कार्तिक मास (Kartik Maas) हिंदू धर्म में सबसे पवित्र महीनों में से एक माना जाता है। यह मास भगवान विष्णु और शिव की विशेष आराधना (worship) का समय है, जब साधारण नियमों के साथ साथ साधना (spiritual practice) को दुगुना या चौगुना बढ़ाने की परंपरा है। कहा गया है कि जिस प्रकार वर्ष भर की साधना (practice) का एक अलग स्तर होता है, वैसे ही कार्तिक में की गई साधना विशेष फलदायी (rewarding) होती है। पुराणों (scriptures) में लिखा है कि इस समय किया गया पुण्य (virtue) कई गुना बढ़ जाता है। साधक (devotee) अपने कार्यों को और अधिक निष्ठापूर्वक (sincerely) संपन्न करते हैं। कई स्थानों पर कार्तिक स्नान, व्रत (fast), भजन (devotional singing) एवं दीपदान की परंपरा बहुत गहराई से निभाई जाती है। कहा गया है कि न्यूनतम नियमों का भी पालन कार्तिक में किया जाए, तो वह साधारण से कई गुना श्रेष्ठ (superior) होता है।
दीपदान की अनुपम (unique) परंपरा
दीपदान अर्थात दीप (lamp) का दान (offering) करना सनातन धर्म की बहुत प्राचीन और पुण्यकारी (meritorious) परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार, साल भर दीपदान का अपना महत्व तो है ही, लेकिन कार्तिक मास में इसका अलग ही स्थान बताया गया है। कहा गया है कि यदि पूरे साल दीपदान संभव न हो, तो कम-से-कम दिवाली के दिन अवश्य करना चाहिए। सनातन ऋषियों ने समाज में ऐसी परंपरा बनाई कि लोग मीनिमम (minimum) एक दिन तो दीपदान करें ही। इस मास में दीपदान से अज्ञान (ignorance) का अंधकार (darkness) मिटता है और जीवन में प्रकाश (light) आता है। दीपक जलाना केवल पूजन (worship) तक सीमित नहीं, बल्कि यह सकारात्मक ऊर्जा (positive energy) का संचार (flow) भी करता है। सच्चे भाव (true intention) से किए गए दीपदान को भगवान के श्रीचरणों (divine feet) में अर्पित (dedicate) करने की परंपरा है।
शुद्ध (pure) दीपदान की विधि
शास्त्रों की दृष्टि में शुद्ध (pure) सामग्री से दीपक जलाने का महत्व सबसे बड़ा है। कहा गया है कि शुद्ध देसी गाय के दूध से निर्मित घी (ghee) से दीपक प्रज्वलित (ignite) करना सर्वोत्तम है। यदि ऐसा संभव न हो, तो तिल (sesame) के शुद्ध तेल (oil) का भी उपयोग किया जा सकता है। घर में बनी हुई घी को श्रेष्ठ (best) कहा गया है, मतलब जो खुद के घर की गाय का दूध, दही से निकाला गया हो। घर में ये संभव न हो पाए, तो फिर जितनी शुद्धता (purity) संभव हो उतना प्रयास (effort) करना चाहिए। दीपक जलाने से पूर्व तुलसी (holy basil) या सूखी लकड़ी की बत्ती (wick) को अच्छे से घी/तेल में डुबोकर कपूर (camphor) से प्रज्वलित करना पावन (sacred) माना गया है। मोमबत्ती (candle) या माचिस (matchstick) की आग का प्रयोग अध्यात्म (spirituality) की दृष्टि से वर्जित (prohibited) है, क्योंकि प्राकृतिक (natural) विधि शुद्ध मानी गई है।
दीपदान का पुण्य और उसका महत्व
कार्तिक मास में दीपदान करने से शास्त्रों के अनुसार अद्भुत (amazing) पुण्य की प्राप्ति होती है। पुराणों में यहां तक कहा गया है कि केवल एक बार भी श्रद्धापूर्वक तुलसी के सूखे काष्ठ (wood) से भगवान के निमित्त (for God) दीपदान किया जाए, तो 60 करोड़ वर्षों तक भगवान के नित्य धाम (eternal abode) में सेवा (service) प्राप्त होती है। इसका अर्थ है कि इसका पुण्य विश्व में गिनती से परे (beyond counting) है। वैष्णव (Vaisnav) जब निष्काम भाव (selfless feeling) से द्वारका में दीपदान करते हैं, तो चित्रगुप्त (deity of accounts) के सारे पाप-पुण्य के खाते (journals) उनके लिए समाप्त हो जाते हैं। ऐसा पुण्य किसी अन्य साधारण कर्म (action) से मिलना संभव नहीं। यहां तक कहा गया है कि दीपदान के पुण्य को खजाने (treasure) की तरह संजोकर नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसे भगवान को अर्पित कर देना चाहिए, जिससे वह अक्षय (imperishable) हो जाता है।
दीपक दान की कथा का मनोहारी वर्णन
स्कंद पुराण की एक प्राचीन कथा का उल्लेख होता है जिसमें एक रानी (queen) का पूर्वजन्म की चुहिया (mouse) के रूप में जन्म लिया गया था। रानी प्रतिदिन दीपदान करती थीं और जब विभांडक (Rishi Vibhāndak) ऋषि ने उनकी इस श्रद्धा का कारण पूछा, तब उन्होंने अपने पुराने जीवन की कथा सुनाई। पिछली जन्म में वह चुहिया थीं और बिल्ली (cat) के डर से भगवान नारायण के मंदिर में जा छुपी। वहां सिंहासन (throne) पर कूदते हुए वह दीपक के तेल में गिर गईं। उस समय मंदिर का दीपक बुझने (getting extinguished) की कगार पर था, लेकिन चुहिया के गिरने से बत्ती (wick) आगे बढ़ गई और दीपक और अधिक प्रज्वलित (illuminated) हो गया। इस घटना से चुहिया के प्राण तो चले गए, लेकिन उस पुण्य के परिणामस्वरूप उसे सूर्यलोक (Sun’s realm) प्राप्त हुआ।
पुण्य प्रतिफल (reward) और पूर्वजन्म की स्मृति
उस दीपदान की कथा में उल्लेख है कि कैसे एक चुहिया अगले जन्म में चक्रवर्ती (emperor) सूर्यवंशी रानी बनी। रानी ने बताया कि पूर्वजन्म की स्मृति (memory) आने के साथ ही उसे समझ आया कि अनजाने में किया गया दीपदान भी कितना बड़ा फल (fruit/reward) देता है। इतना बड़ा पुण्य था कि लाखों युगों तक स्वर्ग (heaven) में वास मिला और अंततः राजमहलों (palaces) में जन्म। ऐसी कथा श्रद्धा (devotion) और दीपदान के महत्व को अत्यंत प्रभावशाली (influential) रूप में स्थापित करती है। रानी की गाथा सभी लोगों को यह सोचने पर मजबूर (force) करती है कि जब अनजाने में इतना बड़ा फल मिल सकता है, तो अगर श्रद्धा और विश्वास (faith) के साथ कर्म किया जाए, तो उसका प्रतिफल कैसा अद्भुत होगा। इसीलिए कार्तिक के महीने में दीपदान को सबसे ऊपर बताया गया है।
दीपदान के विशेष स्थल (special places)
ऐसा बताया गया है कि दीपदान यदि विशिष्ट स्थानों जैसे कि नदी किनारे (riverside), पीपल (peepal), तुलसी, वट (banyan), चौपाल (crossroads), आकाश (sky – hanging lamps), ब्राह्मण आवास (brahmin home), गौशाला (cow shelter) आदि स्थानों पर किया जाए तो उसका फल कई गुना बढ़ जाता है। खासतौर पर गौशाला में दीपदान के बारे में कहा गया है कि वहां दीपक रखना अत्यंत महापुण्य (great merit) है। इस प्रकार स्थान के महत्व को समझते हुए लोग विभिन्न तीर्थस्थलों (pilgrimage sites) या पावन स्थलों (sacred places) पर जाकर विशेष रूप से दीपदान करते हैं। मंदिर परिसर (temple premises) में अथवा घर के भीतर भी शुद्ध स्थान पर दीप जलाना शुभ (auspicious) माना गया है। यह केवल व्यक्तिगत साधना नहीं बल्कि सामाजिक, पारिवारिक समृद्धि (prosperity) का भी प्रतीक होता है।
कार्तिक नियमों का पालन और लाभ
पूरे माह कार्तिक के नियमों का पालन न हो सके, तो एकादशी (ekadashi) से पूर्णिमा (full moon) तक भी नियमपूर्वक दीपदान करने पर पूरे मास (month) के बराबर पुण्य का फल मिलता है। कहा गया है कि यदि किसी मजबूरी (compulsion) या व्यवसायिक व्यस्तता (business busyness) के कारण महीने भर की साधना कठिन हो, तो भी आखिरी तेरह दिन नियमपूर्वक (with discipline) किया गया दीपदान, कल्पवास (month-long penance) के पुण्य की प्राप्ति कराता है। व्यक्ति को चाहिए कि अपने कार्यों का पुण्य अपने पास रखने के बजाय, तुरंत ‘श्रीकृष्णार्पणमस्तु’ (offering to Lord Krishna) कहते हुए भगवान के चरणों में समर्पित कर दे। तभी यह पुण्य अक्षय बनता है। यह भी कहा गया है कि पुण्य को संजोकर रखने की प्रवृत्ति (tendency) सही नहीं, क्योंकि जीवन की अनिश्चितता में कब क्या हो जाए, ज्ञात नहीं होता।
अहंकार रहित (egoless) साधना की सीख
दीपदान या कोई भी पुण्य कार्य करने के बाद भी व्यक्ति में यदि अहंकार (ego/pride) बचा रह जाए, तो उसका विवेक (prudence) और फल दोनों अस्पष्ट (uncertain) हो जाते हैं। श्रेष्ठ साधना वही मानी जाती है, जिसमें किया गया पुण्य विवेकपूर्ण (wisely) भगवान को समर्पित कर दिया जाए। सच्ची साधना वही है, जिसमें फल की आकांक्षा (desire) अथवा प्रचार (publicity) के भाव को त्याग (abandon) दिया जाए। उच्च कोटि (superior) के साधक हर कर्म के पश्चात ‘कृष्णार्पणमस्तु’ (krishnarpanamastu) बोलते हैं, जिससे उनका अहं भाव मिट जाता है। पुण्य जब भगवान को अर्पित किया जाता है, तो उसका कोई अंत (end) नहीं होता। बाकी पुण्य का फल केवल भौतिक (materialistic) सुख तक ही सीमित रह जाता है, जबकि भगवान को समर्पित करने पर वह अमरता (immortality) को प्राप्त करता है।
कार्तिक मास की कथा का सामाजिक सन्देश
कार्तिक मास और दीपदान की कथा समाज को बहुत गहरा संदेश देती है। यह कहानी केवल पुण्य और धर्म की नहीं, बल्कि सहजता (simplicity), निस्वार्थता (selflessness) और श्रद्धा की भी है। जीवन में साधक को हर शुभ कार्य श्रद्धा के साथ करना चाहिए, चाहे वह साधन की उपलब्धता सीमित (limited resources) हो अथवा परिस्थिति अनुकूल (favorable situation) न हो। जब व्यक्ति सच्चे भाव से छोटा सा भी शुभ कार्य करता है, तो उसका प्रतिफल स्वयं भगवान देते हैं। ये कथाएँ समाज को जीवन की राह में सत्य, श्रद्धा, संयम (discipline) व परोपकार (altruism) के साथ बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। आज के समय में जब लोग व्यक्तिगत स्वार्थ (self-interest) और त्वरित लाभ (instant gratification) की चिंता में रहते हैं, तब इस पावन कथा का सन्देश है कि सच्ची श्रद्धा और सेवा का पुण्य अनंतकाल (eternity) तक अक्षय (imperishable) रहता है।
इस प्रकार, कार्तिक मास और दीपदान की पावन परंपरा न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक, नैतिक (moral) और जीवनदायिनी (life-giving) विचारों को प्रकट करती है। यह कथा मनुष्य को अपने जीवन में निष्ठा, भक्ति और दान, इन तीन स्तंभों (pillars) को अपनाने की प्रेरणा देती है। दीपदान का उत्सव केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि जीवन में अंधकार (darkness) को मिटाकर आशा, विश्वास और सकारात्मकता (positivity) का प्रकाश (light) फैलाने का अद्भुत (wonderful) माध्यम है। Attachments के माध्यम से साझा किए गए प्रवचन से सीखा कि परम पुण्य प्राप्ति के लिए कर्म का फल भगवान को समर्पित करना चाहिए। कार्तिक मास और इसमें होने वाले शुभ कार्यों को समझकर लोग अपने जीवन और समाज दोनों को एक नई दिशा (direction) दे सकते हैं।
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