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कश्मीर में बड़ा धमाका: ऑपरेशन महादेव से आतंकियों का सफाया!

NCIvimarshYesterday

कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) एक बार फिर सुरक्षा बलों (Security Forces) के हौसले और जज्बे की मिसाल बनी है। हाल ही में घाटी के श्रीनगर के पास महादेव पर्वत (Mahadev Mountain) के इलाके में एक बेहद महत्वपूर्ण अभियान चलाया गया, जिसे ‘ऑपरेशन महादेव’ (Operation Mahadev) नाम दिया गया। इस अभियान के दौरान सुरक्षाबलों ने आतंकियों के खात्मे के लिए जबरदस्त रणनीति (strategy) अपनायी, जिसकी वजह से इलाके में लौट रही शांति अब और मजबूत हुई है।

पिछले कई महीनों से घाटी में आतंकवादियों की हलचल लगातार दर्ज़ की जा रही थी। इस खतरनाक माहौल के बावजूद, सेना (Army), सीआरपीएफ (CRPF) और जम्मू-कश्मीर पुलिस (Jammu Kashmir Police) ने आपसी तालमेल से ऊँचे दर्जे की कार्रवाई की। ऑपरेशन महादेव के बाद जनता में नया भरोसा जगा है और घाटी एक बार फिर अमन-चैन (peace) की तरफ बढ़ रही है।

ऑपरेशन महादेव की शुरुआत का मुख्य कारण

22 अप्रैल को हुए पहलगांव (Pahalgam) हमले ने घाटी को झकझोर कर रख दिया था। इस हमले के बाद ही सुरक्षा बलों ने आतंकियों के खिलाफ जबरदस्त सर्च ऑपरेशन (search operation) छेड़ने का फैसला किया। लगातार इंटेलिजेंस इनपुट्स (intelligence inputs) मिल रहे थे कि कई आतंकी जंगलों और आसपास के इलाकों में छिपे हुए हैं, और घाटी में किसी बड़ी वारदात की फिराक में हैं।

इक्का-दुक्का बार ऐसा भी हुआ जब सुरक्षाबल आतंकियों के बेहद करीब पहुँच चुके थे, लेकिन आतंकी सुरक्षा दायरे (security cordon) से निकलने में कामयाब हो गए। लेकिन इस बार सेना ने पूरे गुप्त ढंग से अपनी योजना (planning) बनाई और बिना किसी शोर-शराबे के ऑपरेशन महादेव को अंजाम दिया। इसका कारण यही था कि लगातार पहलगांव जैसे हमलों की पुनरावृत्ति को रोकना और आतंक के नेटवर्क को पूरी तरह तोड़ना बेहद जरूरी हो गया था।

ऑपरेशन महादेव की रणनीति और क्रियान्वयन

सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन महादेव के लिए पूरे इलाके में कई दिनों तक सर्चिंग और रेकी (reconnaissance) की। देचीग्राम नेशनल पार्क (Dachigam National Park) और आसपास के इलाकों को पूरी तरह घेर लिया गया। इस दौरान आर्मी, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ की टीमों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर सटीक सूचना के आधार पर कई सर्च ऑपरेशन चलाए।

इन सर्च ऑपरेशनों की खासियत थी ‘साइलेंट मूवमेंट’ (Silent Movement)। सेना ने बेहद चुपचाप तरीके से आतंकियों की पोजिशन पर पहुंचकर उन्हें घेर लिया। इसकी वजह से आतंकियों को भागने या छिपने का मौका नहीं मिला। ऑपरेशन के दौरान तीन आतंकियों को मार गिराया गया, जोकि बड़ी सफलता मानी जा रही है।

आतंकियों की पहचान और उनके कनेक्शन

हालांकि अभी पूरी तरह पुष्टि (confirmation) नहीं हुई है कि ये वही आतंकी हैं जो पहलगांव हमले में शामिल थे, लेकिन शुरुआती जांच और मिली सूचनाओं से साफ है कि मारे गए तीनों आतंकी लश्कर-ए-तैयबा (Lashkar-e-Taiba) से ताल्लुक रखते थे। इनका नेटवर्क न केवल जम्मू-कश्मीर, बल्कि पाकिस्तान (Pakistan) के आतंकियों से भी जुड़ा हुआ था।

पहलगांव हमले के बाद जांच एजेंसियों ने 2,000 से ज्यादा गिरफ्तारियाँ की थीं, जिनमें स्थानीय समर्थक (Overground Workers) तक शामिल थे। पूछताछ में पता चला कि कुछ स्थानीय लोगों ने आतंकियों को खाना, शेल्टर (shelter), वित्तीय मदद (financial support) भी दी थी। ऐसे दो लोगों को पहले ही एनआईए (NIA) ने गिरफ्तार किया था। एनआईए को इनपुट्स मिले थे कि ये आतंकी यहीं नजदीक छुपे हैं और किसी बड़ी वारदात की योजना बना रहे हैं।

पहलगांव और पूर्व हमलों का सच

22 अप्रैल को हुआ पहलगांव हमला घाटी के इतिहास में सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक था, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी। इस हमले के बाद से ही घाटी में सख्ती और आतंकवादियों की तलाश तेज़ हुई। हमले के वक्त जांच एजेंसियों के शक की सुई हाशिम मूसा, अली थोकर जैसे नामों पर गई, मगर बाद में पता चला कि असली हमलावर पाकिस्तानी आतंकवादी थे और उनकी पहचान झूठे स्कैचों (sketches) से नहीं हो पा रही थी।

इसके अलावा पिछले साल 20 अक्टूबर को सोनमबर्ग के जेडमोल टनल (Zedmol Tunnel, Sonamarg) पर हमले में भी इन्हीं आतंकियों का हाथ था। उस हमले के बाद जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनकी पूछताछ में सुलेमान शाह (Suleman Shah) और जुनैद खान (Junaid Khan) के नाम सामने आए, जिनकी भूमिका कश्मीर में आतंकी नेटवर्क फैलाने में रही थी।

आतंकियों के मूवमेंट और जंगली इलाके

कश्मीर का लिदवास (Lidwas) और आसपास के इलाके जंगलों से घिरे हैं, जिसकी वजह से आतंकवादी अक्सर इन्हीं क्षेत्रों में छुपते-घूमते रहते हैं। ये लोग लोकल ओवरग्राउंड वर्कर्स (OGWs) की मदद से छिपते हैं और इनकी सप्लाई लाइन मजबूत बनी रहती है। साथ ही सुरक्षा बलों की मौजूदगी और सघन जांच के चलते आतंकियों के लिए खुले में रहना मुश्किल हो गया है, लेकिन जंगलों का फायदा उठाकर वे छुपते और मूवमेंट करते रहते हैं।

सेना ने ऑपरेशन महादेव के दरम्यान इन इलाकों की रेकी की और आतंकियों के मूवमेंट का सटीक अंदाजा लगाया। जंगल की आड़ में रहने वाले इन आतंकियों को तलाशना मुश्किल था, लेकिन साइलेंट मूवमेंट और इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर सेना ने उनकी घेराबंदी की।

लगातार ऑपरेशनों का असर और बदलाव

लगातार हो रहे आतंकी ऑपरेशनों की वजह से घाटी का माहौल बदला है। अब आतंकियों के लिए फ्री मूवमेंट (free movement) या योजना बनाना उतना आसान नहीं रह गया। सुरक्षाबलों ने पहलगांव, बायसारन (Baisaran) और आरू वैली (Aru Valley) जैसे इलाकों को पूरी तरह सुरक्षित किया है, जहाँ आतंकियों ने हमला करने के उद्देश्य से रेकी की थी, लेकिन सुरक्षा के सख्त इंतजामों के चलते वे हमला नहीं कर पाए।

एनआईए की पूछताछ में सामने आया है कि आतंकी किसी भी बड़े टारगेट पर हमला करने से पहले इलाके की बकायदा रेकी करते हैं और प्लानिंग के बाद ही आगे बढ़ते हैं। लेकिन अब नए सिरे से सुरक्षा पहरे (security cordon) और सेना-पुलिस के तालमेल से घाटी में अमन का माहौल लौट रहा है।

स्थानीय लोगों की भूमिका और चुनौतियाँ

यद्यपि घाटी में अधिकांश लोग अमन-चैन के समर्थक हैं, फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं (OGWs) जो आतंकवादियों को शरण व मदद देते हैं। इन लोगों की गिरफ्तारी और पूछताछ से सुरक्षाबलों को बड़ी-बड़ी जानकारियाँ मिली हैं। ये लोग आतंकियों को पैसे, खाना, छिपने की जगह आदि मुहैया कराते हैं। इसके चलते ऑपरेशन महादेव जैसे अभियानों में सुरक्षा बलों को अतिरिक्त चुनौती मिलती है, लेकिन अब लगातार सख्ती के चलते ये सपोर्ट सिस्टम (support system) भी कमजोर हुआ है।

ऑपरेशन महादेव के दौरान गिरफ्तार हुए दो लोगों ने कबूल किया कि उन्होंने आतंकियों को लॉजिस्टिक्स और शेल्टर सुलभ कराए थे। जांच एजेंसियाँ अब इन पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत कार्रवाई कर रही हैं ताकि आतंकियों की लोकल मदद पर पूरी तरह लगाम लगाई जा सके।

जम्मू और कश्मीर में हमलों का बदला तरीका

पहले के मुकाबले अब आतंकियों का मूवमेंट बदल गया है। जम्मू के कुछ हिस्सों में सुरक्षा कमजोरी (security loophole) देखकर आतंकियों ने वहां भी हमलों की साजिशें रची और शिवकोड़ी (Shivkhori) जैसे जगहों पर हमले किए। आमतौर पर जम्मू शांत इलाका माना जाता रहा है, लेकिन हाल के हमलों से साफ है कि आतंकियों की रणनीति (strategy) अब बदल रही है और वे नए-नए इलाकों में वारदात कर रहे हैं।

पहलगांव हमले के बाद विशेष सतर्कता बरती जा रही है, ताकि आतंकवादी जम्मू या किसी अन्य क्षेत्र में फिर कोई बड़ा हमला न कर पाएं। ऑपरेशन महादेव और इससे पहले ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) जैसी कार्रवाइयों से आतंकियों का मनोबल कमजोर हुआ है।

घाटी में लौटती सामान्य स्थिति और निवेश

पिछले कुछ वर्षों में हजारों करोड़ का निवेश (investment) और वंदे भारत ट्रेन (Vande Bharat Train) जैसी सुविधाएं कश्मीर में शुरू हुई हैं। इससे घाटी का माहौल तेज़ी से नॉर्मल हुआ है। पर्यटन (tourism) का भी रिवाइवल (revival) दिख रहा है और लोग अब घाटी घूमने आ रहे हैं।

हालांकि, कुछ दूरदराज़ के इलाके फिलहाल सुरक्षा कारणों से बंद हैं, लेकिन हालात दूबारा सामान्य हो रहे हैं। जैसे-जैसे ऑपरेशन महादेव जैसे अभियान सफल हो रहे हैं, वैसे-वैसे घाटी में अमन लौट रहा है और बंद इलाकों को फिर से खोलने की योजना पर काम चल रहा है।

शिक्षा और रोजगार के अवसर

घाटी में शिक्षा (education) और रोजगार (employment) से जुड़े अवसर भी बढ़ रहे हैं। आतंकवाद के कारण लंबे समय तक घाटी के युवा डर और असुरक्षा की भावना के साए में रहे, लेकिन अब सुरक्षा बलों की कामयाबी और सरकार के प्रयासों की वजह से स्थितियाँ बदल रही हैं।

स्कूल, कॉलेज और विभिन्न सरकारी योजनाओं के जरिए युवाओं को मुख्यधारा (mainstream) में जोड़ा जा रहा है। IT, टूरिज्म, हैंडीक्राफ्ट्स (handicrafts) जैसे क्षेत्रों में भी रोजगार के नए द्वार खुल रहे हैं, जिससे घाटी के युवाओं का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है।

आतंक और अमन के बीच जंग

हर ऑपरेशन के साथ घाटी में आतंक का दायरा सिकुड़ता जा रहा है। कभी कुमारपोरा, कभी बायसारन, तो कभी महादेव जैसे इलाकों में चले ऑपरेशन आतंकियों के नेटवर्क को लगातार कमजोर कर रहे हैं। इसके बावजूद घाटी के कुछ हिस्सों में अभी भी आतंक का साया (shadow) बना हुआ है, लेकिन अब सुरक्षा बल ज्यादा सतर्क और हाईटेक (hightech) हो चुके हैं।

पहलगांव हमले के बाद सेना और पुलिस ने कमांडर्स को टारगेट करना शुरू किया है, जिससे आतंकवादियों की कमान कमजोर हो रही है। ऑपरेशन महादेव उसकी सबसे स्पष्ट मिसाल है, जहाँ लश्कर के टॉप कमांडर्स को ढेर कर दिया गया।

आगे की राह और चुनौतियाँ

भविष्य में घाटी को स्थायी शांति (permanent peace) दिलाने के लिए सेना-पुलिस के साथ स्थानीय लोगों की भागीदारी ज्यादा जरूरी है। युवा पीढ़ी को शिक्षा, रोजगार और नए अवसरों से जोड़कर आतंकवादियों की जमीन खत्म करनी होगी।

सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आतंकवादियों को लोकल सपोर्ट मिलना बंद हो और युवाओं में राष्ट्रनिर्माण (nation-building) की भावना और विश्वास विकसित हो। लगातार ऑपरेशनों और आम जनता के सहयोग से घाटी स्थायी अमन की तरफ बढ़ सकती है।

ऑपरेशन महादेव की सफलता ने साबित कर दिया है कि आतंक और हिंसा (violence) अब कश्मीर की सांझ नहीं रहेंगे। घाटी की आम जनता और सुरक्षा बलों की जुगलबंदी (coordination) के बल पर आने वाले दिनों में घाटी और ज्यादा शांत, सुरक्षित और विकसित (developed) होगी।

इस अभियान ने न सिर्फ आतंकवादियों के नेटवर्क को कमजोर किया है, बल्कि घाटी के लोगों में भरोसा भी लौटाया है कि कश्मीर बिना डर के जी सकता है। कश्मीर घाटी अब अमन, विकास और भाईचारे का प्रतीक बनने की राह पर है—जहाँ ऑपरेशन महादेव जैसी कामयाबियां नफरत को हराती रहेंगी और उम्मींद की रौशनी फैलती रहेगी।

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