लेखक- विपिन चमोली via NCI
रुद्रनाथ (Rudranath) की यात्रा एक ऐसी आध्यात्मिक और कठिन यात्रा है जो चतुर्थ केदार के नाम से प्रसिद्ध है। यह यात्रा प्रकृति की अनुपम कृति और परमात्मा की महिमा का अतीव सुंदर अनुभव कराती है। इस रास्ते पर चलते हुए या तो मनुष्य हिम्मत हार जाता है या उसकी हिम्मत को बड़े-बड़े साहसी भी मानें, क्योंकि यह राह कठिनाइयों से भरी होती है। रास्ते में पानी, पहाड़ और वन के मायाजाल का अनुभव होता है और साथ ही उस एक अनंत का भी दर्शन होता है जिसने यह सब बनाया है। इस कठिन मार्ग में श्रम से शरीर को थकान जरूर पहुंचेगी, लेकिन मन को अनदेखे चमत्कार देखकर मुस्कान भी मिलेगी।
यह यात्रा सिर्फ एक साधारण यात्रा नहीं, बल्कि एक अंतर्यात्रा है, एक साधना है जिसमें शिव और शक्ति की आराधना होती है। चलते रहने पर धरती, आकाश, वायु, जल और अग्नि साथ होंगे, लेकिन रुक जाने पर यही तत्व कहीं जीवन में विघ्न डाल देंगे। इस पावन यात्रा में प्रकृति पग-पग पर स्वागत करेगी और आंख खुली हों तो चमत्कार साथ चलेंगे, जिससे मनुष्य की खोजी प्रवृत्ति को उच्चतम आस्था और विश्वास के शिखरों पर पहुँचने का अवसर मिलेगा। अंतरमन में प्रवेश करने वाला दृश्य जीवनभर रोमांचित करता रहेगा। इस यात्रा में स्वयं से संवाद होगा, सुनाई देगा अनहद नाद, और साक्षात्कार होगा उस परम से जो सभी से परे है।
सुबह-सुबह सती अनुसूया के दर्शन करते हुए यात्रा की शुरुआत होती है। रास्ता कठिन और दूरी लंबी है, इसलिए मंगल यात्रा की कामना के साथ ग्राम देवता के सामने प्रार्थना की जाती है। बहुत से लोग ऐसा बताते है की सफेद और काले दो स्वान यानि कुत्ते यात्रा में साथी बनते हैं, जिन्हें रुद्रनाथ के भैरव माना जाता है। रुद्रनाथ की दूरी यहां से लगभग 12 किलोमीटर है जिसे सामान्य स्थिति में 2-3 घंटे में पूरा किया जा सकता है, लेकिन पहाड़ की चढ़ाई इसे लगभग 36 किलोमीटर या 12 कोस की दूरी बना देती है। रफ्तार बढ़ाने पर अत्रि मुन्नी गुफा के बाद चढ़ाई शुरू होती है, जहां रुद्रा घाटी का रौद्र और सम्मोहक रूप सामने आता है। एक छोटी नदी जो गांव के लोग ‘गधेरा’ कहते हैं, पत्थरों पर नाचती हुई आवाज करती है, मानो गुनगुना रही हो। जंगल की वादियों में पक्षियों की चहचहाती आवाज़ मन को मंत्रमुग्ध कर देती है।
लगभग साढ़े तीन घंटे चलने के बाद जंगल बुग्याल पर पहुचेंगे और आप यहाँ घास के सुंदर मैदान और पहाड़ों की शोभा देखेंगे जहां असंख्य फूल खिलते हैं। फूलों के बीच एक विशेष पौधा राहत (herbal plant) भी दिखता है जिसकी आकृति नाग की तरह फैलती है। यहां की घाटी और प्राकृतिक सौंदर्य मन मोहता है। फूल पीले, लाल, नीले, और सफेद रंगों में खिलते हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि सितंबर-अक्टूबर में ये पौधे सूख जाते हैं और फूलों का आकार बढ़ जाता है।पंचगंगा नामक जगह पानी की पांच धाराओं के कारण प्रसिद्ध है, जहां कुछ धाराएं सूखी हुई हैं लेकिन यहां शांति और प्राकृतिक सुकून मिलता है। यहां मनुष्य और जानवरों के लिए बने रुकने के स्थानों का वर्णन भी किया गया है।
रुद्रनाथ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है, जो हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, और चोपता होते हुए मंडल से पहुंचा जा सकता है। मंडल से रुद्रनाथ के लिए 18 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई होती है। एक दूसरा मार्ग गोपेश्वर से सागर गांव होकर जाता है जो थोड़ा आसान है, जबकि तीसरा मार्ग कल्पेश्वर से रुद्रनाथ के लिए सबसे दुर्गम है। इन जगहों पर रुकने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून है। रुद्रनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर समय मानो थम सा जाता है। यहां का मंदिर तीनों केदारों से बिल्कुल अलग और अनूठा स्थापत्य है। यह मंदिर एक गुफा में स्थित है जहां भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। मंदिर के बाहर पत्थर की दीवार और लकड़ी का सेट बना हुआ है जिससे मंदिर की आकृति बनती है। मंदिर के पुजारी हरीश भट्ट द्वारा बताया गया कि लगभग 13-14 साल पहले यह मंदिर केवल गुफा में ही था।
भगवान रुद्रनाथ का शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है, जिसका उल्लेख स्कंद पुराण के केदारखंड में है। यह स्थान अत्यंत गुप्त और देवताओं के लिए दुर्लभ माना जाता है। मंदिर के समीप युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव और द्रौपदी के मंदिर छोटे-छोटे बनाये गए हैं, जो प्राचीनता दर्शाते हैं। मंदिर में पुजारी के अलावा कोई गर्भग्रह (sanctum sanctorum) में प्रवेश नहीं कर सकता और भोलेनाथ को जल अर्पित नहीं किया जा सकता। पूजा और श्रृंगार के बाद भगवान शिव का स्वरूप मुस्कुराता हुआ और जीवंत हो जाता है। यहाँ की शाम की आरती बहुत ही भक्तिमय होती है, जहां पारंपरिक घंटों और घड़ियाल की ध्वनि के बीच मां पार्वती स्वरूप नन्दा देवी की आरती की जाती है।
यह स्थान हिमालय के बीचों-बीच है और इसकी ऊर्जा स्रोत के रूप में महत्ता है। साफ मौसम में यहां से नन्दा देवी पर्वत और त्रिशूल पर्वत का मनोहर दृश्य दिखाई देता है। यह जगह एक अलग तरह की ऊर्जा प्रदान करती है। यहां के कुंड, जैसे नारद कुंड, सरस्वती कुंड, सूर्य कुंड, मानस कुंड आदि प्राकृतिक और धार्मिक महत्व रखते हैं। नारद कुंड का जल भगवान रुद्रनाथ की पूजा में भोग के लिए उपयोग किया जाता है। हर अमावस्या पर यहाँ हजारों दीप जलाने की परंपरा है। इस कुंड से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाएं हैं और इसे ऋषि मुनि, देवी-देवताओं की स्थली माना जाता है।
यात्रा के दौरान कई बार मौसम बदलते है , लेकिन यह सब अनुभव यात्रियों के संकल्प और उत्साह को कम नहीं कर पाते है । इस यात्रा का सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक महत्व अत्यधिक है। यह यात्रा कठिनाईयों से भरी है, लेकिन जो इसे पूरा करता है वह जीवन में एक उच्च आध्यात्मिक अनुभव लेकर निकलता है। यात्रा में कड़ी मेहनत, विश्वास और परमाध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है, जो मनुष्य के जीवन को शुभ और सार्थक बनाती है।
रुद्रनाथ की यात्रा, जहां भगवान भोलेनाथ की मुखमंडल जैसी संरचना है, वह अनूठा शिवलोक है, जो हिमालय की गोद में छिपा हुआ है। यह स्थान न केवल धार्मिकता की आत्मा है, बल्कि प्रकृति की अनुपम छटा भी प्रस्तुत करता है। यहां का रोमांच, भगवान शिव और शक्ति की आराधना का अनुभव, और हिमालय की पावन ऊर्जा मनुष्य को आत्मिक शांति का वरदान देती है। इस तरह की यात्रा जीवन में एक नई दिशा और ऊर्जा का संचार करती है, जो हर यात्री के लिए जीवन परिवर्तनकारी सिद्ध होती है।
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