Navratri Special: भारतवर्ष की दिव्य परंपरा में नवरात्रि एक अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण उत्सव है। अधिकांश लोगों को केवल दो मुख्य नवरात्रियाँ वसंती और शारदीय के बारे में ही जानकारी होती है, परंतु वास्तव में हर महीने शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक मासिक नवरात्रि का पर्व मनाने का विधान है। यह प्रमाण श्री देवी भागवत, श्री मार्कंडेय पुराण आदि पौराणिक ग्रंथों से मिलता है। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक विशेष रूप से देवी आराधना, उपवास, साधना तथा अलौकिक पुण्य प्राप्ति का प्रावधान है।
अगर देखा जाए, तो पूरे वर्ष में कुल 12 नवरात्रियाँ होती हैं – जिनमें प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक की नवरात्रि शामिल है। यह बात बहुत कम लोगों को ज्ञात होती है क्योंकि सामान्यतः प्रमादी जन सम्पूर्ण वर्ष की बारहों नवरात्रियाँ नियमपूर्वक नहीं कर सकते। इसलिए भारतीय धर्मशास्त्रों में यह निरूपित किया गया है कि यदि सभी नवरात्रियाँ करने में असमर्थ हैं तो कम से कम दो – वसंती (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक) और शारदीय (आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक) को अवश्य करना चाहिए। इन दो नवरात्रियों की प्रतिष्ठा अत्यंत विशिष्ट है, क्योंकि ये उत्तरायण और दक्षिणायण सूर्य की बदलती गति के साथ जुड़ी हुई हैं। वासंती नवरात्रि के समापन पर ही श्री राम नवमी पर नव संवत्सर का भी आरंभ होता है, जो नवजीवन का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त, दो गुप्त नवरात्रियाँ भी होती हैं, जिनकी महत्ता कम नहीं है। पहली गुप्त नवरात्रि आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक और दूसरी माघ शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है। इनका साधना के लिए विशेष महत्व है, और तंत्र साधना, गोपनीय उपासना के लिए साधक वर्ग इन्हें करते हैं। गुप्त नवरात्रि का विधान भी पौराणिक प्रमाणों में उपलब्ध है और इनके द्वारा पुण्य, सिद्धि तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति की संभावना मानी जाती है।
अब बात करते हैं पाँचवीं विशिष्ट नवरात्रि – गो नवरात्रि। गो नवरात्रि के विषय को अधिकतर लोग नहीं जानते, जिसे समय के साथ समाज ने भूलते चले गए हैं। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाली यह गो नवरात्रि अहम् पर्व है। इसी तिथि को नित्य गोलोक में सुरभि गाय का प्राकट्य हुआ था, यानी धर्म, सत्य, पवित्रता की स्थापना के प्रतीक गौ माता का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने इसी तिथि को इंद्र के अभिमान को चूर्ण करने के लिए तथा गोवर्धन पर्वत के पूजन का महादिवस चुना। यह गोवर्धन पूजन केवल पर्व नहीं था, बल्कि नौ दिनों तक चलने वाला गौ-यज्ञ एवं ब्राह्मण यज्ञ था। तत्कालीन भारतवर्ष में इसी प्रकार पूरे नौ दिनों तक गो नवरात्रि का व्रत‐उत्सव भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था। भागवत पुराण में स्पष्ट उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण ने ‘गवा मखा’ अर्थात गौ यज्ञ की परंपरा का आरंभ किया, जो नौ दिनों तक चलता रहा। यह यज्ञ केवल गोवर्धन पर्वत की पूजा तक सीमित नहीं था, बल्कि नौ दिवसीय व्रत, पूजन, उत्सव एवं आध्यात्मिक साधना का सिंद्धान्त है। श्रीकृष्ण के अवतार काल तक संपूर्ण भारतवर्ष में चैत्र मास में वासंती नवरात्रि और शरद में शारदीय नवरात्रि मनाई जाती थीं। ठीक इसी प्रकार, कार्तिक माह में गो नवरात्रि भी सम्पूर्ण भारतवर्ष में धूमधाम से मनाई जाती थी। गौ पूजन और गोवर्धन पूजा का विशिष्ट विधान है। दीपावली के दिन गौ माता का पूजन, दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा, फिर अष्टमी तिथि को गोचारण (गौ सेवा) तथा अक्षय नवमी को व्रत-उद्यान। यह गो नवरात्रि उत्सव पूरे नौ दिन तक चलता है। इन दिनों में गौ माता का महत्व, उनकी सेवा, पुण्य-लाभ और भारतीय संस्कृति के आदर्श मूल्य समाज को पुनः स्मरण कराया जाता है।
दुर्भाग्यवश, धीरे-धीरे इस नौ दिन के पूरे उत्सव को समाज ने भुला दिया। अब लोग केवल एक दिन गोवर्धन पूजा, अथवा दूसरा दिन गोपाष्टमी पर ही गौ माता का पूजन कर लेते हैं। कहीं-कहीं तो केवल एक क्षणिक पूजन से उत्सव की इतिश्री हो जाती है। सच तो यह है कि यह नौ दिन का उत्सव है, जिसमें हर दिन विशेष अवसर रहता है पूजन, चलन, गौ सेवा, गौभक्ति, गौदान आदि। आज के आधुनिक, व्यस्त जीवन में यह उत्सव मात्र दो दिन में सिमट गया है। नवरात्रि का मूल अर्थ, उसकी कालखण्ड वार विशिष्टता और उसका समाज‐शिल्पकारी स्वरूप अधिकांश लोगों की स्मृति से लुप्त हो गया है। समाज में ऐसी स्थिति आ गई है कि लोग चैत्र, अश्विन जैसे महीनों के नाम, नवरात्रि की तिथियाँ, उत्सवों का सही अर्थ ही नहीं जानते। वसंती नवरात्रि किसे कहते हैं, शारदीय नवरात्रि किस तिथि पर आती है, गो नवरात्रि का विधान क्या है – इनके विषय में ज्ञान अभाव की स्थिति बन गई है। जीवन केवल भौतिकता, संग्रह, भोजन एवं आर्थिक गतिविधियों तक सीमित हो गया है; आध्यात्मिक प्रसार, धर्मकार्य, पुण्यकर्म एवं लौकिक संस्कारों से आमजन का संपर्क कटता जा रहा है। नवरात्रि मूलतः भारतीय संस्कृति का रीढ़ है। इसमें केवल देवी पूजा, व्रत या भोजन का निषेध नहीं है, बल्कि परिवार, समाज, प्रकृति एवं गौ माता का संरक्षण, भक्ति, सेवा, और आदि शक्ति के प्रति आस्था का प्रशिक्षण निहित है। संतान सुख, आरोग्य, लक्ष्मी, आयु, सिद्धि, विजय, सुख‐समृद्धि आदि के लिए नवरात्रि व्रत‐साधना का विशेष महत्व है।
गुप्त नवरात्रियाँ विशेष साधकों, तांत्रिकों, उपासकों के लिए मंगलकारी मानी जाती हैं। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि मानसून और वर्षा के आरंभ एवं माघ मास की गुप्त नवरात्रि शिशिर ऋतु के समापन के साथ जुड़ी हुई हैं। इन नवरात्रियों का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है, जिसमें तांत्रिक साधनाएँ, गुप्त विद्याओं, सिद्धियों की प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठानों का महत्व बताया गया है। प्रत्येक साधक को योग्यतानुसार व्रत उपासना का विधान करना चाहिए।
गो नवरात्रि की पद्धति का पुनरुत्थान आवश्यक है। यदि समाज पुनः नौ दिन तक गौ माता की आराधना, सेवा, पूजन और त्याग‐दान का व्रत‐उत्सव मनाने लगे, तो न केवल सामाजिक सनातन संस्कारों का पुनरुत्थान होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति की मूलभूत आत्मा, गौ माता का संरक्षण भी सुनिश्चित होगा। प्रत्येक दिन नवरात्रि के दौरान विशेष विधान करना चाहिए पहला दिन प्रतिपदा को संकल्प‐पूजन, द्वितीय से अष्टमी तक गौ सेवा, पूजा, गौ अंग‐रूपों का ध्यान, गोचारण, गौ‐दान, कथा, भजन, हवन, योग‐साधना, सामूहिक संतोष, गरीबों की सहायता, अक्षय नवमी को व्रत‐उद्यान एवं समापन। नवरात्रि का यह विस्तृत, परिपूर्ण स्वरूप ही भारतीय गाँव‐समाज में धर्म‐संस्कार की नींव का प्रतीक है।
आधुनिक युग की भागदौड़ ने वर्षों की इन पुण्य परंपराओं को अतीत की धूल में समेट दिया है। लोग चैत्र, आश्विन, कार्तिक का अर्थ ही नहीं समझते। जीवन केवल भोजन, संग्रह, आर्थिक प्रगति में ही बीतने लगा है। लेकिन नवरात्रि का पर्व हमें अपनी जड़ों, संस्कृति, आदर्श, माता‐पिता, पशु‐समाज, सामाजिक उत्थान, सेवा एवं परिवार‐बंधुत्व की ओर लौटने का आह्वान करता है। यदि अपने जीवन में नवरात्रि की परंपरा को पुनः जीवित कर सकें – भले ही पूरी बारह नवरात्रियाँ ना हो, कम से कम वासंती, शारदीय, गुप्त, और गो नवरात्रि को पूरे उत्साह, श्रद्धा, नियम, विधि, पुण्य‐भावना के साथ मनाने लगें – तो भारतीय संस्कृति की अमरता, सनातनता एवं दिव्यता निर्विवाद रूप से सुरक्षित रह सकती है।
भविष्य की पीढ़ियों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने परंपरागत ज्ञान को पुनः स्मरण करें – नवरात्रि की तिथि, महत्व, विधान, गौ माता के पूजन, सेवा, दान और उनके प्रति श्रद्धा को जागृत रखें। सम्पूर्ण देश में फिर से व्रत‐पूजन प्रक्रिया को हर घर, परिवार, गांव, समाज में स्थापित किया जाए। प्रत्येक किसी को चाहिए कि नवरात्रि, गो नवरात्रि, गुप्त नवरात्रि, वसंती, शारदीय नवरात्रि और उनके विधान को अपनी स्मृति में पुनः प्रकाशित करें और अगली पीढ़ी को उसका संदेश दें। इस प्रकार ही धर्म, समाज, संस्कृति और भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय परंपरा पुर्नस्थापित हो सकेगी।
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