हाल के वर्षों में, भारतीय समुदाय के लिए विदेशों में रहना पहले से अधिक चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। विशेषकर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड जैसे देशों में भारतीय नागरिकों पर नस्लीय (racial) हमलों में तेज़ी आई है। विदेशों में पढ़ाई करने या काम के लिए गए भारतीयों को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी डराया-धमकाया जा रहा है। वर्ष 2025 के आंकड़े बताते हैं कि इस तरह की घटनाओं की आवृत्ति (frequency) काफी बढ़ गई है, जिससे भारतीय समुदाय में चिंता का माहौल है।
इन देशों में हर साल हजारों भारतीय परिवार बेहतर भविष्य की उम्मीद लेकर जाते हैं, लेकिन हाल की घटनाओं से उनकी सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। न केवल सड़क पर चलते-फिरते लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, बल्कि धार्मिक स्थलों (religious places) पर भी हमले हो रहे हैं, जिससे भारतीय संस्कृति और धार्मिक स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह गई है। सरकारें आक्रामक रूप से इन मामलों में जांच करवा रही हैं, लेकिन भारतीय समुदाय को तब तक चैन नहीं मिलेगा, जब तक उनकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती।
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के बोरोनिया इलाके में स्थित स्वामीनारायण मंदिर पर नस्लीय और घृणास्पद (hate) संदेश लिखे गये। इसी इलाके के दो अन्य एशियन रेस्तरांओं पर भी ऐसे ही स्लर्स (slurs) पाए गए। यह घटना 21 जुलाई 2025 को सामने आई, जिससे ना सिर्फ भारतीय, बल्कि पूरे एशियाई समुदाय में भारी नाराजगी देखने को मिली। यह सिर्फ मंदिर की दीवारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पूरी भारतीय पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला नजर आया।
हिंदू काउंसिल ऑफ ऑस्ट्रेलिया के प्रदेश अध्यक्ष मकरंद भागवत ने इसे भारतीयों की धार्मिक भावनाओं और अधिकारों पर आघात बताया। मंदिर न केवल पूजा का स्थान था बल्कि पूरे भारतीय प्रवासी समाज का मिलन केंद्र भी—जहाँ धार्मिक अनुष्ठान, त्योहार और सामुदायिक भोजन लगातार आयोजित होते थे। आस्ट्रेलिया सरकार और विक्टोरिया राज्य की प्रीमियर जैसिन्टा एलन ने इस घटना की कठोर निंदा करते हुए इसे ‘गंभीर, घृणास्पद और डर फैलाने वाली’ करार दिया। पुलिस जांच जारी है, लेकिन यह साफ हो गया है कि ऐसे हमलों का मकसद डर, अलगाव (isolation) और असुरक्षा की भावना फैलाना है।
सिर्फ धार्मिक स्थलों तक मामले सीमित नहीं हैं। जुलाई 2025 के एक ही दिन आयरलैंड के डबलिन और ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में दो भारतीय नागरिकों पर नस्लीय हमला हुआ। आयरलैंड में एक 40 वर्षीय भारतीय नागरिक को बीच सड़क पर तीन युवकों ने बेहरहमी से पीटा, कपड़े फाड़ दिए और जानलेवा स्तर तक पीटकर छोड़ दिया — कारण सिर्फ इतना कि वह अलग पहचान से था। पीड़ित भारतीय मंदिर के दर्शन के लिए जा रहा था। राहगीर की मदद से उसकी जान बची, मगर घटना ने पूरे भारतीय समुदाय में भय का संचार कर दिया। उसी दिन ऑस्ट्रेलिया में, एक 23 वर्षीय भारतीय छात्र को 5 व्यक्तियों ने, धारदार हथियार से हमला कर, बार-बार घूंसे मारे और नस्लीय स्लर्स बोले। छात्र को ब्रेन ट्रॉमा (brain trauma) और चेहरे पर गंभीर चोटें आईं और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह घटनाएं भारतीय मूल के लोगों के लिए विदेशों में सुरक्षा के हालात पर गंभीर प्रश्न खड़े करती हैं।
कनाडा में भारतीय समुदाय पर हमलों और घृणास्पद अपराधों (hate crimes) में 2019 से 2023 के बीच 227% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। खास बात यह है कि भारतीय समाज कनाडा में तीसरे नंबर का सबसे ज्यादा निशाना बनने वाला समूह बन गया है। कनाडा की सार्वजनिक जगहों और सोशल मीडिया पर “पाजीट” जैसे नस्लीय गालियों में 1,350% इजाफा देखा गया है, जिससे स्पष्ट है कि ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यमों पर भारतवंशियों पर हमले हो रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बीते पांच वर्षों में 91 भारतीय छात्रों पर विदेशों में हिंसात्मक हमले किये गए, 30 की जान भी गयी। अकेले कनाडा में मरने वाले भारतीयों की संख्या सबसे ज्यादा रही। विद्यार्थियों के अलावा, नौकरी पेशा, व्यवसायी और परिवार संबंधी लोग भी लगातार ऐसे हमलों के शिकार बन रहे हैं। ऐसी घटनाएं सिर्फ मानसिक ही नहीं, अब शारीरिक रूप से भी भारतीयों को क्षति पहुँचा रही हैं। इससे न केवल प्रवासी भारतीयों में डर है, बल्कि देश में बसे उनके परिवार वाले भी चिंतित रहते हैं।
ऑस्ट्रेलिया, यूएस, यूके और कनाडा जैसे देशों ने वर्ष 2025 में अपनी वीजा और इमिग्रेशन (immigration) नीतियों को काफी सख्त कर दिया है। अमेरिका में सुरक्षा कारणों से छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट्स तक की जांच की जा रही है और फॉर्मल वीजा प्रक्रिया बहुत कड़ी हो गई है। कनाडा में वर्ष 2025 में लागू नये कड़े वीजा नियमों के कारण भारतीय विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट आई है। वीजा स्क्रूटिनी, फाइनेंशियल बैकग्राउंड की कड़ी जांच और स्टडी परमिट्स की कैपिंग (capping) जैसी पॉलिसियों ने स्थिति को और पेचीदा बना दिया है।
फिर काम के अवसरों के लिहाज से यूके, यूएस और कैनाडा में इंडियन स्टूडेंट्स के लिए जॉब मार्केट भी संकीर्ण होता जा रहा है। पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय छात्रों को पहले जितनी आसानी से काम नहीं मिल पा रहा है, जिससे भविष्य की अनिश्चितता बढ़ी है।
इन देशों में कई भारतीय धार्मिक स्थल बार-बार वैंडलाइज (vandalize) किये जा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के अलावा, कनाडा और अमेरिका के मंदिरों में भी बार-बार ऐसी घटनाएँ होती रही हैं। देवी-देवताओं की मूर्तियों पर ग्राफिटी, मंदिरों के मुख्य द्वारों पर गालियाँ और धमकी भरे संदेश, यहां तक कि सुरक्षा कैमरे भी निकाले जा रहे हैं। इन घटनाओं से प्रवासी भारतीय समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान पर आघात पहुँचा है।
मंदिर के सचिवों का कहना है कि उपासना के स्थान केवल पूजा के लिए नहीं, बल्कि सामूहिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण के केंद्र हैं। जब ऐसे स्थलों पर हमले होते हैं, तो प्रवासी जीवन में डर और चिंता का स्थायी भाव घर कर जाता है।
सरकारों द्वारा कई मौकों पर इन घटनाओं की कड़े शब्दों में निंदा की गई है, ऑस्ट्रेलिया के प्रीमियर ने स्पष्ट बयान दिया कि ऐसी हरकतें एक बड़ी साजिश और नफरत फैलाने के लिए की जाती हैं। भारत की ओर से विदेश मंत्रालय लगातार इन मामलों में स्थानीय प्रशासन के संपर्क में है। अमेरिका और कैनेडा में भी सरकारें उच्च स्तरीय बैठकें कर रही हैं, लेकिन वास्तविक सुरक्षा जमीनी स्तर पर ही आएगी।
नए माहौल में प्रवासी भारतीयों को प्रेशर ग्रुप्स (pressure groups) बनाकर सार्वजनिक मंचों पर अपनी समस्या उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, संकट के वक्त स्थानिय मित्र समुदायों के साथ सहयोग और प्रशासन से रिपोर्ट करना बेहद जरूरी हो गया है।
इन मामलों में मीडिया और वहां की सिविल सोसाइटी की भूमिका बहुत अहम है। जब भी ऐसे हमलों की रिपोर्टिंग खुल कर होती है, प्रशासन को दबाव आता है। साथ ही, आम जनता की ओर से भी नफरत के खिलाफ आवाज बुलंद होती है। लेकिन अभी कई देशों में मामले खुले तौर पर दबा दिए जाते हैं या पीड़ितों को सिस्टमिक न्याय नहीं मिल पाता।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर फार-राइट (far-right) संगठनों के साथ-साथ लोकल गैंग्स और एक्स्ट्रीमिस्ट ग्रुप्स (extremist groups) इस घृणा को काफी बढ़ावा दे रहे हैं। चुनौती भरे इस माहौल में, विदेशों में बसने या पढ़ने जाने वाले भारतीयों को सतर्क रहना चाहिए। स्थानीय नियमों का पालन, अपनी सुरक्षा के लिए मिनिमम सुरक्षा उपाय अवश्य रखें। सांस्कृतिक और धार्मिक जुड़ाव को बनाए रखें, लेकिन कभी-कभी विवादित क्षेत्रों से दूरी भी बनाये रखें।
सरकारों के लिए आवश्यक है कि विदेशों में भारतीय दूतावास अपनी सक्रियता और सहायता को अधिक प्रभावशाली बनायें और छात्रों, कामगारों और परिवारों को समय पर परामर्श और सहायता मुहैया करायें। भारतीय समाज को मिलकर नफरत और असहिष्णुता के विरुद्ध एकजुटता दिखानी होगी, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति ना हो और भारतीयों की सुरक्षा, सम्मान और पहचान हर जगह बनी रहे।
दुनिया में कहीं भी भारतीय समुदाय ने अपने मेहनत, हुनर और सांस्कृतिक मूल्य से सकारात्मक पहचान बनाई है। लेकिन बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवेश में कई बार नस्लवाद और अतिवाद (extremism) बढ़ जाते हैं। आज जरूरत ठन गई है कि विदेशों में बस रहे भारतीय आपस में एकजुट रहें, कानून का सम्मान करें, लेकिन डर के आगे झुकें नहीं, और अपनी सुरक्षा के लिए सजग रहें। तभी हर भारतीय सुरक्षित रह सकेगा, चाहे वो दुनिया के किसी भी कोने में हो।