राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक व्याख्यान में ऐसा बयान दिया जो हर किसी के मन में चिंता पैदा कर सकता है। दुनिया भर में बढ़ते तनाव और संघर्षों को देखते हुए भागवत ने कहा कि तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। इस पर विचार करते हुए उन्होंने रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध का उल्लेख किया। उनका बयान एक चेतावनी के रूप में देखा जा सकता है कि यदि समय रहते हम सभी ने सही दिशा में कदम नहीं उठाए तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
यह वक्तव्य मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में दिवंगत महिला संघ नेता डॉ. उर्मिला जामदार की स्मृति में आयोजित एक व्याख्यान में दिया गया। भागवत का यह संदेश केवल राजनीतिक चिंता तक सीमित नहीं था, बल्कि यह मानवता के प्रति एक गंभीर विचार प्रस्तुत करता है।
आज के हालातों में, भागवत की यह चिंता समझी जा सकती है। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया भर में कई बड़े संघर्ष हुए हैं जिन्होंने वैश्विक अस्थिरता बढ़ाई है। रूस-यूक्रेन युद्ध का कोई अंत नहीं दिख रहा है, और इजरायल-हमास के बीच की हिंसा ने फिर से मध्य पूर्व में तनाव को बढ़ा दिया है। ये दोनों संघर्ष अपने-अपने कारणों से भले ही शुरू हुए हों, लेकिन इनका असर हर देश पर महसूस किया जा रहा है।
वास्तव में, रूस और यूक्रेन का संघर्ष केवल एक भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच की कूटनीतिक खाई को भी उजागर कर रहा है। कई देशों ने अपने-अपने पक्ष का समर्थन किया है, जिससे इस विवाद में बड़ी शक्तियां भी शामिल हो गई हैं। इससे विश्व स्तर पर डर और अविश्वास का माहौल बना है, जो तीसरे विश्व युद्ध जैसी स्थिति की ओर इशारा कर सकता है।
भागवत का यह बयान सिर्फ एक संभावना को इंगित नहीं करता, बल्कि यह चेतावनी देता है कि यदि इन वैश्विक मुद्दों का समाधान नहीं निकाला गया, तो एक व्यापक युद्ध के दरवाजे खुल सकते हैं।
भागवत ने अपने भाषण में इस बात पर भी ध्यान दिया कि विज्ञान और तकनीकी विकास ने भले ही बहुत तरक्की की हो, लेकिन इसका लाभ हर व्यक्ति तक नहीं पहुंचा है। उन्होंने एक बड़ा सवाल उठाया – “विज्ञान की इतनी प्रगति हो गई है, लेकिन इसका असल लाभ क्या गरीबों और जरूरतमंदों तक पहुंच रहा है?”
उन्होंने यह भी कहा कि आज विज्ञान ने हमें ऐसी तकनीकें दी हैं जिनसे बीमारियों का इलाज संभव है, लेकिन यह इलाज हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं है। दूसरी तरफ, विनाशकारी हथियार और अवैध बंदूकें कई इलाकों में आसानी से पहुंच रही हैं।
आज भी कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां सामान्य चिकित्सा सेवाओं का अभाव है। दूसरी ओर, विनाशकारी हथियारों का उत्पादन और वितरण तेजी से हो रहा है। यह विरोधाभास हमारे समाज के लिए एक गंभीर समस्या है। विज्ञान ने हमारे जीवन को बेहतर बनाने का वादा किया था, लेकिन इसका असंतुलित उपयोग मानवता के लिए खतरा बनता जा रहा है।
भागवत ने पर्यावरणीय संकट पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण की हालत इतनी खराब हो गई है कि यह बीमारियों का कारण बन रही है। बढ़ता प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ऐसे मुद्दे हैं जो हम सभी के लिए एक गंभीर चुनौती बन गए हैं।
पर्यावरण पर बढ़ते दबाव के कारण प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है और इसके साथ ही स्वास्थ्य पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। आज, कई जगहों पर पानी की कमी है, वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है, और इन सभी का मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। अगर समय रहते हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण का सपना साकार करना मुश्किल हो जाएगा।
भागवत ने अपने व्याख्यान में इस बात पर जोर दिया कि मानवता की सेवा करना सनातन धर्म का प्रमुख सिद्धांत है। उनके अनुसार, यही हिंदू धर्म का भी मूल उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व में पूरी दुनिया को राह दिखाने की क्षमता है। हिंदू शब्द पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यह शब्द भारतीय धर्मग्रंथों में आने से पहले से ही मौजूद था, और गुरु नानक देव ने इसे अपने प्रवचनों में प्रस्तुत किया था।
भागवत का यह संदेश आज के समाज के लिए एक महत्वपूर्ण सीख है। जब दुनिया विभिन्न प्रकार के संघर्षों और समस्याओं का सामना कर रही है, तब ऐसे विचार हमारी सोच को नई दिशा दे सकते हैं। सनातन धर्म की यह शिक्षा हमें सिखाती है कि दूसरों की सेवा करना, मानवता की रक्षा करना और प्रकृति का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।
भागवत के इस वक्तव्य का संदेश यही है कि हमें न केवल विश्व के प्रति जिम्मेदारी महसूस करनी चाहिए बल्कि अपनी आंतरिक ताकतों का भी सही उपयोग करना चाहिए।
विज्ञान और तकनीकी प्रगति का सही उपयोग हो, जिससे इसका लाभ सभी को मिल सके, विशेषकर गरीब और जरूरतमंद लोगों को। साथ ही, पर्यावरण का संरक्षण करना भी जरूरी है, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण हो सके।
भागवत का यह बयान महज एक चेतावनी नहीं है, बल्कि यह एक दिशा में सोचने का अवसर भी देता है। हमें इस बारे में सोचना चाहिए कि क्या हम अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से निभा रहे हैं? क्या हम दुनिया के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ पा रहे हैं? क्या हम पर्यावरण और मानवता के प्रति अपना योगदान दे रहे हैं?