डोनाल्ड ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ (America First) एजेंडा एक बार फिर चर्चा में है। वे चाहते हैं कि अमेरिका में बिकने वाला हर उत्पाद वहीं निर्मित हो, जिसमें प्रमुखता से Apple के iPhone का नाम आता है। ट्रंप का मानना है कि भारत जैसे देशों में उत्पादन होने से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। इसके लिए उन्होंने Apple के CEO टिम कुक से सीधा संवाद किया है और धमकी भी दी है कि यदि iPhone अमेरिका में नहीं बने तो 26% तक टैक्स (tariff) लगाया जाएगा। यह नीति वैश्विक व्यापार के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है, खासतौर पर भारत जैसे उभरते मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए।
ट्रंप ने न सिर्फ भारत को चेताया बल्कि बांग्लादेश को लेकर भी तीखे बयान दिए। यह स्पष्ट है कि वे चाहते हैं कि अमेरिका की धुरी पर पूरी दुनिया घूमे। लेकिन आज के भारत को यह बात स्वीकार नहीं है। भारत अब वह देश नहीं रहा जिसे कभी गेहूं के लिए अमेरिका की चौखट पर जाना पड़ता था। आज भारत चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और ट्रंप जैसे नेताओं के दबाव में आने वाला नहीं है।
iPhone, जो कभी पूरी तरह चीन में बनता था, अब धीरे-धीरे भारत की ओर शिफ्ट हो रहा है। Foxconn जैसी विशाल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी तमिलनाडु में पहले से ही बड़े स्तर पर निवेश कर चुकी है। 13,000 करोड़ रुपये की लागत से लगाए गए प्लांट में हजारों भारतीयों को रोजगार मिला है। iPhone 16 Pro जैसे प्रीमियम मॉडल की असल लागत करीब ₹47,000 होती है, जिसमें प्रोसेसर ताइवान, डिस्प्ले कोरिया और बैटरी चीन से आती है। भारत इस चेन में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहा है।
Foxconn के साथ-साथ Tata Electronics और Pegatron जैसी कंपनियां भी भारत में Apple के निर्माण को बढ़ावा दे रही हैं। यह भारत की पीएलआई (Production Linked Incentive) स्कीम के कारण संभव हो पाया है, जिसमें कंपनियों को सब्सिडी और टैक्स लाभ दिए जाते हैं। यही कारण है कि अब Apple भारत में अपने उत्पादन का 14% कर चुका है, और 2028 तक इसे 25% करने का लक्ष्य रखा गया है।
चीन लंबे समय से Apple के निर्माण का गढ़ रहा है, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद से हालात बदलने लगे हैं। Apple को अब भरोसा नहीं कि अगली महामारी में चीन कितना भरोसेमंद रहेगा। दूसरी ओर, भारत में जनसंख्या अधिक है, लेबर सस्ती है और पॉलिसी सपोर्ट लगातार मजबूत हो रहा है। यही कारण है कि भारत अब Apple की नजरों में भरोसेमंद विकल्प बनता जा रहा है।
भारत की मिडिल क्लास जनसंख्या भी बड़ी भूमिका निभा रही है। लगभग 78% लोग मिडिल क्लास में आते हैं, जिनकी iPhone के प्रति चाहत बहुत अधिक होती है। भले ही उन्हें वह फोन खरीदने में दिक्कत हो, लेकिन प्रतीकात्मक तौर पर iPhone स्टेटस सिंबल बना हुआ है। Apple के लिए यह वर्ग संभावित ग्राहक है, जिससे वह अरबों डॉलर का मुनाफा कमा सकता है।
भारत की अर्थव्यवस्था अब 4.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है। जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए भारत अब विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अमेरिका अभी भी पहले नंबर पर है, लेकिन भारत की तेज़ी से बढ़ती ग्रोथ अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है। यही कारण है कि ट्रंप जैसे नेता भारत की बराबरी से घबराते हैं।
भारत की नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि 2030 तक भारत 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है। इसके लिए जरूरी है कि भारत मैन्युफैक्चरिंग, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में निवेश करे। Apple जैसे ब्रांड्स का भारत में आना इसी दिशा में एक मजबूत कदम है, जिससे लाखों नौकरियां पैदा होंगी और भारत का वैश्विक रुतबा भी बढ़ेगा।
डोनाल्ड ट्रंप के बयान, जैसे “iPhone अमेरिका में बनेगा, न कि भारत में,” सिर्फ एक नेता की व्यक्तिगत राय नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक रणनीति का हिस्सा हैं। हालांकि ये बयान अक्सर वैश्विक व्यापार की वास्तविकता से कटे होते हैं। जब दुनिया भर की कंपनियां ‘चीन प्लस वन’ रणनीति पर काम कर रही हैं, तब भारत उन्हें एक सुरक्षित, सस्ता और स्थिर विकल्प प्रदान करता है।
भारत का लोकतांत्रिक ढांचा, बेहतर कानून व्यवस्था और नीति समर्थन इसे निवेश के लिए उपयुक्त बनाते हैं। यही कारण है कि केवल iPhone ही नहीं, बल्कि अन्य टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां भी भारत का रुख कर रही हैं। यह बदलाव ट्रंप की रणनीति को अप्रासंगिक बना देता है।
भारत में iPhone का निर्माण केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव भी लाता है। तमिलनाडु की फैक्ट्री में काम कर रहे 14,000 कर्मचारी इसका उदाहरण हैं। ये न केवल रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि उनके जीवन स्तर में भी सुधार हो रहा है। टेक्नोलॉजी के इस युग में ऐसा निर्माण क्षेत्र युवा पीढ़ी को कौशल (skill) सिखाने का बड़ा अवसर भी है।
Apple ने भारत के लिए जिस तरह की योजनाएं बनाई हैं, वह भविष्य के लिए उज्ज्वल संकेत देती हैं। आने वाले वर्षों में भारत न केवल iPhone का निर्माण करेगा, बल्कि अन्य Apple प्रोडक्ट्स जैसे iPad, Macbook और AirPods का भी उत्पादन करेगा। इससे भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की दिशा में तेज़ी से अग्रसर होगा।
डोनाल्ड ट्रंप का क्रोध इस बात से है कि भारत अब वैश्विक मंच पर अमेरिका की आंखों में आंखें डालकर बात कर सकता है। iPhone जैसी कंपनियों का भारत में निर्माण ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे को चुनौती देता है। लेकिन वह इस सच्चाई को नहीं समझते कि विश्व अब वैश्वीकरण की ओर बढ़ चुका है, जहां व्यापार को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।
भारत जैसे देशों की बढ़ती ताकत अमेरिका को असहज कर रही है। लेकिन यह केवल शुरुआत है। भारत यदि इस गति से बढ़ता रहा तो वह न केवल iPhone का निर्माण करेगा, बल्कि टेक्नोलॉजी की दुनिया में अगुवा बनकर उभरेगा।
भारत अब केवल एक उपभोक्ता बाजार नहीं रहा, बल्कि निर्माता बनकर उभर रहा है। डोनाल्ड ट्रंप का सपना कि iPhone केवल अमेरिका में बने, भारत की धरती पर संभव नहीं होगा। भारत की जनसंख्या, सरकार की नीतियाँ, कुशल जनशक्ति और वैश्विक समर्थन इसे रोकने नहीं देंगे। iPhone का भारत में निर्माण एक नई शुरुआत है। यह न केवल आर्थिक उन्नति की कहानी कहता है, बल्कि आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) के मार्ग पर बढ़ते भारत की गाथा भी है। और यह सफर यहीं नहीं रुकेगा – आने वाले वर्षों में भारत टेक्नोलॉजी, नवाचार और रोजगार के क्षेत्र में दुनिया को नई दिशा देगा।