करवा चौथ के व्रत (Karwa Chauth 2025) का महत्व भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में बहुत गहरा है। हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (Kartik Maas Ki Krishna Paksha Chaturthi Tithi) को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और संपन्नता के लिए निर्जला व्रत (Nirjala Vrat) रखती हैं। इस पर्व (Festival) का इंतजार कई महीनों पहले से होता है, क्योंकि यह केवल पारिवारिक बंधन (Family Bond) और दांपत्य प्रेम (Marital Love) का ही प्रतीक (Symbol) नहीं है, बल्कि भारतीय परंपराओं (Traditions) और संस्कारों (Values) की जीवंतता भी दर्शाता है। करवा चौथ के दिन महिलाएं सूर्योदय (Sunrise) से चंद्रोदय (Moonrise) तक बिना अन्न-जल का सेवन किए उपवास करती हैं और दिनभर सोलह श्रृंगार (Sixteen Adornments) से सजती-संवरती हैं। श्रृंगार के बाद वे मां करवा और चंद्रमा (Moon) की पूजा कर पति की लंबी उम्र (Long Life) और सुखमय वैवाहिक जीवन (Blissful Married Life) की कामना करती हैं।
लेकिन जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं, जब किसी महिला को इस शुभ दिन पर मासिक धर्म (Menstruation/ Periods) आने के कारण असमंजस होने लगता है कि व्रत और पूजा (Puja) को कैसे पूरा करें। क्या मासिक धर्म के दौरान व्रत और धार्मिक अनुष्ठान (Religious Rituals) करना उचित है? पीरियड्स के दौरान व्रत तो निभाया जा सकता है, पर पूजा और धार्मिक कर्म (Religious Acts) से कैसे दूरी बनाएं? यही प्रश्न हर वर्ष करवा चौथ के आस-पास हजारों-लाखों महिलाओं के मन में उठता है। इस लेख में उन्हीं सभी सवालों का विस्तार से समाधान मिलेगा।
करवा चौथ और मासिक धर्म: धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण
वैदिक काल (Vedic Era) से लेकर आज तक मासिक धर्म को लेकर समाज में कई तरह की मान्यताएं (Beliefs) और मिथक (Myths) प्रचलित रहे हैं। पुराने समय में मासिक धर्म के विषय में इतनी जागरूकता नहीं थी और इसे जीवन के सामान्य व प्राकृतिक चक्र (Natural Cycle) की बजाय कोई दोष या पाप (Sin) मान लिया गया। इसी कारण धर्मशास्त्रों (Religious Scriptures) में मासिक धर्म के दिनों में महिलाओं के लिए कुछ धार्मिक गतिविधियों में प्रतिबंध (Restriction) का प्रावधान किया गया।
किंतु बदलते समय, चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) और वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Approach) ने बता दिया कि मासिक धर्म स्त्री शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया (Natural Process) है, जो हर महिला को हर महीने नियत अंतराल पर होती है। यह किसी भी प्रकार की अशुद्धि (Impurity) या दोष का विषय नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर का संकेत है। बावजूद इसके, भारतीय परंपरा में धार्मिक आयोजनों और पूजन में महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान भागीदारी पर सामाजिक, पारंपरिक और धार्मिक विचारधाराओं का प्रभाव अब भी नजर आता है।
अगर करवा चौथ के दिन शुरू हो जाए मासिक धर्म (Periods)
करवा चौथ के दिन अगर किसी महिला को मासिक धर्म शुरू हो जाए तो सबसे पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि इसमें चिंता (Tension) करने की कोई जरूरत नहीं है। यह एक सामान्य (Normal) और स्वाभाविक शारीरिक अवस्था (Physical Condition) है, जो किसी के नियंत्रण (Control) में नहीं है। इस विषय को लेकर शास्त्रों ने भी सरल रास्ते बताए हैं ताकि महिलाओं को मानसिक तनाव (Mental Stress) या अपराधबोध (Guilt) की भावना न हो।
शास्त्रों (Scriptures) में कहा गया है कि मासिक धर्म के कारण अगर कोई धार्मिक आयोजन (Religious Event) बाधित होता है तो स्त्री को इसका दोषी (Blameworthy) नहीं ठहराया जा सकता। मूल बात यह है कि देवी-देवता (Deities/Gods) व्यक्ति की भावना (Emotion), श्रद्धा (Faith) और संकल्प (Resolution) को स्वीकार करते हैं, न कि केवल बाहरी कृत्य (Outer Acts) को।
व्रत रखना: पूजा से दूरी, व्रत से नहीं
अगर करवा चौथ वाले दिन पीरियड आ जाए तो व्रत जारी रखना पूरी तरह से संभव (Possible) है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार मासिक धर्म के दौरान पूजा स्थल (Puja Place) पर जाकर मूर्ति (Idol) को छूना या धार्मिक कलश/करवा आदि के पास बैठना वर्जित (Prohibited) है, लेकिन अगर महिला चाहे तो व्रत निभा सकती है। इस स्थिति में क्या करना चाहिए, आइये विस्तार से जानते हैं:
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सर्वप्रथम मानसिक रूप से स्वयं को सहज और सहज स्वाभाविक रखें। तनाव बिलकुल न लें, क्योंकि यह एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है।
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पूरे दिन व्रत का संकल्प (Resolution of Fasting) बनाए रखें, लेकिन पूजा-पाठ (Puja-Path) या धार्मिक कर्मकांड (Rituals) में भाग न लें। आप घर में बाकी सुहागिन महिलाओं के साथ बैठकर कथा (Katha/Story) केवल सुन सकती हैं, इसमें कोई दोष नहीं है।
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अगर घर में कोई और पूजा कर रहा हो तो आप दूर से, बिना पूजा सामग्री (Puja Samagri) को छुए कथा सुन सकती हैं। मानसिक रूप से मां करवा का स्मरण (Remember/Recall) करते हुए अपने पति की लंबी उम्र की कामना मन में दोहरा सकती हैं।
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चंद्रमा का उदय (Moonrise) होते समय छलनी (Sieve) से चांद देखना, अर्घ्य (Water Offering) देना और पारंपरिक पूजा से बचना ही उचित माना गया है। आप केवल मन से ध्यान करते हुए व्रत खोल (Break Fast) सकती हैं।
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इस दौरान पूरे श्रृंगार (Shingar/Makeup) के साथ बैठें ताकि उत्सव (Festival) की भावना में कमी न आए। सुंदर वस्त्र (Beautiful Clothes), गहने (Jewellery) और श्रृंगार वस्तुएं पहनकर दिन का आनंद लें।
मासिक धर्म में पूजा-पाठ क्यों वर्जित?
मूलतः मासिक धर्म के दिन महिलाएं शारीरिक रूप से कष्ट (Discomfort) और थकान (Fatigue) से गुजरती हैं, इसलिए प्राचीन परंपरा में उनका आराम (Rest) प्रधान रखा गया। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के दौरान शारीरिक सक्रियता (Physical Activity), साफ-सफाई, लंबे समय तक बैठना-खड़ा होना आदि आवश्यक होते हैं, जो इन दिनों में कष्टदायक हो सकते हैं। शास्त्रों ने महिलाओं की सेहत (Health) का ध्यान रखते हुए उनको आराम देने के लिए ये नियम बनाए।
भौतिक शुद्धि (Physical Purity) और मानसिक शुद्धि (Mental Purity) दोनों ही धर्म का आदर्श मानी जाती है। मासिक धर्म को शारीरिक शुद्धि के दृष्टिकोण से देखना गलत है, क्योंकि ये जैविक प्रक्रिया (Biological Process) है। फिर भी, सदियों से चले आ रहे नियमों के अनुपालन (Following Traditions) के पीछे महिला की सम्मानजनक स्थिति और स्वास्थ्य को प्राथमिकता (Priority) देना मुख्य उद्देश्य था।
करवा चौथ के व्रत का पूरा फल कब मिलेगा?
बहुत-सी महिलाओं के मन में यह प्रश्न रहता है कि अगर पीरियड के दौरान केवल व्रत रखा और पूजा नहीं की तो व्रत का पूरा फल (Reward of Fasting) मिलेगा या नहीं? इस संदर्भ में धर्मशास्त्र (Religious Scriptures) स्पष्ट करते हैं कि ईश्वर (God) केवल व्यक्ति की भावना और श्रद्धा को देखते हैं। अगर सच्चे मन से श्रद्धा, संकल्प और प्रेम के साथ व्रत रखा जाए, तो पूजा-पाठ में शारीरिक भागीदारी जरूरी नहीं। मानसिक रूप से किया गया जप, ध्यान और मन की शुद्धता (Purity) सर्वाधिक महत्वपूर्ण (Most Important) है।
शास्त्रों द्वारा उत्सव को सहज और प्राकृतिक रखने की प्रेरणा (Inspiration) दी गई है। यदि मासिक धर्म के कारण पूजा-पाठ से दूरी बने तो मन में अपराधबोध या तनाव रखना व्यर्थ (Useless) है। इससे न तो व्रत की महत्ता कम होती है, और न ही शुभ फल में कोई कमी आती है।
अगर व्रत या पूजा रह जाए अधूरी तो क्या करें?
कई बार कुछ महिलाएं व्रत तो रख लेती हैं मगर पीरियड्स की वजह से पूजा नहीं कर पातीं, जिससे उनमें अपराधबोध या भय (Fear) आ सकता है। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि धर्म-कर्म में लचीलापन (Flexibility) है। अगर किसी मजबूरी (Compulsion) या असमर्थता के कारण पूजा या कोई कर्म रह जाता है तो शास्त्र उसे क्षम्य (Forgivable) मानते हैं। ऐसे समय में मानसिक रूप से मां करवा का ध्यान, चंद्रमा की प्रार्थना और पति की दीर्घायु (Longevity) के लिए मन-ही-मन प्रार्थना करना ही पर्याप्त है।
कुछ परंपराओं में यह भी माना गया है कि पीरियड के दौरान अगर कोई महिला व्रत या पूजा नहीं कर पाए तो वे भविष्य में किसी भी दिन पूजा का संकल्प (Resolution) ले सकती हैं या घर की दूसरी स्त्रियों या पंडित से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करवा सकती हैं।
आधुनिक सामाजिक सोच और स्वास्थ्य विज्ञान
आज के समय में जब महिलाएं शिक्षा, नौकरी और सामाजिक जिम्मेदारियों (Responsibilities) में अग्रणी हो रही हैं, तो मासिक धर्म को लेकर रूढ़िवादी सोच (Conservative Thinking) में बदलाव आना जरूरी है। स्वास्थ्य विज्ञान (Health Science) भी यही बताता है कि मासिक धर्म पूरी तरह शारीरिक प्रक्रिया है जिसका धर्म या अधर्म (Virtue or Sin) से कोई संबंध नहीं। इन दिनों महिलाओं को स्वस्थ रहने, आराम करने और पौष्टिक आहार (Nutritious Diet) लेने की ही सलाह दी जाती है।
यदि कोई महिला अपने शरीर की हालत (Physical Condition) को देखते हुए व्रत या पूजा न कर सके, तो इसमें कोई अपराधबोध न पालें। स्वस्थ समाज के लिए जरूरी है कि धार्मिक जीवन में लचीलापन (Flexibility in Religious Life) हो। यदि कोई महिला इच्छुक है कि वह केवल मानसिक रूप से व्रत करे तो यह भी उतना ही फलदायक (Rewarding) है।
परिवार और समाज की भूमिका
यह परिवार (Family) और समाज (Society) की भी जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं का भावनात्मक रूप से समर्थन (Emotional Support) करे। करवा चौथ जैसे त्योहारों (Festivals) में महिलाओं की भूमिका मुख्य होती है, लेकिन मासिक धर्म के कारण अगर कोई महिला सक्रिय रूप से पूजा में भाग नहीं ले पाती तो परिवार उसको समझे और सहयोग करे। सिर्फ सामाजिक मान्यता (Social Acceptance) या परंपरा के नाम पर महिलाओं पर अनावश्यक मानसिक दबाव (Unnecessary Mental Pressure) डालना गलत है। घर की बुजुर्ग महिलाएं, माता-पिता, पति और अन्य सदस्य ऐसी परिस्थिति में महिला को प्रोत्साहित (Encourage) करें ताकि वह सहजता से त्योहार का आनंद (Enjoyment) ले सके और सम्मानपूर्वक (Respectfully) व्रत निभा सके। परिवार का वात्सल्य (Affection) और सहयोग (Support) बहुत मायने रखता है।
महिलाओं की आत्मनिर्भरता और व्यक्तिगत निर्णय
करवा चौथ के दिन जब ऐसे हालात आएं तो महिलाओं को चाहिए कि वे स्वयं आत्मविश्वास (Self-confidence) के साथ, अपने स्वास्थ्य और सुविधा (Comfort) का ध्यान रखते हुए व्यक्तिगत निर्णय (Personal Decision) लें। क्योंकि हर स्त्री के लिए उसका शरीर, स्वास्थ्य और मानसिक शांति (Mental Peace) सबसे महत्वपूर्ण है। धार्मिक कार्यों के दौरान सबसे ज्यादा महत्व भावना और श्रद्धा (Emotion and Devotion) का होता है। यदि सचमुच आस्था (Faith) है तो वह मन से भी निभाई जा सकती है, जरूरी नहीं कि हर बाह्य कृत्य (Outer Act) किया जाए। परंपरा का पालन (Tradition Following) सामाजिक जीवन के लिए अच्छा है, लेकिन व्यक्तिगत भलाई (Personal Wellbeing) सर्वोपरि है।
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