मानव जीवन में पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। यह एक माध्यम है, जिसके द्वारा हम परमात्मा (Supreme Being) से जुड़ते हैं और अपनी आत्मा का उत्थान कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा का विधान है। यह प्रश्न कई बार उठता है कि क्या हमें सभी देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए, या फिर किसी एक के प्रति एकनिष्ठ (dedicated) होकर भक्ति करनी चाहिए? इस विषय पर गहराई से विचार करना आवश्यक है।
भक्ति का मुख्य उद्देश्य
भक्ति का अर्थ है प्रेममय समर्पण। यह प्रेम और समर्पण केवल परमात्मा के लिए होता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि किस परमात्मा की ओर हम अपने मन को समर्पित करें? इसके उत्तर में श्री कृष्ण की लीलाओं और भक्तों के उदाहरणों से हमें सीख मिलती है। बृज की कुमारी कन्याओं का अगहन मास में किया गया कठोर व्रत एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। उन्होंने कात्यायनी देवी की आराधना (worship) की और यह प्रार्थना की कि श्री कृष्ण उन्हें पति रूप में प्राप्त हों। उनकी कठोर तपस्या का उद्देश्य केवल श्री कृष्ण को पाना था।
यह मंत्र केवल एक प्रार्थना नहीं थी, बल्कि उनके मन की तीव्र इच्छा का प्रतीक था। यह दर्शाता है कि भक्ति का सार क्या है – प्रेम।
प्रेम की तीव्रता और सीधा मार्ग
गोपियों ने श्री कृष्ण की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की, लेकिन उन्हें 10 महीने प्रतीक्षा करनी पड़ी। इसका कारण यह था कि उन्होंने शुरुआत में सीधे श्री कृष्ण का आश्रय (shelter) नहीं लिया, बल्कि देवी के माध्यम से उनकी ओर बढ़ने का प्रयास किया। प्रेम गली बहुत संकरी होती है। इसमें दो के लिए स्थान नहीं है। यदि प्रेम को परिपक्व (mature) करना है, तो एकनिष्ठ होकर किसी एक परमात्मा का आश्रय लेना आवश्यक है।
श्री कृष्ण के सीधे आश्रय में जाने का यह उदाहरण दक्षिण भारत की आंडाल (Goda Devi) के जीवन से भी मिलता है। उन्होंने मात्र 15 रात्रियों तक उपासना की और अपने सखियों सहित श्री कृष्ण के नित्य रास में प्रवेश कर गईं। उनकी एकनिष्ठ भक्ति और प्रेम ने उन्हें जल्दी लक्ष्य तक पहुंचा दिया।
देवी-देवताओं का आदर
इसका अर्थ यह नहीं है कि अन्य देवी-देवताओं का अपमान करना चाहिए। प्रत्येक देवी-देवता का अपना स्थान है और सभी का सम्मान करना आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी विनय पत्रिका में सभी देवी-देवताओं की स्तुति की है। लेकिन उन्होंने क्या मांगा? केवल श्री राम का प्रेम।
यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि देवी-देवताओं का सम्मान करते हुए भी हमारी भक्ति का अंतिम लक्ष्य केवल एक होना चाहिए।
सीधा मार्ग क्यों चुनें?
जब हम किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सीधे उस परमात्मा का आश्रय लेते हैं, तो हम जल्दी अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यह उसी प्रकार है जैसे हवाई जहाज की सीधी उड़ान जल्दी अपने गंतव्य (destination) पर पहुंचती है। यदि वह रास्ते में कहीं रुकता है, तो समय अधिक लगता है।
गोपियों के 10 महीनों के व्रत का अर्थ यह भी है कि प्रेम को परिपक्व होने में समय लगता है। लेकिन यदि हम सीधा भगवान श्री कृष्ण का आश्रय लेते हैं, तो यह यात्रा सरल हो जाती है। प्रेम का सिद्धांत यह कहता है कि बीच में कोई तीसरा नहीं आ सकता। प्रेम गली इतनी संकरी है कि उसमें दो का प्रवेश असंभव है।
भक्ति का वर्तमान युग में महत्व
आज के युग में मनुष्य का मन भ्रमित रहता है। विभिन्न इच्छाओं और दुनियावी (materialistic) सुखों के कारण वह भक्ति के सही मार्ग से भटक जाता है। कलिकाल में भी यही संदेश दिया गया है कि हमें सीधा ईश्वर का आश्रय लेना चाहिए। सभी देवी-देवताओं का सम्मान करते हुए हमें अपनी भक्ति को केवल एक परमात्मा के प्रति एकाग्र (focused) रखना चाहिए।
विनयशीलता, प्रेम और समर्पण के साथ की गई भक्ति ही हमें उस लक्ष्य तक पहुंचा सकती है, जहां आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है। हमें यह समझना होगा कि ईश्वर तक पहुंचने के लिए कोई जटिल विधि की आवश्यकता नहीं है। भक्ति का मार्ग सीधा और सरल है।
सभी देवी-देवताओं का सम्मान करना चाहिए, लेकिन भक्ति का अंतिम लक्ष्य केवल एक होना चाहिए। यह प्रेम की पराकाष्ठा (culmination) है, जिसमें हमारा मन, हृदय और आत्मा पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो जाते हैं। गोपियों और आंडाल जैसे भक्तों ने हमें यह सिखाया कि प्रेम और भक्ति का सीधा मार्ग ही सर्वोत्तम है। हमें किसी अन्य के माध्यम से जाने की आवश्यकता नहीं है।
सच्ची भक्ति वही है, जिसमें हम किसी भी अन्य आश्रय को त्यागकर केवल उस परमात्मा का हाथ पकड़ते हैं और पूरी श्रद्धा के साथ उनकी शरण में जाते हैं। यही हमारे जीवन का वास्तविक उद्देश्य है।