भारत की विविधता में धर्म, नैतिकता और संवेदनाएँ गहरी नींव रखते हैं। सड़कों पर वाहन चलाते समय कई बार अनजाने में कोई जानवर (animal) हमारी गाड़ी की चपेट में आ जाता है। यह प्रश्न आम है कि क्या ऐसे हादसों से भी पाप (sin) लगता है? धर्मग्रंथ, संत-महापुरुष एवं जीवन अनुभव इन सवालों का समाधान खोजने की प्रेरणा देते हैं।
भारत में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति कहीं-न-कहीं धार्मिक संस्कारों से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म में जीव मात्र के प्रति दया और संवेदना को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों में भी प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए जीवन को विशेष महत्व प्रदान किया गया है। जानवरों (animals) की रक्षा करना धर्म का एक हिस्सा रहा है, क्योंकि ये भी सृष्टि के अंग हैं। सड़क पर चलते हुए अगर कोई जीव दुर्घटनावश मार दिया जाता है, तो उसकी पीड़ा और संवेदना एक संवेदनशील इंसान को विचलित कर देती है। धर्म में यह समझाया गया है कि किसी के भी प्रति क्रूरता (cruelty) और लापरवाही से बचना चाहिए। लेकिन सवाल वही है – अनजाने में हुए कृत्य का दोष किस हद तक है?
दिन-रात भागती ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती हैं, जिनकी कल्पना तक नहीं होती। वाहन चलाते समय, गांव, शहर, या जंगलों से गुजरते वक्त, कई बार कोई पशु-अचानक से सामने आ जाता है और दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है। वाहन चालक को आत्मग्लानि (guilt) और बोझ का अहसास होना स्वाभाविक है। कई लोग पशु को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं, फिर भी अगर उसकी मृत्यु हो जाए तो मन द्रवित हो जाता है। उनके परिवार के सदस्य, विशेष रूप से धार्मिक लोग, मानते हैं कि ऐसी मौत पर उस व्यक्ति को पाप लगता है, लेकिन धार्मिक विचार अलग-अलग हैं। कई बार यह भी कहा जाता है कि जब तक ऐसी घटना जानबूझकर न हो, तब तक दोष उतना बड़ा नहीं होता।
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो जीव हत्या को महापाप (grave sin) माना गया है, परंतु अधिकांश संत, महात्मा एवं विद्वानों का कहना है कि पाप का भाव (sinful intent) भी जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी जीव की हत्या करता है, तो यह पाप कहलाता है। लेकिन जब गाड़ी चलाते समय कोई मन में किसी को क्षति पहुँचाने का उद्देश्य (intention) नहीं रखता और आकस्मिक घटना घट जाती है, तब उस पर उतना बड़ा दोष नहीं माना गया है। उदाहरणस्वरूप, डॉक्टर जब इलाज करते हैं और मरीज की जान चली जाए, तब भी उनका भाव उपचार (treatment) का होता है, हत्या (murder) का नहीं। इसी प्रकार वाहन चालक का उद्देश्य (purpose) सिर्फ अपनी मंजिल तक पहुँचना होता है, किसी और को नुकसान पहुँचाना नहीं। इसलिए ऐसी घटना में पाप बोध हल्का होता है, परंतु उसके लिए पश्चाताप एवं सतर्कता का भाव आवश्यक है।
सनातन धर्म के संत बार-बार यह समझाते हैं कि हमारे कर्मों में सबसे महत्वपूर्ण हमारा भाव है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद में यही कही गई बात है कि ‘मारने वाला कोई नहीं और मरने वाला भी कोई नहीं, सब केवल साधन हैं’। पाप (sin) तब होता है, जब हमें द्वेष (envy), क्रोध (anger) या जानबूझकर किसी को हानि पहुँचाने की भावना हो। अगर मन में दया (compassion) और सेवा (service) का भाव हो, जीवन को सम्मान देने का नजरिया हो, तो कई बार अनजाने में हुए पाप स्वतः ही क्षमा योग्य हो जाते हैं। महात्मा प्रेमानंद महाराज, मुनि प्रमाणसागर जी आदि संत भी यही कहते हैं कि अगर किसी से ऐसी भूल हो जाए तो उसे पश्चाताप (repentance) करना चाहिए। मन ही मन भगवान से क्षमा प्रार्थना (forgiveness prayer) करें और निश्चय करें कि आगे और भी ज्यादा सतर्क रहेंगे।
भारतीय परंपरा में प्रायश्चित (repentance) को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। गलती हो जाने पर दिल से क्षमा याचना (heartfelt apology) करना पहला कदम है। घर में प्रभु का भजन (bhajan), कीर्तन, पूजा करने को सार्थक उपाय माना गया है। कई संतों का सुझाव है कि निष्कपट (innocent) भाव से भगवान के समक्ष बैठकर प्रार्थना करें कि “हे प्रभु, अनजाने में हुई इस भूल को क्षमा करें और उस जीवात्मा को शांति (peace) और मुक्ति (salvation) दें”। धार्मिक कार्य, तीर्थ यात्रा (pilgrimage), दान-पुण्य और सत्कर्म (good deeds) करना भी पाप की निवृत्ति के लिए सहायक हो सकता है। तीर्थ यात्रा, तप, जप, होम, गाय को चारा, गरीबों को भोजन और परस्पर दया का भाव रखने से भी मन को शांति मिलती है और आगामी जीवन में सतर्क रहने की प्रेरणा मिलती है।
धार्मिक विचारों के अनुसार प्रकृति में हर घटना के पीछे किसी न किसी वजह (reason) या ‘नियत समय’ (fixed time) का सिद्धांत छुपा होता है। फिर भी मनुष्य का कर्तव्य है कि वह अपने कर्तव्यों के प्रति सजग (alert) रहे। वाहन चलाते समय पूरी सतर्कता, सड़क पर चल रहे पशुओं, पक्षियों या मनुष्य की सुरक्षा (safety) महत्वपूर्ण है। केवल अपने मार्ग (path) पर चलने का अर्थ यह नहीं कि अगल-बगल की गलतियों को अनदेखा करें। संतों के अनुसार तेज गति, लापरवाही, मोबाइल, या ध्यान विचलित कर देने वाली हर चीज़ से बचना अनिवार्य है। वाहन चलाते समय हमेशा सावधान रहें, अनावश्यक हॉर्न न बजाएं, और कम रोशनी या खराब मौसम में बहुत धीरे चलें। यही रास्ता समाज, जीव-जंतु और अपने लिए सही है।
हिंदू शास्त्रों में कर्म का चक्र (cycle of karma) विलक्षण है। मनुष्य अपने कर्मों (deeds) का फल कभी न कभी अवश्य भोगता है। आकस्मिक (accidental) दुर्घटनाएँ कभी-कभी पूर्वजन्मों या वर्तमान जीवन के कर्मों का परिणाम भी मानी जाती हैं। कई संत मानते हैं कि किसी जीव की दुर्घटनावश मृत्यु होना कभी-कभी उस जीव के भी पिछले कर्मों से जुड़ा होता है और कहीं न कहीं उसकी आत्मा को मुक्ति का मार्ग मिल सकता है। लेकिन इसका यह तात्पर्य बिल्कुल नहीं कि अनजाने में हुई नुकसान की चिंता से ही खुद को पीड़ा दें, बल्कि उसका अनुभव लेकर सीखने की कोशिश करें कि आगे ऐसा न हो। क्रिया (action) के अलावा भावना (emotion) हमेशा प्राथमिक है। जब भी किसी घड़ी में खेद महसूस हो, प्रायश्चित करें, पुण्य (virtue) का अर्जन करें।
जहाँ एक ओर पुरानी सोच अनजानी घटनाओं के लिए खुद को ही दोषी ठहराने में झिझकती थी, आज का समय जागरूकता (awareness) और व्यवहारिक सोच के साथ आगे बढ़ने का है। सामाजिक स्तर पर भी वाहन चालकों को प्रशिक्षण (training), जानवरों के संरक्षण के लिए अभियान, और सड़क सुरक्षा (road safety) पर विशेष ध्यान देने की जिम्मेदारी है। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि सड़क किनारे पशुओं की सुरक्षा के लिए उचित व्यवस्था करें, चेतावनी बोर्ड, गति नियंत्रक (speed breaker) लगवाए जाएँ। व्यक्तिगत स्तर पर गाड़ी चलाते समय सभी लोग खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखने के लिए ट्रैफिक नियम (traffic rules) पालन करें। घायलों की मदद तुरंत करें, दवा, इलाज, पानी जैसी व्यवस्थाएँ उपलब्ध करवाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
भारतीय संस्कृति में क्षमा (forgiveness) को सर्वोच्च सद्गुण माना गया है। धार्मिक प्रवचनों में बताया जाता है कि मानव जीवन में सबसे महान वही है, जो अपनी भूल को जल्दी स्वीकार कर सके और दूसरों से तथा खुद से क्षमा मांगने की ताकत (strength) रखता हो। अनजाने में हुई घटनाएँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन यदि हम उन घटनाओं से सीखकर और बेहतर नागरिक, बेहतर इंसान बनने की कोशिश करें तो वह सबसे बड़ा प्रायश्चित है। संतों के अनुसार ही, जब भीतर पीड़ा हो, तब आँख बंद कर प्रभु से कहें – “हे नाथ, यदि मेरे कारण किसी जीव को कष्ट पहुँचा हो तो क्षमा करें, मुझे अधिक दयालु और जागरूक बनाएं”। इस भाव से हृदय हल्का होता है और जीवन में सकारात्मकता लौटती है।
अंततः यही कहा जा सकता है कि जीवन में कभी-कभी अनजाने में गलतियाँ होना स्वाभाविक है। परंतु, उनसे सबक लेना और आगे सतर्क रहना ही मुख्य धर्म है। यदि वाहन से अनजाने में कोई जीव जंतु या पशु मृत्युमुख में चला भी जाता है तो उसके लिए पश्चाताप, भगवान से क्षमा प्रार्थना, भजन-कीर्तन, दान, पुण्य, दर्शनीय कार्य तथा सत्कर्म करना सबसे सर्वोत्तम उपाय है। साथ ही अपनी जिम्मेदारियों को समझकर, जीवन के हर पहलु में दया, संवेदना, करुणा और सजगता बढ़ाने का प्रयास करें। यही रास्ता व्यक्तिगत, पारिवारिक, धार्मिक और सामाजिक कल्याण का मूल है। जिस संसार में जीवों की रक्षा और प्रेम को सर्वोपरि माना गया है, वहाँ जीवन के हर क्षेत्र में करुणा, दया, समर्पण, और अनुशासन के भाव को अपनाना ही सच्चा धर्म, सही जीवन और शांति का मार्ग है।