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Punjab’s Farmers for MSP Guarantee: किसानों की मांगें और सरकार का रुख

NCIvimarshRN5 months ago

 

पंजाब की खेती की बढ़ती समस्याएं और किसानों की नाराजगी हाल के समय में एक गहरी चिंता का विषय बन गई हैं। इस मुद्दे ने ना सिर्फ पंजाब बल्कि देशभर के किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित किया है। किसानों की मुख्य मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी गारंटी दी जाए, जिससे किसी भी हालत में किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम मिल सके। वर्तमान में, MSP केवल चावल और गेहूं तक सीमित है, लेकिन किसान चाहते हैं कि इसे 22 फसलों तक विस्तारित किया जाए। सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों में MSP का स्पष्ट उल्लेख नहीं था, जिससे किसानों को यह डर सताने लगा कि कहीं इसे समाप्त ना कर दिया जाए। यह विवाद इतना बड़ा हो गया कि सरकार को इन कानूनों को वापस लेना पड़ा।

लेकिन MSP की गारंटी का मुद्दा अब भी सुलझ नहीं पाया है। पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर किसानों ने बड़े पैमाने पर डेरा डाल रखा है, जहां 73 वर्षीय किसान नेता जगजीत सिंह दलेवाल फास्ट-अन-टू-डेथ (अनशन) पर हैं। उनकी खराब होती सेहत ने आंदोलन को और तीव्र बना दिया है। किसानों का यह कहना है कि जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाएगा, वे आंदोलन जारी रखेंगे। इसमें लखीमपुर खीरी कांड के आरोपियों को सजा देने, पुराने केस वापस लेने और जमीन अधिग्रहण (land acquisition) में चार गुना मुआवजा सुनिश्चित करने की मांगें शामिल हैं।

हरियाणा और पंजाब के बॉर्डर क्षेत्रों को पुलिस ने लगभग पूरी तरह से सील कर दिया है। दिल्ली पहुंचने की कोशिश करने वाले किसानों को रोकने के लिए पुलिस बल तैनात किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में दखल दिया और कहा कि किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। लेकिन, किसानों का यह आरोप है कि सरकार उनकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रही है।

पिछले आंदोलन की तरह ही, यह भी एक व्यापक आंदोलन बनता जा रहा है। इस बार, तमिलनाडु, केरल और मध्य प्रदेश के किसान भी इसमें शामिल हो गए हैं। सरकार द्वारा बनाई गई कमेटियां अक्सर केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाती हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक आउट-ऑफ-द-बॉक्स (out-of-the-box) समाधान देने की कोशिश की थी कि अगले 5 वर्षों तक राज्य सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदेगी, लेकिन इसे यूनियन ने खारिज कर दिया।

MSP और कृषि सुधारों के संदर्भ में, भारत को फसल विविधता (crop diversification) की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। चावल और गेहूं पर अत्यधिक निर्भरता ने न सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता को खराब किया है, बल्कि किसानों की आय को भी सीमित कर दिया है। सरकार को ऐसी फसलों पर MSP लागू करना चाहिए जो बाजार में अधिक लाभकारी हों और किसानों को बेहतर आय दे सकें। लेकिन इसके लिए सरकार और किसानों के बीच संवाद आवश्यक है।

किसानों की यह नाराजगी सिर्फ MSP तक सीमित नहीं है। यह उस समग्र तंत्र पर सवाल उठाती है, जहां कृषि नीतियां किसानों की जरूरतों के बजाय राजनीतिक हितों के हिसाब से तय की जाती हैं। वर्तमान आंदोलन इस बात का सबूत है कि पुराने समाधान अब काम नहीं करेंगे। किसानों और सरकार को साथ बैठकर एक ऐसा रास्ता निकालना होगा जो सभी के लिए लाभकारी हो।

इस आंदोलन का असर व्यापार और आम जनता पर भी पड़ रहा है। बॉर्डर ब्लॉकेड (blockade) के चलते व्यवसायियों को भारी नुकसान हो रहा है। सरकार को यह समझना चाहिए कि इन समस्याओं को जल्दी सुलझाना जरूरी है, अन्यथा यह आंदोलन और उग्र हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी किसानों की मदद के लिए सुझाव दिए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। किसानों का यह विश्वास करना कि सरकार उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है, एक बड़ी समस्या है। सरकार को तुरंत पहल करते हुए MSP और अन्य मुद्दों पर स्पष्टता लानी चाहिए।

आंदोलन का यह स्वरूप हमें यह सिखाता है कि किसी भी मुद्दे को नजरअंदाज करना लंबे समय में बड़ा संकट खड़ा कर सकता है। अब समय है कि सरकार और किसान दोनों मिलकर इस समस्या का समाधान खोजें। पंजाब की कृषि व्यवस्था को बचाना और इसे एक नया आयाम देना अब अत्यंत जरूरी हो गया है।

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