Sanwaliya Seth Mandir : भगवान खुद बनते हैं यहाँ ‘बिजनेस पार्टनर’!

By NCI
On: December 12, 2025 11:41 AM
लेखक- हरेन्द्र सिंह (गिनीज बुक रिकार्ड धारक) via NCI

Sanwaliya Seth Mandir :  राजस्थान की पावन धरा न केवल शूरवीरों की कहानियों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह अपने चमत्कारिक मंदिरों के लिए भी जानी जाती है। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है—श्री सांवलिया सेठ मंदिर (Sanwaliya Seth Mandir)। यह मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है और इसे ‘कृष्ण धाम’ के रूप में भी जाना जाता है। चित्तौड़गढ़ जिले के मंडफिया (Mandphiya) गांव में स्थित यह मंदिर न केवल राजस्थान बल्कि मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के भक्तों के लिए भी आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर चित्तौड़गढ़ से उदयपुर की ओर जाने पर भादसोड़ा ग्राम के पास स्थित यह भव्य मंदिर अपनी सुंदरता और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 41 किलोमीटर और डबोक एयरपोर्ट (उदयपुर) से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जिससे यहां पहुंचना बेहद सुगम है। देवस्थान विभाग, राजस्थान सरकार के अंतर्गत आने वाला यह मंदिर अपनी भव्यता और भक्तों की अटूट आस्था के कारण हर साल लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।

सांवलिया सेठ का इतिहास और प्राकट्य की अद्भुत कथा (History of Sanwaliya Seth)

श्री सांवलिया सेठ के प्राकट्य की कथा बेहद रोचक और मीरा बाई की भक्ति से जुड़ी हुई है। किंवदंतियों और प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, सांवलिया सेठ की ये मूर्तियां वही हैं, जिनकी पूजा परम भक्त मीरा बाई किया करती थीं। कहा जाता है कि मीरा बाई इन मूर्तियों को गिरधर गोपाल मानकर पूजती थीं और संतों की जमात के साथ भ्रमण करती थीं। दयाराम नामक एक संत के पास ये मूर्तियां सुरक्षित थीं। जब मुगल शासक औरंगजेब की सेना मंदिरों को तोड़ते हुए मेवाड़ की तरफ बढ़ रही थी, तब मुगलों के विध्वंस से बचाने के लिए संत दयाराम ने प्रभु की प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसोड़ा की सीमा पर स्थित छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर छिपा दिया था। समय बीतता गया और मूर्तियां जमीन में दबी रहीं।

कालांतर में वर्ष 1840 में मंडफिया ग्राम के निवासी भोलाराम गुर्जर नामक एक ग्वाले को सपना आया कि भादसोड़ा-बागुंड की सीमा पर भगवान की तीन मूर्तियां जमीन में दबी हुई हैं। जब ग्रामीणों ने उस जगह पर खुदाई की, तो सपना सच साबित हुआ और वहां से भगवान कृष्ण के सांवले रूप की तीन एक जैसी मनोहारी मूर्तियां प्रकट हुईं। इन तीनों मूर्तियों को अलग-अलग जगह स्थापित किया गया। सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम (प्राकट्य स्थल) में रखा गया, मंझली मूर्ति को मंडफिया ग्राम (जो अब मुख्य सांवलिया धाम है) में स्थापित किया गया, और सबसे छोटी मूर्ति को भादसोड़ा के पास ही ‘सांवलिया जी’ नामक स्थान पर स्थापित किया गया। आज मंडफिया स्थित मंदिर ही मुख्य सांवलिया सेठ धाम के रूप में विश्वविख्यात है।

भक्तों के ‘बिजनेस पार्टनर’ हैं सांवलिया सेठ (Business Partner of Devotees)

सांवलिया सेठ को दुनिया भर में ‘सेठों का सेठ’ कहा जाता है। इस मंदिर की सबसे अनोखी मान्यता यह है कि यहां आने वाले भक्त भगवान को केवल भोग ही नहीं लगाते, बल्कि उन्हें अपने व्यापार और नौकरी में ‘हिस्सेदार’ (Partner) बनाते हैं। यह मान्यता इतनी प्रबल है कि लोग अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए सांवलिया सेठ के नाम से एक हिस्सा तय कर लेते हैं। माना जाता है कि जो भक्त सांवलिया सेठ को अपने व्यापार में पार्टनर बनाता है और ईमानदारी से उनका हिस्सा दानपात्र में डालता है, भगवान उसे कई गुना करके वापस लौटाते हैं। यही कारण है कि मंदिर का दानपात्र (भंडार) जब भी खुलता है, तो राशि करोड़ों में निकलती है। यह भंडारा आमतौर पर चतुर्दशी को खोला जाता है, जिसके बाद अमावस्या का मेला शुरू होता है। होली और दीपावली जैसे बड़े त्योहारों पर यह भंडार डेढ़ से दो माह के अंतराल में खोला जाता है।

मंदिर की वास्तुकला और भव्यता (Architecture of Mandphiya Temple)

वर्तमान में श्री सांवलिया सेठ का मंदिर एक भव्य और विशाल स्वरूप ले चुका है। गुजरात के विश्वप्रसिद्ध अक्षरधाम मंदिर की तर्ज पर इसका नवनिर्माण किया गया है। मंदिर का निर्माण गुलाबी बलुआ पत्थर (Pink Sandstone) से किया गया है, जो इसे एक राजसी और दिव्य रूप देता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान सांवलिया सेठ की काले पत्थर की आदमकद मूर्ति स्थापित है, जो भगवान कृष्ण के सांवले रंग को दर्शाती है और अत्यंत मनोहारी है। मुख्य मंदिर के दोनों ओर बने बरामदों और दीवारों पर बेहद आकर्षक चित्रकारी और नक्काशी की गई है, जो प्राचीन हिंदू मंदिर वास्तुकला से प्रेरित है। मंदिर का फर्श शुद्ध सफेद, पीले और गुलाबी पत्थर के बेदाग रंगों से सजाया गया है। योजना के अनुसार, अक्षरधाम की तरह यहां भी मंदिर परिसर के बीच खाली मैदान में एक संगीतमय फव्वारा (Musical Fountain) और सुंदर बगीचे विकसित किए जा रहे हैं जो इसकी शोभा में चार चांद लगाएंगे।

दानपात्र से निकलती है विदेशी मुद्रा (NRI Devotees and Donations)

सांवलिया सेठ की महिमा केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय (NRI) भी उन पर अटूट श्रद्धा रखते हैं। कई एनआरआई भक्त अपनी विदेशों में अर्जित आय का एक हिस्सा सांवलिया सेठ के चरणों में अर्पित करने आते हैं। यही वजह है कि जब मंदिर का भंडारा खुलता है, तो उसमें भारतीय रुपयों के साथ-साथ अमेरिकन डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, दिनार, और रियाल जैसी कई देशों की मुद्राएं निकलती हैं। इसके अलावा भक्त सोने और चांदी के आभूषण, बिस्कुट और ईंटें भी चढ़ाते हैं। विशेषकर अमावस्या के दिन यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्य जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

प्रमुख मेले और उत्सव (Festivals)

सांवलिया सेठ मंदिर में हर साल कई उत्सव मनाए जाते हैं, लेकिन जलझूलनी एकादशी (Jal Jhulni Ekadashi) का मेला सबसे प्रमुख है। वर्ष 1961 से ही इस पवित्र स्थान पर भाद्रपद माह की देवझूलनी एकादशी पर विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है। इस दौरान भगवान को सोने के बेवाण (पालकी) में बिठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है और शाही स्नान कराया जाता है। इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं और पूरा मंडफिया ‘हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की’ के जयकारों से गूंज उठता है। इसके अलावा, हर महीने की अमावस्या को यहां मासिक मेला लगता है, जिसमें भारी भीड़ होती है।


सांवलिया सेठ मंदिर कैसे पहुंचें? (How to Reach Sanwaliya Seth Mandir)

यदि आप सांवलिया सेठ के दर्शन का मन बना रहे हैं, तो यहां पहुंचना बहुत आसान है: Sanwaliya Seth Mandir Location

  1. हवाई मार्ग (By Air): निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर का ‘महाराणा प्रताप एयरपोर्ट’ (डबोक) है, जो मंदिर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। वहां से आप टैक्सी या बस द्वारा आसानी से मंडफिया पहुंच सकते हैं।

  2. रेल मार्ग (By Train): सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ‘चित्तौड़गढ़ जंक्शन’ है, जो लगभग 41 किलोमीटर की दूरी पर है। चित्तौड़गढ़ देश के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।

  3. सड़क मार्ग (By Road): यह मंदिर चित्तौड़गढ़-उदयपुर नेशनल हाईवे पर स्थित है। आप चित्तौड़गढ़ या उदयपुर से बस या निजी वाहन द्वारा आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। भादसोड़ा चौराहे से मंदिर की दूरी बहुत कम है।

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