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Why Did Premanand Maharaj Stop His Spiritual Walk? अचानक क्यों रुकी?

NCIधर्मRN2 months ago

Why Did Premanand Maharaj Stop His Spiritual Walk?

 श्री प्रेमानंद महाराज की हाल ही में चल रही पदयात्रा को अनिश्चितकाल के लिए रोक दिया गया है, जिससे उनके अनुयायियों के बीच निराशा की लहर दौड़ गई है। प्रेमानंद महाराज, जो एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं, उनकी शिक्षाएं और उनका जीवन हमेशा से ही लाखों भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। महाराज जी का जन्म कानपुर के सरसौल गांव में हुआ था। उनका असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था, हालांकि उनके जन्म वर्ष को लेकर मतभेद हैं—कुछ जगह 1972 तो कुछ जगह 1969 बताया जाता है। उनका परिवार अत्यंत धार्मिक था, जहां उनके दादा संत थे और माता संतों की सेवा में लगी रहती थीं। बचपन से ही उनके अंदर अध्यात्म की गहरी रुचि थी, और यही कारण था कि महज तेरह साल की उम्र में वे वाराणसी चले गए, जहां उन्होंने भगवत प्राप्ति का प्रण लिया।

महाराज जी का जीवन कठिनाईयों से भरा हुआ था। उन्होंने अपनी दिनचर्या में कठोर तपस्या को स्थान दिया, जिसमें गंगा में तीन बार स्नान, पूजा-पाठ और ध्यान शामिल था। भोजन की समस्या थी, लेकिन वे इसे ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करते थे। कभी-कभी उन्हें भिक्षा में भोजन मिल जाता था, तो कभी सिर्फ गंगा जल पीकर दिन बिताते थे। इसके बावजूद, वे अपने लक्ष्य से कभी डिगे नहीं और अंततः वृंदावन की ओर प्रस्थान किया। वृंदावन पहुंचने की कहानी भी कम रोचक नहीं थी। एक दिन ध्यान करते हुए उन्हें वृंदावन जाने का संदेश मिला, लेकिन वे इसे नजरअंदाज कर बैठे। तभी एक संत उनके पास आए और उन्हें चैतन्य महाप्रभु की रासलीला देखने के लिए आमंत्रित किया। महाराज जी ने पहले तो मना कर दिया, लेकिन जब संत बार-बार आग्रह करने लगे, तो उन्होंने इसे भगवान की लीला समझकर स्वीकार किया। इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने वृंदावन जाने का निश्चय किया।

वाराणसी से वृंदावन की यात्रा आसान नहीं थी। रास्ते में कई कठिनाइयां आईं, लेकिन उनके मार्ग में आने वाले भक्तों और संतों ने उनकी सहायता की। जब वे मथुरा पहुंचे, तो दो व्यक्तियों से उनकी भेंट हुई, जो उनकी विचारधारा से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने महाराज जी को राधेश्याम गेस्ट हाउस में रुकने का निमंत्रण दिया। रात के ग्यारह बजे जब महाराज जी बाहर बैठे थे, तो एक व्यक्ति आया और उन्हें अपने साथ ले गया। जब महाराज जी ने पहली बार श्रीकृष्ण के दर्शन किए, तो वे भावविभोर हो गए और फूट-फूट कर रोने लगे। यही वह क्षण था जब उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने खुद को भगवान को समर्पित कर दिया।

इसके बाद महाराज जी ने वृंदावन में ही अपना आश्रम बनाया और हजारों भक्तों की सेवा की। हालांकि, उनकी यात्रा यहीं खत्म नहीं हुई। उन्हें एक गंभीर बीमारी हो गई, जिसमें उनकी दोनों किडनियां खराब हो गईं। डॉक्टरों ने उन्हें अधिकतम पांच साल तक जीने की भविष्यवाणी की थी, लेकिन वे भगवान की कृपा से आज भी जीवित हैं। इस दौरान भी उन्होंने तपस्या और सेवा जारी रखी।

हाल ही में उनके पदयात्रा कार्यक्रम को लेकर विवाद खड़ा हो गया। महाराज जी रात में अपने सेवादारों के साथ आश्रम से राधाकृष्ण मार्ग तक पदयात्रा करते थे, जहां वे अपने भक्तों को दर्शन देते थे। इस यात्रा में भजन-कीर्तन होता था, जो कुछ स्थानीय लोगों को परेशान करने लगा। ग्रीन कॉलोनी के निवासियों, विशेष रूप से महिलाओं ने इस पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इस पदयात्रा के कारण रात में बहुत अधिक शोर होता है, जिससे उनकी नींद प्रभावित होती है। इसके अलावा, रास्ते ब्लॉक हो जाते हैं, जिससे किसी मेडिकल इमरजेंसी के समय समस्या हो सकती है।

स्थानीय लोगों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, महाराज जी ने अपनी पदयात्रा अनिश्चितकाल के लिए रोक दी। उन्होंने कहा कि वे किसी को परेशानी नहीं देना चाहते। हालांकि, उनके भक्त इस फैसले से बेहद दुखी हैं, क्योंकि उनके लिए यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत थी। कई भक्तों का कहना है कि महाराज जी के दर्शन से उन्हें मानसिक शांति मिलती थी, लेकिन अब वे इस अवसर से वंचित हो गए हैं।

इस पूरी घटना ने समाज में धर्म और आधुनिक जीवनशैली के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है। एक ओर, जहां भक्तों की धार्मिक भावनाएं हैं, वहीं दूसरी ओर, स्थानीय निवासियों की दैनिक जीवन की परेशानियां हैं। महाराज जी का निर्णय उनकी महानता को दर्शाता है, क्योंकि उन्होंने बिना किसी विवाद के शांति और सहिष्णुता का मार्ग चुना।

फिलहाल, जो भक्त महाराज जी से मिलना चाहते हैं, उन्हें वृंदावन जाना होगा और वहां उनकी कृपा पाने का प्रयास करना होगा। महाराज जी के फैसले के बाद भी उनके अनुयायियों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है। वे आज भी उनसे प्रेरणा लेते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं। आध्यात्मिकता और सामाजिक समरसता के इस मामले में, प्रेमानंद महाराज ने यह संदेश दिया कि सच्चा धर्म वही है, जो किसी को कष्ट न दे, बल्कि सबके जीवन में सुख और शांति लाए।

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