Why Do Indian Brides Wear Red? लाल जोड़ा पहनने का राज़ क्या है?

By NCI
On: October 2, 2025 11:57 AM

शादी भारतीय समाज में केवल एक बंधन नहीं, बल्कि परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक मान्यताओं का एक गहरा प्रतीक है। विशेष रूप से भारतीय दुल्हन द्वारा लाल रंग का जोड़ा पहनने की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका धार्मिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्व है, जिसे समझने की आवश्यकता है। लाल रंग को शक्ति, समर्पण और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, और इसे देवी लक्ष्मी का प्रिय रंग भी कहा जाता है। जब कोई लड़की विवाह के मंडप में प्रवेश करती है, तो वह लाल साड़ी या जोड़ा धारण करती है। यह केवल सौंदर्य का विषय नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में एक गहरा संदेश छुपा होता है।

लाल रंग अग्नि का प्रतीक माना जाता है, और विवाह में अग्नि साक्षी रहती है। अग्नि को पवित्रता और ऊर्जा का स्रोत माना गया है, इसलिए विवाह संस्कार में लाल वस्त्रों को प्राथमिकता दी जाती है। यही कारण है कि साधु-संत भी भगवा या गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं, जो त्याग और समर्पण का प्रतीक होता है। विवाह भी एक प्रकार का त्याग है, जहां एक स्त्री अपने मायके का त्याग कर पति के घर को अपना घर बना लेती है। यही कारण है कि लाल रंग को दुल्हन का प्रमुख परिधान माना जाता है।

सनातन धर्म में विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो आत्माओं का मिलन माना जाता है। यह केवल सामाजिक व्यवस्था नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा भी है। जब कोई लड़की विवाह करती है, तो वह अपने पिता का घर छोड़कर एक नए जीवन की शुरुआत करती है। पुराने समय में विवाह के बाद बेटियां मायके बहुत कम आती थीं। उस समय मायके और ससुराल के बीच सीमित संपर्क रहता था, इसलिए बेटियों को अपने नए परिवार को पूरी तरह अपनाने की परंपरा थी। आज के समय में विकल्प अधिक हो गए हैं, इसलिए विवाह के रिश्तों में अस्थिरता भी बढ़ी है। पहले बेटियां विवाह के बाद मायके से कम ही संपर्क रखती थीं, लेकिन अब जब किसी को भी कोई परेशानी होती है, तो वह मायके लौटने के बारे में सोचने लगती हैं। यही कारण है कि पहले के मुकाबले अब रिश्तों में उतनी मजबूती नहीं रह गई है।

भारतीय विवाह पद्धति में कई रस्में निभाई जाती हैं, जिनका अपना एक वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। विवाह से पहले मेहंदी, हल्दी और मांगलिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। विवाह मंडप भी यज्ञ कुंड के समान होता है, जहां अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए जाते हैं। विवाह संस्कार में मांगलिक माटी (गांव की मिट्टी) का उपयोग किया जाता है, जिसे “मागर माटी” कहा जाता है। यह मिट्टी वहीं से लाई जाती है, जहां दूल्हा या दुल्हन बचपन में खेले-कूदे होते हैं। यह मिट्टी केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यह हमें हमारे मूल से जोड़े रखने का एक तरीका भी है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम भी जब वनवास गए थे, तो वे अयोध्या की मिट्टी अपने साथ लेकर गए थे। इसी प्रकार, विवाह में भी अपने गांव की मिट्टी को साक्षी मानकर विवाह किया जाता है, जिससे नई जिम्मेदारियों को अपनाने का एहसास होता है।

भारतीय समाज में दुल्हन को लक्ष्मी का रूप माना जाता है और दूल्हे को नारायण। यही कारण है कि विवाह के समय लड़की के माता-पिता अपने दामाद के पैर छूते हैं। यह एक धार्मिक परंपरा है, क्योंकि उन्होंने अपने दामाद को नारायण रूप में स्वीकार किया होता है। हालांकि, आधुनिक दृष्टिकोण से यह परंपरा कुछ लोगों को अजीब लग सकती है, लेकिन इसका आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है। दामाद को घर का बेटा ही माना जाता है, लेकिन विवाह के समय उसे भगवान का स्वरूप मानकर सम्मान दिया जाता है। इसी कारण कन्यादान को सर्वश्रेष्ठ दान माना गया है।

इसके अलावा, भारतीय विवाह पद्धति में एक और अनोखी परंपरा रही है, जिसे समय के साथ लोगों ने भुला दिया। पुराने समय में जब लड़का विवाह के लिए जाता था, तो उसकी मां उसे अपना दूध पिलाती थी। यह परंपरा आज के समय में लगभग समाप्त हो चुकी है, क्योंकि लोगों को यह अजीब लग सकता है। लेकिन इसका संदेश बहुत गहरा था। मां जब अपने बेटे को विवाह के समय दूध पिलाती थी, तो इसका अर्थ यह होता था कि भले ही बेटा बड़ा हो गया हो, लेकिन वह मां के लिए हमेशा वही दूध पीता बच्चा रहेगा। यह याद दिलाने का एक तरीका था कि जीवन में कोई भी नया रिश्ता आए, लेकिन मां का स्थान कभी नहीं बदल सकता। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती थी कि हमें अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए और कभी भी उन्हें भूलना नहीं चाहिए।

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में भी इस परंपरा का उदाहरण मिलता है। जब वह अपनी माता देवकी के पास वापस लौटे, तो देवकी माता ने पहली बार उन्हें अपना दूध पिलाया था, क्योंकि जन्म के बाद उन्हें यह अवसर नहीं मिला था। इसी तरह, माता कौशल्या ने भी भगवान श्रीराम को विवाह से पहले दूध पिलाया था। यह परंपरा केवल प्रतीकात्मक नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य बच्चों को यह याद दिलाना था कि वे अपनी जड़ों को न भूलें और माता-पिता का हमेशा सम्मान करें। विवाह केवल दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है, इसलिए यह आवश्यक था कि परिवार के मूल्यों को संजोकर रखा जाए।

आज के समय में विवाह की परंपराओं में काफी बदलाव आ गए हैं। हालांकि, कई लोग अब भी इन परंपराओं को निभाने में विश्वास रखते हैं। विवाह में किए जाने वाले हर अनुष्ठान और परंपरा के पीछे एक गहरी सोच होती है, जो केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होती है। विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि जीवन की एक महत्वपूर्ण यात्रा है, जिसमें दोनों पक्षों को समर्पण और त्याग के साथ आगे बढ़ना होता है। भारतीय विवाह की परंपराएं हमें यही सिखाती हैं कि हम अपने रिश्तों को सम्मान दें, परिवार की भावनाओं को समझें और जीवन में संतुलन बनाए रखें।

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