2025 की गर्मी में, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam) में घटी आतंकवादी घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। 22 अप्रैल को पर्यटकों पर हुए हमले में 26 बेगुनाहों की जान चली गई। इसके बाद, भारत सरकार ने ऐतिहासिक और निर्णायक ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation Sindoor) को अंजाम दिया। सेना, वायु सेना और इंटेलिजेंस एजेंसियों ने मिलकर पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) के नौ आतंकी ठिकानों पर सिर्फ 25 मिनट में धावा बोल दिया। कहा जाता है कि इस ऑपरेशन में 100 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया गया। यह हमला ना केवल सैन्य शक्ति का प्रदर्शन था, बल्कि भारत की बदलती डिप्लोमेसी (diplomacy) की भी बड़ी मिसाल बन गई।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद संसद का मानसून सत्र बेहद गरम रहा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर (S. Jaishankar) ने सरकार का पक्ष रखते हुए साफ किया कि भारत ‘जीरो टॉलरेंस’ (zero tolerance) की नीति पर कायम है। विपक्ष ने सरकार से लगातार सवाल पूछे—क्या ऑपरेशन सिंदूर बाहरी दबाव में रोका गया? विपक्ष का मानना था कि जिम्मेदारियाँ तय होनी चाहिए, सुरक्षा चूक की जांच होनी चाहिए, और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) द्वारा मध्यस्थता के दावों पर स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए। हंगामे के बावजूद सरकार ने दो-टूक जवाब दिए—ऑपरेशन सिंदूर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के बाद रोका गया, किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते नहीं।
पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने अपना मामला दुनिया के बड़े मंचों, खासकर संयुक्त राष्ट्र (UN) में बहुत मजबूती से रखा। एस. जयशंकर ने लोकसभा में बताया कि संयुक्त राष्ट्र के 190 में से सिर्फ तीन देशों ने ऑपरेशन सिंदूर का विरोध किया, बाकी सभी भारत के साथ खड़े रहे। भारत की डिप्लोमेसी इतनी मजबूत रही कि दुनिया ने खुलेआम आतंक के विरोध में भारत को सही ठहराया। भारत ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि आतंकवाद (terrorism) के खिलाफ कार्रवाई करना उसका अधिकार है और दुनिया को इसकी सख्त जरूरत है।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंध (diplomatic ties) भी घटा दिए। यहां तक कि 1960 के सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को भी निलंबित कर दिया गया और वीजा व व्यापार की सुविधाएँ बंद कर दी गईं। सीमा (border) पर दोनों सेनाएँ आमने-सामने थीं। मिसाइल हमले, ड्रोन स्ट्राइक, और रोजाना गोलीबारी आम हो गई थी।
विपक्षी नेता गौरव गोगोई (Gaurav Gogoi) ने संसद में पूछ लिया कि आखिर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 26 बार क्यों कह चुके हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच जंग रुकवाई? विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ किया—न तो किसी तरह की ट्रेड (trade) डील थी, न ही ट्रंप ने कोई कॉल किया था। भारत सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान ने ही सैन्य कार्रवाई रोकने का अनुरोध किया, न कि किसी अमेरिकी मध्यस्थता के चलते। भारत ने किसी तरह की बाहरी मध्यस्थता या दबाव को पूरी तरह नकार दिया।
बहस के दौरान एस. जयशंकर ने कांग्रेस और पूर्व सरकारों के रुख पर भी सवाल उठाया। उन्होंने 26/11 हमले के बाद तमाम सरकारों के हल्के रुख का जिक्र किया, जब कई सालों तक पाकिस्तान से बातचीत और सीमाएँ हालात पर भारी थीं। उन्होंने 2009 के शर्म-अल-शेख (Sharm-al-Sheikh) समझौते का मुद्दा उठाया, जिसमें बलूचिस्तान (Balochistan) का जिक्र पहली बार संयुक्त बयान में आया। उस वक्त भी विपक्ष ने आरोप लगाया था कि भारत ने अपनी स्थिति कमजोर कर ली और पाकिस्तान को फायदा पहुंचाया।
2014 के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने विदेश नीति और आतंकी घटनाओं के जवाब में स्पष्ट और आक्रामक रणनीति अपनाई। जयशंकर के मुताबिक, अब भारत केवल डीनायल या बचाव में नहीं, बल्कि जरूरत पड़ने पर कार्रवाई करता है – जैसे सर्जिकल स्ट्राइक या ऑपरेशन सिंदूर। अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) और G20 में भारत जिस दमदारी से बोलता है, उस कारण पूरी दुनिया उसकी बात गंभीरता से लेती है।
विपक्ष का रुख संसद में लगातार बदलता रहा। जब युद्ध नहीं हो रहा था, तब सवाल उठाए जाते थे कि कार्रवाई क्यों नहीं हुई। जब ऑपरेशन हुआ, तो सवाल आ गया कि आखिर इसे बीच में क्यों रोका गया। इस आरोप-प्रत्यारोप के माहौल में जनता भी असमंजस में रही। लेकिन सरकार ने बार-बार दोहराया कि हर फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा और जनता के हित को देखते हुए लिया गया।ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देने के लिए भारतीय सेना ने खास तौर पर ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (Integrated Battle Groups) तैयार किए थे। 2000-3000 सैनिकों वाले ये छोटे-छोटे समूह खास मिशन के लिए तैयार किए गए, जैसे एक सर्जिकल स्ट्राइक की तरह। आतंकियों के अड्डों पर मारक कार्रवाई करने के बाद टुकड़ियाँ वापस लौट आईं। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने पूरी सतर्कता बरती ताकि नागरिकों को कोई नुकसान न पहुंचे, सिर्फ आतंकियों के अड्डे निशाना बने।
संसद की बहस में विपक्ष ने एसएससी (SSC) यानी स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की परीक्षा और उससे जुड़े विवाद भी उठाए। विपक्ष ने मांग की कि ऑपरेशन सिंदूर के साथ-साथ युवाओं के भविष्य और परीक्षा में हुई गड़बड़ियों पर भी चर्चा होनी चाहिए। शिक्षित बेरोजगार युवाओं से भी कहा गया कि वे अपनी आवाज सोशल मीडिया पर उठाएँ और अपनी बात नेताओं तक पहुँचाएँ। जयशंकर ने अपने भाषण में 2009 के शर्म-अल-शेख समझौते का भी पक्ष रखा। उस समझौते में पहली बार पाकिस्तान को बलूचिस्तान मुद्दे पर बात कराने का मौक़ा मिला, जिससे विपक्ष ने आरोप लगाया कि भारत ने पाकिस्तान को ‘खुली छूट’ दे दी। हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हमेशा यह स्पष्ट किया कि शांति भारत के हित में है, लेकिन आतंकवाद पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
बीते दशक में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि काफी मजबूत की है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, इजरायल जैसे देशों के साथ रिश्ते मजबूत हुए हैं। चीन की चुनौतियों के बावजूद भारत को अब ‘ग्लोबल प्लेयर’ (global player) के रूप में ज्यादा गंभीरता से लिया जाता है। विवाद के वक्त भी लगभग पूरी दुनिया आतंकवाद के खिलाफ भारत के साथ खड़ी रहती है।‘ऑपरेशन सिंदूर’ संसद में चर्चा, विपक्ष-सरकार की नोकझोंक और अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सबका केंद्र रहा। इस ऑपरेशन ने संदेश दिया कि भारत अब हर मामले में निर्णायक है—चाहे सैन्य कार्रवाई हो, कूटनीति (diplomacy) हो या वैश्विक मंचों पर अपना पक्ष रखना हो। संसद से सड़क तक लगातार बहस हो रही है, लेकिन एक बात साफ है—भारत अब किसी भी आतंकी चुनौती का माकूल जवाब देने में सक्षम है। नई डिप्लोमेसी, नई रणनीति, और सरकार की स्पष्टता ने भारत को नयी ऊंचाइयों पर पहुँचा दिया है। आगे आने वाले समय में संसद और जनता का दबाव रहेगा कि न सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ, बल्कि शिक्षा, रोज़गार और सोशल जस्टिस (social justice) के सवालों पर भी खुलकर चर्चा हो।