Pakistan सेना प्रमुख असीम मुनीर ने हाल में जो कदम उठाए, वह अब उनके लिए ही भारी साबित होते दिख रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि उन्होंने अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की आड़ में ऐसे फैसले लिए जिनसे स्थिति और बिगड़ गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, असीम मुनीर फिलहाल सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह गायब हैं और आशंका जताई जा रही है कि वह किसी बंकर में छिपे हो सकते हैं। उनकी यह स्थिति यह संकेत देती है कि देश के भीतर हालात उनके नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। उन्होंने जो भी कार्रवाई की, वह केवल बयानबाज़ी तक सीमित रही और उसका परिणाम जमीनी स्तर पर नकारात्मक रहा। उनकी नीतियों से पाकिस्तान की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और भी खराब हुई है। अब सवाल यह उठता है कि क्या असीम मुनीर ने जानबूझकर देश को संकट में धकेला या यह एक असफल रणनीति का हिस्सा था। जो भी हो, इस समय वे जनता के निशाने पर आ चुके हैं।
असीम मुनीर के हालिया फैसलों को कई लोग ऐतिहासिक युद्धनीति से जोड़ते हैं। चीन के महान रणनीतिकार सुन त्ज़ू ने कहा था कि अगर आप अपने दुश्मन और खुद को भली-भांति जानते हैं तो हर युद्ध में जीत सुनिश्चित है। परंतु अगर आप खुद को जानते हैं लेकिन दुश्मन से अनभिज्ञ हैं तो जीत अस्थायी होगी और पराजय संभव है। सबसे खराब स्थिति तब होती है जब ना आप खुद को जानते हैं और ना ही अपने दुश्मन को। असीम मुनीर की रणनीति में यही दोष स्पष्ट रूप से दिखता है। उन्होंने भारत को कमतर आंकते हुए न केवल उसे उकसाया, बल्कि आंतरिक स्थिरता को भी खतरे में डाला। उन्होंने पाकिस्तान की वास्तविक समस्याओं को दरकिनार कर युद्ध की हवा बनाई, जो देश को और गर्त में ले गई। इस तरह का दृष्टिकोण न केवल अनाड़ीपन दर्शाता है, बल्कि जनता की आकांक्षाओं के साथ विश्वासघात भी है। रणनीति और लोकप्रियता के चक्कर में असीम मुनीर ने अपने लिए ही गड्ढा खोद लिया।
Pakistan ने अफगानिस्तान और तालिबान से करीबी बढ़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन यह प्रयास विफल रहा। हाल ही में तालिबान से बातचीत की गई, जिसमें उम्मीद थी कि वे पाकिस्तान की नीतियों को समर्थन देंगे। लेकिन तालिबान ने साफ शब्दों में कह दिया कि वे पाकिस्तान की बातों में आने वाले नहीं हैं। अफगानिस्तान एक ऐसा युद्धभूमि (battlefield) बन चुका है जहां पहले रूस और फिर अमेरिका ने अपने हाथ जलाए हैं। तालिबान अब नहीं चाहता कि पाकिस्तान वहां की स्थिति और बिगाड़े। तालिबान का यह रवैया दर्शाता है कि पाकिस्तान की विदेश नीति भी चरमराने लगी है। साथ ही, अफगानिस्तान से संचालित हो रहे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने भी पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। अब पाकिस्तान को कई मोर्चों पर आतंकी गतिविधियों का सामना करना पड़ रहा है। ये सब घटनाएं मिलकर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरों में और नीचे गिरा रही हैं। साफ है कि असीम मुनीर के कूटनीतिक प्रयासों को झटका मिला है।
Pakistan में केवल सीमावर्ती देश ही नहीं, बल्कि खुद देश के अंदर भी अशांति की लहर है। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) जैसे क्षेत्रों में विद्रोह और असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने हाल ही में एक ट्रेन हाईजैक की घटना को अंजाम दिया, जिससे सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई। खैबर पख्तूनख्वा लंबे समय से आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है। पाकिस्तान सरकार इन क्षेत्रों पर नियंत्रण खोती जा रही है, और यह बात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खुलकर सामने आने लगी है। पाकिस्तान के लिए यह एक बहुत बड़ा आंतरिक खतरा बन चुका है। जिस देश में चारों ओर से विद्रोह की आग लगी हो, वहां की सरकार और सेना के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास एक सपना मात्र रह जाता है। असीम मुनीर इन विद्रोहों को दबाने में पूरी तरह असफल साबित हुए हैं। इससे यह भी साफ होता है कि पाकिस्तान अंदर से टूट रहा है।
असीम मुनीर ने हाल में एक बार फिर टू-नेशन थ्योरी (दो-राष्ट्र सिद्धांत) को हवा दी। उन्होंने भाषण में कहा कि हिंदू और मुस्लिम सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से अलग हैं, और इसी कारण भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ था। उन्होंने यहां तक कह डाला कि कश्मीर पाकिस्तान की नसों में है। इस प्रकार की भड़काऊ बातें करने का नतीजा यह हुआ कि देशभर में दंगे फैलने लगे। विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में आतंकियों को इससे प्रेरणा मिली और उन्होंने हमला किया। इस पूरे घटनाक्रम से स्पष्ट है कि असीम मुनीर देश को एक बार फिर धार्मिक उन्माद की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे थे। उनका लक्ष्य था ध्यान भटकाना ताकि जनता सरकार से अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार पर सवाल ना करे। लेकिन यह रणनीति उल्टी पड़ गई और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान की छवि और भी धूमिल हो गई। यह भाषण नफरत फैलाने वाला था, न कि एक जिम्मेदार नेता की सोच का परिचायक।
अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर पाकिस्तान पूरी तरह फेल होता दिख रहा है। साल 2022 के बाद से पाकिस्तान की जीडीपी (GDP) में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। 2023 में यह 1.7 प्रतिशत पर पहुंच गई, जबकि 2024 में यह केवल 2 प्रतिशत रही। 2025 के लिए अनुमान 2.4 प्रतिशत का है, जो बहुत ही निराशाजनक आंकड़ा है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो जाता है कि देश आर्थिक मंदी के दलदल में फंस चुका है। विदेशी निवेश रुक चुका है, महंगाई आसमान छू रही है और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है। ऐसे हालात में असीम मुनीर का ध्यान युद्ध की तरफ मोड़ना आर्थिक आत्मघात जैसा है। उन्होंने आर्थिक सुधार के बजाय जनता को भारत विरोधी नारों में उलझा दिया। पाकिस्तान की शेयर बाजार भी लगातार गिरावट पर है और मुद्रा (currency) का अवमूल्यन चरम पर है। देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए जिस समझ और संयम की ज़रूरत थी, वह असीम मुनीर में नहीं दिखाई दी।
पाकिस्तान की मौजूदा सरकार और सेना बार-बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और चीन से सहायता की मांग कर रही है। हाल ही में IMF ने पाकिस्तान को $7 बिलियन का बेलआउट (bailout) पैकेज दिया, लेकिन इसका असर जमीनी स्तर पर नहीं दिखा। पाकिस्तान की सरकार इस फंड का इस्तेमाल जनता को झूठी तसल्ली देने में कर रही है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। जबकि असल में हालात जस के तस हैं। चीन भी अब पाकिस्तान की बातों से ऊब चुका है और अपने व्यापारिक हितों को प्राथमिकता दे रहा है। भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को लेकर पाकिस्तान द्वारा उठाए गए मुद्दे को भी चीन ने सिरे से नकार दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की कूटनीतिक विश्वसनीयता खत्म हो रही है। जब तक देश की राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व में स्थिरता नहीं आती, कोई भी देश पाकिस्तान की मदद के लिए आगे नहीं आएगा।
भारत ने असीम मुनीर की उकसाने वाली रणनीति का जवाब संयम से दिया है। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह युद्ध नहीं चाहता, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटेगा। भारतीय सेना आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है और रक्षा अनुभव के मामले में पाकिस्तान से कहीं आगे है। भारत ने पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया है कि किसी भी प्रकार की हिंसा का करारा जवाब दिया जाएगा। इसके साथ ही भारत पाकिस्तान को कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक स्तर पर घेरने की रणनीति अपना रहा है। जैसे कि पाकिस्तान को नेवल ब्लॉकेज (naval blockade), बलूच विद्रोहियों को समर्थन और अफगानिस्तान के साथ मजबूत रिश्ते इस रणनीति के तहत हैं। भारत की यह ‘नो बैटल जीत’ की रणनीति चीन से प्रेरित होकर बनाई गई है, जो बिना युद्ध किए ही शत्रु को कमजोर कर देती है। अब पाकिस्तान को यह समझना होगा कि युद्ध से ज्यादा ज़रूरी है टिकाऊ विकास और शांतिपूर्ण नीति।
असीम मुनीर की रणनीतियों ने पाकिस्तान को एक अंधे गड्ढे की ओर धकेल दिया है। देश आंतरिक विद्रोह, आर्थिक गिरावट और कूटनीतिक अलगाव से जूझ रहा है। असीम मुनीर को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि केवल युद्ध या उकसावे से देश की समस्याएं हल नहीं होंगी। पाकिस्तान को अब यह सोचना होगा कि क्या वह नफरत की राजनीति से ऊपर उठकर अपने नागरिकों को रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य की गारंटी दे सकता है। अगर पाकिस्तान नेतृत्व बदलता नहीं, तो यह संकट और गहरा हो सकता है।