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भारत-पाकिस्तान की दोस्ती को लेकर बड़ा उलटफेर! जानिए ताजा बातचीत की पूरी हकीकत

NCIvimarsh6 days ago

पिछले कुछ दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ “meaningful dialogue” (सार्थक चर्चा) की इच्छा ज़ोरदार रूप से जताई है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान सभी प्रमुख मुद्दों पर भारत के साथ खुलकर बातचीत करने के लिए तैयार है। उनका मानना है कि विवादों का समाधान केवल वार्ता (dialogue) से ही संभव है और युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है। शरीफ ने खास तौर से यूके के रोल की तारीफ की है जिन्होंने विवाद के समय दोनों देशों के बीच तनाव (tension) को कम करने में मदद की। यह बातचीत पाकिस्तान में ब्रिटिश हाई कमीशनर जेन मैरियट के साथ मुलाकात के दौरान होती है, जहां आर्थिक, कूटनीतिक और सुरक्षा के कई पहलुओं पर भी विचार किया गया।

भारत का दृढ़ स्टैंड: बातचीत की शर्तें

भारत सरकार ने बार-बार दो टूक शब्दों में स्पष्ट किया है कि किसी भी तरह की बातचीत तभी सम्भव है जब पाकिस्तान अपनी ज़मीन पर आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे। भारत का जोर है कि पाकिस्तान-ऑक्यूपाइड कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir, PoK) को लौटाने और क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद पर ठोस कदम के बिना किसी तरह की बातचीत व्यर्थ है। हाल ही में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में कई नागरिकों की मौत के बाद भारत ने आतंक के खिलाफ कड़ी सैन्य कार्रवाई करते हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था। सरकार ने यह भी कहा कि जल वितरण (water sharing), व्यापार, और क्षेत्रीय सुरक्षा केवल तभी चर्चा के विषय हो सकते हैं जब बुनियादी विश्वास बहाली के संकेत पाकिस्तान से मिलें।

हालिया घटनाक्रम: सीमा पर बढ़ता तनाव

22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला और उसके बाद भारत द्वारा आतंक के खिलाफ सैन्य कार्रवाई से रिश्तों में नया तनाव पैदा हुआ। भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तानी सीमा में आतंकवादियों के बुनियादी ढाँचों पर जबर्दस्त हमला किया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी भारतीय सैन्य अड्डों को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन भारतीय जवाबी कार्रवाई ने उनकी कोशिशों को नाकाम कर दिया। चार दिन के जबर्दस्त टकराव के बाद दोनों देशों में अमेरिका की मध्यस्थता से संघर्ष-विराम (ceasefire) हुआ।

बातचीत के लिए पाकिस्तान की राजनीतिक रणनीति

शहबाज शरीफ ने अपनी हालिया बातचीत में बार-बार यह दोहराया है कि पाकिस्तान युद्ध नहीं, शांति और विकास चाहता है। उनका कहना है कि अब वक्त आ गया है कि दोनों देश गरीबी, बेरोजगारी और क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए मिलकर कदम बढ़ाएं। उनका मानना है कि बार-बार की जंग ने दोनों मुल्कों को सिर्फ नुकसान ही पहुँचाया है और विकास के रास्ते में रुकावटें खड़ी की हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान सभी विवादों पर—कश्मीर, पानी, व्यापार और आतंकवाद—पर खुली बातचीत के लिए तैयार है, बशर्ते भारत भी गंभीरता से मैदान में उतरे।

वार्ता की विश्वसनीयता: भारत की आशंकाएँ

हालांकि पाकिस्तान की तरफ से बार-बार बातचीत के सिग्नल मिलते हैं, भारत इन पेशकशों को संदेह की निगाह से देखता है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान अक्सर ‘dialogue diplomacy’ के ज़रिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी छवि सुधारने की कोशिश करता है, लेकिन जमीनी स्तर पर आतंकवाद और कट्टरता में कोई कमी नहीं आती। इसके अलावा, हर आतंकी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की ओर से बातचीत की पेशकश भारत को ‘रणनीतिक चाल’ (strategic move) नजर आती है ताकि दबाव कम किया जा सके। भारतीय अधिकारियों के मुताबिक, इतने सालों में कई बार बातचीत हुई, लेकिन हर बार सफलता क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद के चलते अधूरी ही रही।

कश्मीर मुद्दा: बातचीत की सबसे बड़ी बाधा

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में कश्मीर का सवाल हमेशा केंद्रीय बना रहा है। पाकिस्तान चाहता है कि कश्मीर का “अंतिम समाधान” संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत हो और भारत इस पर खुलकर वार्ता करे। वहीं, भारत का स्पष्ट स्टैंड है कि कश्मीर और लद्दाख उसके अभिन्न और अविभाज्य हिस्से हैं, और पाकिस्तान को सबसे पहले आतंकवाद की समस्या का समाधान करना चाहिए। दरअसल, दोनों देश कश्मीर को खुद के लिए रणनीतिक, राजनीतिक और भावनात्मक दृष्टिकोण से सबसे अहम मानते हैं। इस बीच जून में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने ईरान में खुले मंच से साफ शब्दों में कहा कि, “हम कश्मीर, पानी, व्यापार और आतंकवाद जैसे सभी ज्वलंत मुद्दों पर बातचीत को तैयार हैं”।

अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप और मध्यस्थता

अमेरिका, यूके और कई अन्य देश भारत-पाकिस्तान के विवादों को सुलझाने के लिए अक्सर मध्यस्थता यानी mediation करते रहे हैं। हाल ही में ब्रिटेन ने दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। अमेरिका की कोशिशों से ही मई में संघर्ष-विराम सम्भव हो पाया था जिस से तत्कालीन संघर्ष थम गया। ब्रिटिश हाई कमीशनर से बातचीत में भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने यूके के रोल की सराहना की जो दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लाने में मददगार रहा। हालांकि, भारत का मानना है कि बातचीत और समाधान के रास्ते किसी तीसरी शक्ति की मध्यस्थता के बिना केवल द्विपक्षीय वार्ता से ही निकाले जा सकते हैं।

व्यापार और आर्थिक मसले

हाल के घटनाक्रमों के बाद आर्थिक और व्यापारिक संबंध भी जबर्दस्त ठप हो गए हैं। भारत ने आतंक के समर्थन के विरोध में पाकिस्तान के साथ व्यापार और जल वितरण को बंद (suspend) कर दिया था। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही गंभीर संकट में है और वहां के नेता भी बार-बार इस आर्थिक दबाव (economic pressure) का जिक्र कर रहे हैं। प्रधानमंत्री शरीफ ने यहां तक कहा कि जल्द ही व्यापारिक संबंध बहाल होंगे तो दोनों देशों के आम लोग और कारोबार को लाभ मिलेगा। कई विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान बातचीत की पहल से व्यापार के रास्ते पुनः खोलना चाहता है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था को इसकी सख्त जरूरत है।

आतंकवाद और सुरक्षा की चुनौती

भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद बनी हुई है। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान अपनी ज़मीन से आतंकवाद को बढ़ावा (sponsor) देता है और इसका खुला समर्थन करता है। प्रत्येक बड़े आतंकी हमले के बाद भारत सख्त कार्रवाई करता है और बातचीत को टाल देता है। हाल के पहलगाम हमले के बाद भारत ने साफ कर दिया कि जब तक पाकिस्तान हाफिज़ सईद जैसे आतंकियों को सज़ा नहीं देगा और आतंक के ढांचे को ध्वस्त नहीं करेगा, तब तक किसी भी प्रकार की वार्ता बेकार है। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ‘टेरर एंड टॉक’ (आतंक और संवाद) एक साथ चल ही नहीं सकते।

आंतरिक राजनीति और सत्ता का खेल

पाकिस्तान की राजनीति में अक्सर सेना का हस्तक्षेप चर्चा में रहता है। प्रधानमंत्री शरीफ की ताज़ा घोषणा को वहां की सत्ता की खींचतान और सेना एवं सरकार के बीच तनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कई आकलनकार मानते हैं कि हर बार जब पाकिस्तान में सरकार या सेना पर दबाव बढ़ता है, तब वे भारत के साथ बातचीत की पेशकश कर अंतरराष्ट्रीय दबाव को घटाने का प्रयास करते हैं। साथ ही, शरीफ के बयान पर वहां के राजनीतिक पंडित इस बात को लेकर आशंकित हैं कि क्या वाकई पाकिस्तान सरकार इच्छाशक्ति रखती है या यह केवल राजनैतिक ड्रामा है।

आम जनता की भावनाएं

भारत और पाकिस्तान की आम जनता सालों से शांति और दोस्ती की उम्मीद मुकम्मल देख रही है। यहाँ तक कि जब भी सीमा पर फायरिंग या आतंकी घटनाएं होती हैं, दोनों देशों के लोग तनाव में आ जाते हैं। सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर लोगों का गुस्सा, शोक और कभी-कभी शांति की दुआएं देखने को मिलती हैं। हाल में कश्मीर की घटना में मारे गए आम नागरिकों की याद में देशभर में गम और आक्रोश का माहौल है, जिससे बातचीत के विचार को लेकर अब दो रायें बनने लगी हैं—शांति की चाह और विश्वास की कमी।

कूटनीतिक लाभ-हानि का गणित

हर बार बातचीत की बातें बड़े-बड़े बयानों और अखबारों की हेडलाइन बनती हैं, लेकिन धरातल पर बदलाव कम ही दिखता है। अक्सर मुद्दों को हालात के हिसाब से तोला जाता है—भारत अपने राष्ट्रीय हितों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता और न ही पाकिस्तान को “दामाद” बना कर रखना अब स्वीकार है। विशेषज्ञों के अनुसार, हर बार बातचीत महज कूटनीतिक लाभ उठाने का जरिया बन जाती है, असली बदलाव लंबे समय बाद या लगातार दबाव से ही होता है।

भविष्य की राह और संभावनाएँ

भविष्य की बात करें तो दोनों देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती पुराने बोझ और नई चुनौतियों के बीच संतुलन बनाना है। वैश्विक राजनीति में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते सिर्फ दक्षिण एशिया ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए अहम हैं। आर्थिक दबाव, राजनीतिक नफा-नुकसान, और जनता की अपेक्षाएं—इन सब में किसका पलड़ा भारी रहेगा, यह अगली घटनाओं पर निर्भर करेगा। अब देखना है कि शहबाज शरीफ की वार्ता की पेशकश रंग लाती है या फिर एक और कोशिश अधूरी रह जाती है। इन घटनाओं के संदर्भ में भारत का स्टैंड पहले से कहीं ज्यादा ठोस है—केवल अपनी शर्तों पर ही किसी भी प्रकार की बात आगे बढ़ेगी। वहीं पाकिस्तान लगातार बातचीत का अनुरोध कर रहा है, जिससे उसकी बदली हुई रणनीति और दबाव की झलक मिलती है। दोनों ही देश चाहते हैं कि इलाके में अमन कायम हो, लेकिन शर्तें और आपसी भरोसा सबसे बड़ा सवाल बने हुए हैं। जो भी हो, आने वाले दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक, आर्थिक, और सुरक्षा के स्तर पर उठने वाले हर कदम पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी।

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