th) भाव में स्थित हो, तो मांगलिक दोष बनता है। इन भावों का विवाह और गृहस्थ जीवन से गहरा संबंध होता है — पहला भाव व्यक्ति का स्वभाव, चौथा घर घरेलू सुख, सातवाँ घर विवाह, आठवाँ घर वैवाहिक जीवन की गहराई और बारहवाँ घर शयन और मानसिक संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है। जब मंगल इन भावों में आता है, तो यह व्यक्ति के जीवन में उग्रता, तकरार या भावनात्मक असंतुलन ला सकता है। इसलिए इन भावों में मंगल की उपस्थिति को “मांगलिक स्थिति” कहा गया है।
लेकिन यह बात समझना बेहद जरूरी है कि हर मंगल दोष समान नहीं होता। मंगल किस राशि में है, किस भाव में है, किन ग्रहों से दृष्टि प्राप्त कर रहा है — यह सब उसके फल को पूरी तरह बदल देता है। उदाहरण के लिए, यदि मंगल मेष, वृश्चिक या मकर राशि में हो (जो उसकी अपनी या उच्च राशियाँ हैं), तो वह दोष नहीं बल्कि शक्ति देता है। ऐसा व्यक्ति ऊर्जावान, रक्षक और परिवार के प्रति समर्पित होता है। वहीं अगर मंगल कन्या या कर्क जैसी राशियों में हो और शनि या राहु के प्रभाव में आ जाए, तो यह क्रोध, झगड़ा या वासनात्मक असंतुलन ला सकता है। इसलिए किसी भी कुंडली को देखकर केवल “मंगल दोष है या नहीं” कह देना ज्योतिष की गहराई का अपमान है — असल विश्लेषण तो पूरे ग्रह योगों, दृष्टियों और दशाओं को देखकर ही किया जा सकता है।
कई लोग यह भी नहीं जानते कि मांगलिक दोष “कटता” भी है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल के साथ शुभ ग्रह (जैसे गुरु, चंद्र, शुक्र या बृहस्पति) की दृष्टि या युति हो, तो मंगल की उग्रता शांत हो जाती है। उदाहरण के लिए, गुरु की दृष्टि मंगल पर पड़ने से वह व्यक्ति संयमी, धर्मपरायण और विवेकशील बन जाता है — ऐसा मंगल अब किसी को हानि नहीं देता। इसी तरह चंद्रमा की उपस्थिति मंगल को कोमलता देती है। शुक्र की दृष्टि मंगल को प्रेमपूर्ण दिशा देती है। और अगर मंगल अपने “उच्च स्थान” यानी मकर में हो, तो वह सबसे बलवान और शुभ परिणाम देने वाला बन जाता है।
अब पुरुष और स्त्री की कुंडली में मंगल दोष के प्रभाव की बात करते है। पुरुष की कुंडली में मंगल विवाह के सातवें भाव या अष्टम भाव में होने पर जीवनसाथी के साथ विवाद, अधीरता या क्रोध की प्रवृत्ति ला सकता है। यह व्यक्ति प्रेम में सच्चा तो होता है, पर कभी-कभी अपनी बात थोपने की आदत बना लेता है। वहीं स्त्री की कुंडली में यही मंगल अगर सातवें या आठवें भाव में है, तो वह जीवनसाथी के स्वभाव पर गहरा असर डालता है। ऐसी स्त्री अत्यधिक ऊर्जावान, महत्वाकांक्षी और आत्मनिर्भर होती है — लेकिन यदि उसका साथी उससे कम ऊर्जा वाला हो, तो रिश्ता संतुलन खो देता है। यही असंतुलन मांगलिक विवाहों में संघर्ष का कारण बनता है।
अब आते हैं उस भ्रम पर जिसने इस दोष को सबसे विवादास्पद बना दिया — “मांगलिक व्यक्ति से विवाह करने पर जीवनसाथी की मृत्यु हो सकती है।” यह धारणा पूरी तरह से गलत और अतिशयोक्तिपूर्ण है। यह विचार प्राचीन काल में तब बना जब विवाह बहुत छोटी उम्र में होते थे, और कुंडली को देखकर यह अनुमान लगाया जाता था कि व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध या कठोरता वैवाहिक जीवन के लिए चुनौती बन सकती है। उस समय इसे रूपक रूप में “पति या पत्नी की आयु पर असर” कहा गया, जो धीरे-धीरे अंधविश्वास में बदल गया। आज के युग में जब सामाजिक परिस्थितियाँ, मानसिक परिपक्वता और जीवनशैली सब बदल चुकी हैं, तो इस दोष को शाब्दिक अर्थ में लेना सही नहीं है। मांगलिक व्यक्ति अक्सर अपने जीवनसाथी के लिए सुरक्षात्मक और समर्पित भी होते हैं, यदि वे अपनी ऊर्जा को सही दिशा में उपयोग करें।
अब कुंडली मिलान की बात करते हैं । जब दो लोगों की शादी के लिए कुंडलियाँ मिलाई जाती हैं, तो उसमें “अष्टकूट मिलान” के साथ-साथ मांगलिक दोष का भी विश्लेषण किया जाता है। यदि दोनों ही व्यक्ति मांगलिक हों, तो यह दोष “कट” जाता है। इसे मांगलिक से मांगलिक विवाह कहा जाता है। इसके पीछे ज्योतिषीय तर्क यह है कि दोनों की ऊर्जाएँ समान होने के कारण एक-दूसरे को समझ पाते हैं। कई बार यदि एक व्यक्ति में हल्का मंगल दोष हो और दूसरे में शुभ ग्रहों के प्रभाव से संतुलन हो, तब भी विवाह सफल रहता है। इसलिए, “मांगलिक व्यक्ति से शादी नहीं करनी चाहिए” — यह कहना अंधविश्वास है। असल बात यह है कि ऊर्जा का मेल होना चाहिए, दोष का नहीं।
आठवाँ भाव मांगलिक दोष में सबसे संवेदनशील माना जाता है क्योंकि यह विवाहोपरांत जीवन की गहराई, विश्वास और शारीरिक निकटता से जुड़ा है। यहाँ मंगल व्यक्ति को कभी-कभी संदेहशील या भावनात्मक रूप से तीव्र बना सकता है। लेकिन अगर यही मंगल शुभ दृष्टि में हो, तो वही व्यक्ति अत्यंत वफादार और समर्पित साथी बनता है। इसी प्रकार बारहवाँ भाव मंगल को कभी-कभी वासना या मानसिक असंतुलन से जोड़ता है, लेकिन वहीं से आध्यात्मिक ऊर्जा का भी जन्म होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति अपनी भावनाओं को किस दिशा में ले जाता है।
अब मांगलिक दोष के निवारण (उपाय) पर आते हैं। ज्योतिष में कहा गया है कि यदि मंगल की स्थिति अशुभ प्रभाव दे रही हो, तो उसे संतुलित करने के लिए कुछ सरल उपाय किए जा सकते हैं।
1️⃣ मंगलवार का व्रत रखना और हनुमान जी की पूजा करना अत्यंत प्रभावशाली होता है क्योंकि मंगल देव हनुमान के अधीन माने गए हैं।
2️⃣ मंगल बीज मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः” का 108 बार जप करना।
3️⃣ तांबे का कड़ा या तांबे के बर्तन में जल रखकर पीना, यह मंगल की उग्रता को शांत करता है।
4️⃣ रक्तदान करना या लाल वस्त्र पहनना मंगल की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देता है।
5️⃣ कुंभ विवाह या पीपल-विवाह जैसे पारंपरिक उपाय भी पुराने समय से प्रचलित हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से दोष-शमन का कार्य करते हैं — हालांकि आज के समय में मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन ही सबसे प्रभावी उपाय है।
मांगलिक दोष को लेकर समाज में जो भय फैला है, वह असल में ज्योतिष के अपूर्ण ज्ञान से उपजा है। सच्चाई यह है कि मांगलिक व्यक्ति जीवन में अत्यधिक ऊर्जावान, समर्पित और जुनूनी होते हैं। वे प्रेम को सतही नहीं, बल्कि गहराई से जीते हैं। उनका स्वभाव सीधे-सादे लोगों के लिए तीव्र हो सकता है, लेकिन यदि उन्हें समझने वाला साथी मिल जाए, तो वे दुनिया के सबसे वफादार और भरोसेमंद जीवनसाथी साबित होते हैं। इसलिए, कुंडली देखते समय केवल “मंगल दोष” देखकर डरने की जगह यह समझना चाहिए कि मंगल ऊर्जा है — और ऊर्जा को डर से नहीं, दिशा से नियंत्रित किया जाता है। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में बार-बार वैवाहिक तनाव, गुस्सा या असंतोष महसूस कर रहा है, तो यह जरूरी नहीं कि उसके पास मांगलिक दोष हो। यह भी संभव है कि उसके ग्रह दशा या भाव परिवर्तन का असर हो। इसीलिए अनुभवी ज्योतिषी हमेशा कहते हैं — कभी केवल एक ग्रह देखकर निर्णय न लो। ग्रह हमें दिशा दिखाते हैं, लेकिन कर्म हमारा भविष्य बनाते हैं। मंगल हमें यह सिखाता है कि ऊर्जा हमेशा हमारे भीतर होती है; सवाल यह है कि हम उसे विनाश की ओर मोड़ते हैं या सृजन की ओर। अंततः कहा जा सकता है कि मांगलिक दोष कोई श्राप नहीं है, बल्कि एक संकेत है — कि व्यक्ति को अपने क्रोध, आवेग और भावनाओं को संतुलित रखना चाहिए। अगर यह संतुलन बन जाए, तो यही मंगल उसे शक्ति, साहस, प्रेम और सफलता का वरदान देता है। इसलिए अगली बार जब कोई कहे “ये लड़का या लड़की मांगलिक है”, तो डरने की जगह यह सोचो “वाह, इसका मंगल तो प्रबल है, बस दिशा चाहिए!” क्योंकि जब मंगल जाग्रत होता है, तो व्यक्ति अपने जीवन में असंभव को भी संभव कर सकता है।










