क्या आपकी तरक्की रोकी है सूर्य और शनि ने? जानें 36 साल का सच!

By NCI
On: December 7, 2025 12:50 PM

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और शनि की युति को सबसे विचित्र और शक्तिशाली संबंधों में से एक माना जाता है। इसे अक्सर ‘पिता-पुत्र का दोष’ या ‘संघर्ष योग’ कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनि देव सूर्य के पुत्र हैं, लेकिन दोनों के बीच घोर शत्रुता है। सूर्य ‘आग’, ‘तेज’ और ‘स्वाभिमान’ (Ego) हैं, जबकि शनि ‘ठंडक’, ‘अंधकार’ और ‘अनुशासन’ (Discipline) हैं। जब ये दोनों विरोधी ग्रह कुंडली के एक ही घर में बैठ जाते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में एक अजीब सी कशमकश शुरू हो जाती है। यह ऐसा है जैसे एक कमरे में रोशनी और अंधेरा दोनों एक साथ रहने की कोशिश कर रहे हों। इस युति वाला व्यक्ति बचपन से ही बहुत गंभीर होता है। उसे जीवन बहुत हल्का-फुल्का नहीं लगता, बल्कि उसे हमेशा जिम्मेदारियों का बोझ महसूस होता है। सूर्य व्यक्ति को चमकना और शासन करना सिखाता है, लेकिन शनि उसे दबाता है और विनम्र रहना सिखाता है। इसी खींचतान में व्यक्ति का आत्मविश्वास बचपन में थोड़ा डगमगा सकता है, उसे लगता है कि उसकी प्रतिभा को कोई पहचान नहीं रहा है।

पिता से मतभेद और करियर में रुकावटें

इस युति का सबसे गहरा और प्रत्यक्ष असर व्यक्ति के अपने पिता के साथ संबंधों पर पड़ता है। चूँकि सूर्य पिता का कारक है और शनि विरोध का, इसलिए अक्सर देखा गया है कि ऐसे जातक के विचार अपने पिता से बिल्कुल नहीं मिलते। घर में वैचारिक मतभेद रहते हैं, या कई मामलों में पिता का सुख कम मिलता है (या तो पिता दूर रहते हैं या सख्त होते हैं)। करियर के मामले में भी यह युति शुरुआती जीवन में ‘ब्रेक’ लगाने का काम करती है। सूर्य ‘सरकारी नौकरी’ और ‘सत्ता’ का कारक है, लेकिन शनि ‘विलंब’ का। इसलिए ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी पाने में या करियर में सेटल होने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें हर चीज दूसरों के मुकाबले थोड़ी देर से मिलती है। कई बार उन्हें अपने ऑफिस में बॉस (जो सूर्य का रूप होते हैं) से भी परेशानी झेलनी पड़ती है। उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत का क्रेडिट कोई और ले जा रहा है, जिससे उनके अंदर एक गुस्सा और हताशा पनपने लगती है।

36 साल के बाद का चमत्कार: संघर्ष से सोना बनने का सफर

लेकिन, अगर आप सोच रहे हैं कि यह युति सिर्फ दुख देती है, तो आप गलत हैं। ज्योतिष में सूर्य-शनि की युति को ‘तपाकर सोना बनाने वाला योग’ भी कहा जाता है। शनि देव सूर्य (आत्मा) को अहंकार मुक्त करना चाहते हैं। इसलिए वे व्यक्ति को जीवन के शुरूआती 30-35 सालों में खूब मेहनत करवाते हैं, उसे अनुशासन सिखाते हैं और घमंड तोड़ते हैं। जैसे ही व्यक्ति 36 साल की उम्र पार करता है, यह युति अचानक ‘राजयोग’ में बदल जाती है। इतिहास गवाह है कि बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ, जज और उच्च अधिकारी इसी युति की देन हैं। जब शनि का अनुशासन सूर्य की शक्ति के साथ मिल जाता है, तो ऐसा व्यक्ति अजेय हो जाता है। उनकी सफलता रातों-रात नहीं मिलती, बल्कि उनकी नींव इतनी मजबूत होती है कि कोई उन्हें हिला नहीं सकता। वे समाज में एक कठोर लेकिन न्यायप्रिय शासक के रूप में उभरते हैं। इसलिए, शुरुआती संघर्ष को सजा नहीं, बल्कि ट्रेनिंग मानना चाहिए।

शांति और सफलता के उपाय

इस युति के संघर्ष को कम करने और सफलता की रफ़्तार बढ़ाने के लिए संतुलन बनाना बहुत जरुरी है। सबसे पहला उपाय है—अपने पिता का सम्मान करना। चाहे कितने भी मतभेद हों, रोज सुबह उनके चरण स्पर्श करने से सूर्य और शनि दोनों शांत होते हैं, क्योंकि यह ‘पिता’ और ‘पुत्र’ का मिलन है। सूर्य को मजबूत करने के लिए रोज सुबह तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं और शनि को खुश करने के लिए शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। ध्यान रहे, इन लोगों को कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और न ही अपने से छोटे कर्मचारियों को सताना चाहिए, वरना शनि का दंड बहुत कठोर होता है। कांसे की कटोरी में छाया पात्र का दान करना भी शनि के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए रामबाण इलाज है। सत्य और अनुशासन का पालन करने वाले के लिए यह युति अंत में वरदान ही साबित होती है।

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