लेखिका- मीनाक्षी लिंगवाल via NCI
तुङनाथ मंदिर (Tungnath temple) उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, और यह भगवान शिव को समर्पित विश्व का सबसे ऊँचा मंदिर माना जाता है। यह मंदिर समुद्र तल से 3680 मीटर (12,073 फीट) की ऊँचाई पर पंच केदार श्रंखला का तीसरा प्रमुख स्थल है। यहाँ की शांत और अद्भुत वादियों में बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां, हरियाली से भरे घास के मैदान और पाइन तथा भोजपत्र के घने जंगल एक अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य का अहसास कराते हैं। हर वर्ष हज़ारों श्रद्धालु व पर्यटक, तीर्थयात्रा (pilgrimage) व ट्रेकिंग (trekking) के लिए यहाँ आते हैं।
तुङनाथ की पौराणिक कथा और महत्त्व
इस मंदिर की पौराणिकता महाभारत से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार कौरवों का वध करने के बाद पांडव भ्राताओं को भारी अपराधबोध (guilt) हुआ और वे अपने पापों से मुक्ति के लिए भगवान शिव की शरण में पहुँचे। किंतु भगवान शिव उनसे रुष्ट (angry) थे, इसलिए उन्होंने पांडवों से छुपने के लिए बैल (bull) का रूप धारण किया और हिमालय की ओर चले गए। पांडवों ने शिव जी की खोज में बहुत प्रयत्न किया। मान्यता है कि शिव जी अंततः पांच स्थानों पर प्रकट हुए, जहाँ पर पंच केदार (Panch Kedar) मंदिरों की स्थापना हुई। तुङनाथ इन्हीं पंच केदार का तीसरा और सबसे ऊँचा स्थल है, जहाँ भगवान शिव की भुजाएँ (arms) प्रकट हुईं। यहाँ के शिल्प (architecture) की खूबसूरती भी काबिल-ए-तारीफ़ है। मंदिर मुख्य रूप से पत्थरों से निर्मित है, जिसमें प्राचीन उत्तर भारतीय शिल्प शास्त्र की झलक मिलती है। कहा जाता है कि तुङनाथ मंदिर की स्थापना अर्जुन ने की थी। गर्भगृह (sanctum sanctorum) में शिवलिंग स्थित है, जिसके दर्शन हेतु हर वर्ष हिमालय क्षेत्र की कठिनाईयों के बावजूद भक्त एक लंबा सफ़र तय करते हैं।
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मंदिर तक पहुँचने का अनुभव (Trek Experience)
तुङनाथ मंदिर का सफर एक यादगार ट्रेकिंग (trekking) अनुभव देता है, क्योंकि यहाँ का ट्रेक चौपटा (Chopta) नामक मनोरम स्थान से शुरू होता है। चौपटा को उत्तराखंड का ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ भी कहा जाता है। चौपटा से तुङनाथ मंदिर तक की दूरी लगभग 3.5 किलोमीटर है और इसमें 1000 मीटर की ऊँचाई का अंतर आ जाता है। यह यात्रा पत्थर से बने मार्ग, घुमावदार मोड़ों और खूबसूरत घास के मैदानों से होते हुए आगे बढ़ती है। मार्ग में पक्षियों की चहचहाहट (chirping), झीलें और बर्फ से ढके पहाड़ यात्रियों को रोमांच से भर देते हैं। देवदार, बांज, और भोजपत्र के झुंड इस रास्ते को और मोहक बना देते हैं। ट्रेक के दौरान मौसम का अचानक बदलना आम है—कई बार धूप, तो कई बार कोहरा या हल्की बारिश भी हो जाती है। चौपटा से तुङनाथ पहुँचने में औसतन दो से तीन घंटे लगते हैं। रास्ते में ग्यारह घुमावदार (bends) चढ़ाई वाले मोड़ आते हैं। ट्रेक आसान से माध्यम (easy to moderate) श्रेणी का है, इसलिए नए और अनुभवी दोनों ट्रेकर इसका आनंद उठा सकते हैं। तुङनाथ मंदिर के पास पहुँचते ही बर्फ से ढकी चोटियों का भव्य दृश्य दिखाई देता है। रास्ते में कई छोटी दुकाने भी हैं जहां चाय, मैगी एवं हल्का नाश्ता आदि मिलता है। अधिकतर ट्रेकर्स मार्च से जून एवं सितंबर से नवंबर महीनों के बीच यहाँ आते हैं।
चंद्रशिला शिखर
तुङनाथ मंदिर के ठीक ऊपर 1.5 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के बाद चंद्रशिला (Chandrashila) शिखर आता है, जिसकी ऊँचाई लगभग 4000 मीटर (13,123 फीट) है। यहाँ से 360 डिग्री में फैली हिमालय चोटियों का अद्भुत और अविस्मरणीय दृश्य दिखाई देता है, जिसमें नंदा देवी, त्रिशूल, केदारनाथ, चौखम्बा सहित कई प्रमुख पहाड़ियां साफ नजर आती हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या (brahmahatya) के प्रायश्चित स्वरूप यहीं तपस्या की थी। चंद्रशिला शिखर तक की चढ़ाई कठिन है, मगर यहाँ पहुँचकर मिलने वाला शांति और प्रकृति का अद्वितीय एहसास हर श्रम को सार्थक बना देता है। यहाँ पत्थरों की पिरामिड जैसी छतरियाँ बनी होती हैं, जिन्हें संतुलन (balance), ध्यान और एकता का प्रतीक माना जाता है। यहाँ बैठकर लोग प्रकृति में पूरी तरह रम जाते हैं और आकाश में तारों से भरा दृश्य रात में मोह लेता है।
पंच केदार यात्रा का महत्त्व
पंच केदार मंदिरों का विशेष स्थान भारतीय धार्मिक परंपरा में है। केदारनाथ, तुङनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर, और कल्पेश्वर – इन पंच केदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंग प्रकट हुए माने जाते हैं। तुङनाथ में जहाँ उनकी भुजाएँ (arms), केदारनाथ में उनकी पीठ (hump), मध्यमहेश्वर में उनका नाभि (navel), रुद्रनाथ में उनका मुख (face) और कल्पेश्वर में उनके जटाएँ (hair) प्रकट होने का वर्णन है। इन मंदिरों का दर्शन जीवन की कठिनाइयों व पापों से मुक्ति का मार्ग बताया गया है।
तुङनाथ मंदिर एक अति प्राचीन उत्तरी-भारतीय शैली में निर्मित है, जो पूर्णतः पत्थरों से बना है, और इसमें सुंदर नक्काशी (carving) देखी जा सकती है। सामने एक प्रांगण, मंदिर का गर्भगृह और पास में छोटे-छोटे देवताओं के मंदिर स्थित हैं। यहाँ हर साल अप्रैल के बाद कपाट (doors) खुलते हैं और नवंबर में बर्फबारी के चलते बंद हो जाते हैं। मौसम की दृष्टि से यहाँ मई-जून में सबसे अधिक भीड़ होती है, जब बर्फ पिघलने लगती है और रास्ता खुला रहता है। नवंबर से मार्च तक भारी बर्फबारी के कारण यहाँ पहुँचना असंभव हो जाता है।
यात्रा मार्ग और सुविधाएँ
दिल्ली या उत्तर भारत के अन्य प्रमुख शहरों से चौपटा पहुँचने के लिए मुख्यतः दो मार्ग प्रचलित हैं—एक ऋषिकेश-देवप्रयाग-श्रीनगर-पौड़ी-चोपता और दूसरा कोटद्वार-लैंसडाउन-पौड़ी-चोपटा। दोनों मार्ग पर्वतीय हैं और सुंदर वादियों से होकर गुजरते हैं। चौपटा में होटल, लॉज, होमस्टे, कैंपिंग आदि की प्रमुख सुविधाएँ उपलब्ध हैं, लेकिन शीतकाल में यहाँ की सुविधाएँ सीमित रहती हैं। ट्रेकिंग के लिए बेसिक ज़रूरी सामान जैसे ट्रेकिंग शूज, गर्म कपड़े, पानी की बोतल, मौसम के अनुसार जैकेट, टोपी, सनस्क्रीन आदि अवश्य साथ रखना चाहिए। स्थानीय लोगों की मदद एवं गाइड की सेवा भी ली जा सकती है, जिससे मार्ग में किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती।
यहाँ हर वर्ष शिवरात्रि, पंच केदार यात्रा और अन्य धार्मिक पर्व बड़े श्रद्धा व उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। स्थानीय लोग यहाँ देवडोलियाँ (deity palanquins) निकालते हैं और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन पर भजन-कीर्तन करते हैं। प्राचीन मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से यहाँ शिव जी की पूजा करता है, उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है। तुङनाथ ट्रेक के मार्ग में विविधता से भरी वनस्पतियों और हिमालयन पक्षियों की भरमार देखी जा सकती है। यहाँ उगने वाले भोजपत्र के पेड़, पहाड़ी फूल, रंग-बिरंगे पक्षी जैसे उड़न मयूर (Monal), गिद्ध (Griffin vulture) आदि यहाँ के आकर्षण हैं। trekkers अक्सर यहाँ स्टार गेज़िंग (star gazing) का आनंद भी लेते हैं, क्योंकि साफ आसमान में लाखों तारे चमकते दिखाई देते हैं।