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Why do Men get Angry at Women? वजह आपको चौंका देगी!

NCIvimarsh1 week ago

Why Are Men Angry at Women?

आजकल समाज में एक नई समस्या उभरकर सामने आ रही है, जो पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ते असंतोष से जुड़ी है। पुरुषों के मन में महिलाओं के प्रति गुस्सा और निराशा क्यों बढ़ रही है? क्या इसकी कोई सामाजिक या मानसिक वजह है? यह एक ऐसा मुद्दा है जो केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुका है। इस समस्या के पीछे कई कारण हैं, जिसमें समाज की बदलती धारणाएँ, सोशल मीडिया का प्रभाव, पुरुषों की असुरक्षाएँ और पारंपरिक मूल्यों का बदलाव शामिल है।

पुरुषों और महिलाओं के संबंधों को अगर हम इतिहास में देखें, तो हमेशा से समाज ने पुरुषों को एक मजबूत और आत्मनिर्भर व्यक्ति के रूप में देखा है। वहीं महिलाओं को परिवार और घर तक सीमित रखा गया था। लेकिन समय के साथ जब महिलाओं ने शिक्षा और कार्यक्षेत्र में कदम रखा, तो यह संतुलन बदलने लगा। महिलाओं ने अपनी आज़ादी और पसंद के लिए लड़ाई लड़ी और धीरे-धीरे वे आत्मनिर्भर होती गईं। यह बदलाव कई पुरुषों के लिए असहज करने वाला था, क्योंकि वे हमेशा से एक पारंपरिक सोच के साथ बड़े हुए थे कि पुरुष ही परिवार का पालनकर्ता होगा और महिलाओं को उन पर निर्भर रहना चाहिए।

सोशल मीडिया और इंटरनेट के युग में इन विचारों को और अधिक बढ़ावा मिला। कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे समुदाय पनपने लगे जहां पुरुष खुद को “इनसेल” (Incel) कहने लगे। इनसेल का मतलब होता है “इन्वॉलेंटरी सेलीबेट” यानी वे पुरुष जो अपनी मर्जी के बिना सिंगल हैं और जिनका मानना है कि महिलाएँ उन्हें नज़रअंदाज़ करती हैं। इन समुदायों में महिलाओं के प्रति नफरत भरी बातें होती हैं, जिसमें कहा जाता है कि महिलाएँ केवल अमीर और आकर्षक पुरुषों को ही पसंद करती हैं और बाकी पुरुषों की अनदेखी करती हैं।

इसका असर यह हुआ कि कई युवा पुरुष खुद को असफल मानने लगे और समाज से कटने लगे। वे महिलाओं को अपनी परेशानियों का ज़िम्मेदार ठहराने लगे। इंटरनेट पर ऐसे कई “मिसोजेनिस्ट” (Misogynist) यानी महिला-विरोधी विचारधारा वाले लोग उभरकर सामने आए, जिन्होंने यह सोच बढ़ाने का काम किया कि महिलाएँ पुरुषों को केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती हैं। इससे पुरुषों में एक मानसिक तनाव बढ़ने लगा, और वे महिलाओं से दूर रहने लगे या फिर उनके प्रति गुस्सा दिखाने लगे।

इसके अलावा, फिल्मों और सोशल मीडिया ने भी इस समस्या को बढ़ाने का काम किया। बॉलीवुड और हॉलीवुड की फिल्मों में अक्सर यह दिखाया जाता है कि एक परफेक्ट पुरुष वही होता है जो लंबा, सुंदर, अमीर और कॉन्फिडेंट हो। जब आम पुरुष खुद को इस परिभाषा से मेल नहीं खाते हुए देखते हैं, तो वे खुद को कमतर समझने लगते हैं और उन्हें लगता है कि महिलाएँ उनकी अनदेखी कर रही हैं। यही सोच धीरे-धीरे गुस्से और फ्रस्ट्रेशन में बदल जाती है।

अक्सर यह भी देखा गया है कि जो पुरुष बचपन से शर्मीले या इंट्रोवर्ट (Introvert) होते हैं, वे लड़कियों से बातचीत करने में हिचकिचाते हैं। उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि लड़कियों से कैसे बातचीत करनी चाहिए या कैसे अपनी भावनाएँ व्यक्त करनी चाहिए। जब वे बड़े होते हैं और उन्हें किसी लड़की से रिजेक्शन (Rejection) मिलता है, तो वे इसे व्यक्तिगत असफलता मान लेते हैं। वे सोचते हैं कि लड़कियाँ केवल चुनिंदा लड़कों को ही पसंद करती हैं और बाकी को नकार देती हैं। इस सोच से पुरुषों में महिलाओं के प्रति नफरत बढ़ती है और वे सोशल मीडिया पर ऐसे समूहों का हिस्सा बन जाते हैं, जहां इस तरह के विचारों को बढ़ावा दिया जाता है।

समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब यह फ्रस्ट्रेशन (Frustration) हिंसा में बदलने लगती है। दुनिया के कई देशों में ऐसे मामले सामने आए हैं जहाँ इनसेल समुदाय से जुड़े पुरुषों ने महिलाओं पर हमले किए हैं। अमेरिका, यूके और कनाडा में कई मामलों में इनसेल पुरुषों ने महिलाओं को मारने की घटनाएँ अंजाम दी हैं। भारत में भी इस तरह के विचार धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं, जो एक चिंता का विषय है।

इस समस्या को हल करने के लिए सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि हर व्यक्ति का अपना महत्व होता है। किसी भी इंसान का मूल्य सिर्फ उसकी शारीरिक बनावट, पैसे या स्टेटस (Status) से नहीं आँका जाना चाहिए। समाज को यह समझना होगा कि हर पुरुष और महिला की अपनी अलग खासियत होती है और हर कोई प्रेम और सम्मान पाने के योग्य है।

पुरुषों को अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। उन्हें बचपन से ही सिखाया जाना चाहिए कि अपने डर और भावनाओं को साझा करना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है। परिवार और स्कूलों में लड़कों को यह सिखाया जाना चाहिए कि महिलाओं को एक इंसान के रूप में देखें, न कि किसी चीज़ के रूप में जो उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए बनी हैं।

साथ ही, सोशल मीडिया और इंटरनेट पर मौजूद जहरीली विचारधाराओं से दूर रहना भी जरूरी है। जो पुरुष इस तरह के विचारों में फँस चुके हैं, उन्हें यह समझना होगा कि महिलाओं से नफरत करने से उनका जीवन बेहतर नहीं होगा। इसके बजाय, उन्हें खुद को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए, अपनी स्किल्स (Skills) को सुधारना चाहिए और एक सकारात्मक सोच अपनानी चाहिए।

इसके अलावा, समाज को भी इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा। सरकार और शिक्षा संस्थानों को इस विषय पर जागरूकता फैलानी चाहिए, ताकि युवाओं को सही दिशा दी जा सके। मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए और पुरुषों को यह अहसास दिलाना चाहिए कि अगर वे अकेलापन या निराशा महसूस कर रहे हैं, तो वे मदद ले सकते हैं।

अंत में, यह समझना जरूरी है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच की यह लड़ाई अनावश्यक है। दोनों ही समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं और दोनों को एक-दूसरे की ज़रूरत होती है। अगर हम एक-दूसरे को समझने और सम्मान देने की कोशिश करें, तो यह समस्या धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। जरूरी है कि हम समाज में सकारात्मकता फैलाएँ और पुरुषों को यह सिखाएँ कि उनकी कीमत केवल उनके बैंक बैलेंस या शरीर की बनावट से नहीं, बल्कि उनके अच्छे विचारों और व्यवहार से आँकी जानी चाहिए।

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