इन दिनों अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप का नाम सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह कुछ अलग है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने अमेरिका यात्रा के दौरान एक ऐसा बयान दिया है, जिससे नई बहस छिड़ गई है। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को टालने में ट्रंप ने अहम भूमिका निभाई है, खासकर जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ और तनाव काफी बढ़ गया था।
आसिम मुनीर के इस बयान ने न सिर्फ भारतीय रणनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई सवाल खड़े कर दिए हैं। ट्रंप पहले भी कई बार खुद को “शांति पुरुष” बताने में पीछे नहीं रहे हैं। वे अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी हो या उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से मुलाकात—हर मौके पर उन्होंने खुद को वैश्विक शांति के लिए समर्पित नेता के तौर पर पेश किया है। लेकिन अब पाकिस्तान द्वारा की गई यह नॉमिनेशन की मांग कहीं न कहीं ट्रंप की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और उनकी ‘नोबेल भूख’ की पुष्टि करती नजर आ रही है।
नोबेल पुरस्कार की चाह: ट्रंप की रणनीति या संयोग?
डोनाल्ड ट्रंप की बात करें तो वे पहले भी साल 2020 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किए जा चुके हैं। उस समय नॉर्वे के सांसद क्रिस्टियन टाइब्रिंग गजेडे ने ट्रंप को इज़राइल और यूएई के बीच ऐतिहासिक अब्राहम समझौते में भूमिका निभाने के लिए नामित किया था। हालांकि ट्रंप उस बार यह पुरस्कार नहीं जीत सके। अगर वे इस बार यह पुरस्कार जीतते हैं, तो वह अमेरिका के पांचवें राष्ट्रपति होंगे जिन्हें यह सम्मान प्राप्त होगा। उनसे पहले अमेरिका के जिन राष्ट्रपतियों को नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है, उनमें थियोडोर रूजवेल्ट (1906), वुडरो विल्सन (1919), जिमी कार्टर (2002), और बराक ओबामा (2009) शामिल हैं।
लेकिन बराक ओबामा को जब यह पुरस्कार मिला था, तो खुद ट्रंप ने उसकी आलोचना की थी। उन्होंने यह तक कह दिया था कि “ओबामा को शांति का पुरस्कार मिला, लेकिन मुझे तो शांति करनी आती है!” ट्रंप का यह बयान उनकी मनोस्थिति और इस पुरस्कार को लेकर गहरी इच्छा को दर्शाता है।
भारत-पाक के बीच सीजफायर: क्या ट्रंप की भूमिका रही वाकई अहम?
भारत हमेशा से कहता रहा है कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता, खासकर जब बात पाकिस्तान से रिश्तों की हो। भारत का आधिकारिक रुख यह है कि दोनों देशों के बीच सभी मुद्दे द्विपक्षीय तरीके से सुलझाए जाएंगे। लेकिन इसके बावजूद ट्रंप ने कई बार यह दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करने का अनुरोध किया है, जिसे भारत सरकार ने बार-बार खारिज किया।
हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों में तनाव चरम पर पहुंच गया था। इस बीच ट्रंप ने एक्स (पहले ट्विटर) पर भारत-पाक के बीच सीजफायर की बात साझा की, जिससे यह धारणा बनी कि उन्होंने पर्दे के पीछे कुछ कूटनीतिक प्रयास किए होंगे। हालांकि भारत की तरफ से इसका कोई आधिकारिक समर्थन नहीं मिला।
पाकिस्तान की राजनीति में ट्रंप की एंट्री: क्या अमेरिका से नए समीकरण बन रहे हैं?
पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर के इस बयान को केवल ट्रंप के पक्ष में समर्थन कहना काफी नहीं होगा। इसे पाकिस्तान की अमेरिकी नीतियों की तरफ झुकाव और नये रिश्तों की शुरूआत के रूप में भी देखा जा सकता है। पाकिस्तान इन दिनों गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। IMF की शर्तों और FATF की निगरानी में फंसे पाकिस्तान को पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के समर्थन की सख्त जरूरत है। ऐसे में ट्रंप की तारीफ कर के और उन्हें नोबेल दिलाने की सिफारिश कर के पाकिस्तान शायद अमेरिका की अच्छी किताबों में अपनी जगह पक्की करना चाहता है।
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने अमेरिका की सराहना की हो। अतीत में भी पाकिस्तान ने जब-जब अंतरराष्ट्रीय दबाव में आया, उसने अमेरिका को कूटनीतिक तौर पर करीब लाने की कोशिश की। आसिम मुनीर का यह बयान इसी दिशा में एक और कदम है।
नोबेल पुरस्कार कैसे मिलता है और ट्रंप को क्यों नहीं मिला अब तक?
नोबेल शांति पुरस्कार के चयन की प्रक्रिया बेहद गोपनीय और नियमबद्ध होती है। किसी भी व्यक्ति को खुद से इसके लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं होती। केवल मान्यता प्राप्त संस्थाएं या पूर्व विजेता, सांसद, यूनिवर्सिटी प्रोफेसर, या किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन के वरिष्ठ सदस्य ही किसी व्यक्ति या संस्था को नामांकित कर सकते हैं। इसके बाद नॉर्वे की नोबेल कमेटी उस नाम पर विचार करती है और लंबी प्रक्रिया के बाद ही अंतिम निर्णय लेती है।
ट्रंप को लेकर स्थिति यह रही है कि उन्होंने शांति वार्ता की पहल तो कई बार की, लेकिन ज्यादातर मामलों में सफलता नहीं मिली। चाहे वो उत्तर कोरिया का मामला हो, अफगानिस्तान से वापसी का मामला हो या फिर रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने की कोशिश—ट्रंप की कोशिशें या तो अधूरी रहीं या विफल रहीं। यही वजह है कि उन्हें अब तक यह प्रतिष्ठित पुरस्कार नहीं मिल सका।
क्या ट्रंप को मिलेगा नोबेल? क्या यह दुनिया के लिए अच्छा संकेत होगा?
ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में शामिल होने से यह सवाल भी उठता है कि क्या शांति के लिए प्रयास करना ही काफी है, या उसके परिणाम भी जरूरी हैं? नोबेल पुरस्कार सिर्फ पहल के लिए नहीं बल्कि असरदार और स्थायी परिणामों के लिए दिया जाता है। क्या ट्रंप का कोई भी प्रयास दुनिया में स्थायी शांति ला पाया है? इस पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है।
लेकिन एक बात तय है—ट्रंप इस पुरस्कार को पाने के लिए बेताब हैं और उनके समर्थक इस बात को लेकर पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस बार उन्हें यह सम्मान मिल सके। पाकिस्तान जैसे देश शायद इसी राजनीतिक भूख का फायदा उठाकर खुद के लिए कुछ समर्थन जुटाना चाह रहे हैं।
निष्कर्ष: ट्रंप, नोबेल और दक्षिण एशिया की बदलती चालें
आसिम मुनीर का बयान केवल एक व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया की जटिल राजनीति और अमेरिका के साथ बदलते रिश्तों का संकेत है। नोबेल शांति पुरस्कार एक प्रतिष्ठा का विषय है, और जब इसे राजनीति के दांव-पेंच में उलझाया जाता है, तो यह प्रश्न उठना लाज़मी है कि क्या शांति अब एक राजनीतिक मोहरा बन चुकी है?
भविष्य में ट्रंप को यह पुरस्कार मिलेगा या नहीं, यह तो समय बताएगा। लेकिन इतना जरूर है कि इस बहाने पाकिस्तान ने अमेरिका को एक संदेश देने की कोशिश की है—”हमें आपकी जरूरत है, और हम आपकी इच्छाओं के अनुरूप ही बोलने को तैयार हैं।”
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