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New Law in Uttarakhand: अब पुलिस को देनी होगी जानकारी!

NCIRNvimarsh3 months ago

New Law in Uttarakhand

 उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) को लागू कर दिया है, जिससे कई नए नियम और कानूनी प्रावधान प्रभावी हो गए हैं। इस फैसले के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर सख्त नियम बनाए गए हैं, जिससे इस व्यवस्था में रहने वाले लोगों के लिए नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। देहरादून के स्नेहल और मितेश, जो कि कोविड-19 के दौरान उत्तराखंड शिफ्ट हुए थे, इस बदलाव का एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। दोनों का मानना था कि वे एक खूबसूरत और शांत वातावरण में रहकर अपने काम को आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन अब नए कानून ने उनके निजी जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने के बाद, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले सभी जोड़ों को सरकार के पास रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। इसके साथ ही, उन्हें अपने रिश्ते की जानकारी स्थानीय प्रशासन और पुलिस के साथ साझा करनी होगी। इस नए नियम से व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर लोगों के मन में चिंता बढ़ गई है। स्नेहल और मितेश जैसे कई कपल्स का कहना है कि यह नियम न केवल उनकी निजी जिंदगी में सरकार की दखलअंदाजी को बढ़ाएगा, बल्कि संभावित परेशानियों को भी जन्म देगा।

इस कानून के तहत, अगर कोई कपल अपने रिश्ते को रजिस्टर नहीं करता है, तो किसी भी व्यक्ति को उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का अधिकार होगा। इससे कई कपल्स को डर लग रहा है कि उनके माता-पिता, रिश्तेदार या अन्य लोग, जो उनके रिश्ते से सहमत नहीं हैं, उन्हें परेशानी में डाल सकते हैं। इतना ही नहीं, अगर शिकायत दर्ज हो जाती है, तो कपल को तीन महीने की जेल या ₹10,000 का जुर्माना भरना पड़ सकता है। इससे उत्तराखंड में रहने वाले लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।

स्नेहल और मितेश की ही तरह, कई और जोड़ों को अब इस बात की चिंता सता रही है कि उनकी व्यक्तिगत जानकारी पुलिस और प्रशासन के पास जाने से उनके ऊपर निगरानी बढ़ जाएगी। इससे कई लोगों को यह भी डर है कि स्थानीय प्रशासन या पुलिस के कुछ अधिकारी इस कानून का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे ब्लैकमेलिंग और उत्पीड़न (harassment) के मामले बढ़ने की संभावना है। इस नए नियम के तहत, अगर कपल्स में से कोई भी 21 साल से कम उम्र का है, तो उनके माता-पिता को भी उनके रिश्ते की जानकारी दी जाएगी। इससे कई कपल्स को डर है कि उनके परिवार वाले उन पर दबाव डाल सकते हैं, या फिर उनके रिश्ते को जबरन खत्म करने की कोशिश कर सकते हैं।

एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अगर कोई लिव-इन कपल्स अपने रिश्ते को रजिस्टर करवा भी लेता है, तो उनके रिश्ते की जानकारी लोकल पुलिस के साथ साझा की जाएगी। इससे कई लोगों को यह डर सता रहा है कि उनकी जानकारी सार्वजनिक हो जाएगी, जिससे उनके समाज में उन्हें अजीब नजरों से देखा जा सकता है। कई मामलों में, समाज में इस तरह के रिश्तों को अब भी पूरी तरह स्वीकार नहीं किया जाता है, और अगर किसी को इस रिश्ते के बारे में पता चल जाता है, तो कपल्स को मानसिक दबाव और सामाजिक तानों का सामना करना पड़ सकता है।

मितेश का कहना है कि जब उन्होंने पहली बार इस कानून के बारे में पढ़ा, तो उन्हें लगा कि यह सिर्फ एक प्रस्ताव (proposal) है, लेकिन अब यह एक वास्तविक कानून बन चुका है। वे कहते हैं कि इस नियम से न केवल उनकी निजता (privacy) प्रभावित होगी, बल्कि यह उनके मूलभूत अधिकारों (fundamental rights) का उल्लंघन भी करता है। स्नेहल का भी यही मानना है कि यह कानून उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता (personal freedom) को सीमित कर रहा है। वे कहती हैं कि लोकतंत्र (democracy) का मूल सिद्धांत यह है कि हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का अधिकार होना चाहिए। अगर दो लोग सहमति से एक रिश्ते में रह रहे हैं, तो इसमें सरकार या समाज को दखल देने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

इस नए कानून को लेकर कानूनी और सामाजिक विशेषज्ञों में भी बहस छिड़ गई है। कुछ लोगों का मानना है कि यह कदम महिलाओं की सुरक्षा के लिए उठाया गया है, लेकिन कई अन्य लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हैं। भारत का सुप्रीम कोर्ट पहले ही लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दे चुका है, और कई मामलों में इसे शादी के समान दर्जा भी दिया गया है। हालांकि, उत्तराखंड में लागू किए गए नए नियमों ने इस स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इस नए कानून से लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स को एक तरह से शादी करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, क्योंकि अगर वे अपने रिश्ते को रजिस्टर नहीं कराते हैं, तो उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। कई लोगों का मानना है कि यह कानून लिव-इन रिलेशनशिप को और भी मुश्किल बना देगा, और समाज में पहले से ही मौजूद इस रिश्ते को लेकर पूर्वाग्रह (stigma) को और बढ़ा सकता है।

मितेश और स्नेहल की तरह कई अन्य कपल्स इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या वे उत्तराखंड में रहना जारी रख सकते हैं या फिर किसी अन्य राज्य में जाकर बसना होगा। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि अगर यह कानून अन्य राज्यों में भी लागू किया जाता है, तो इससे लोगों के व्यक्तिगत फैसलों पर सरकार का नियंत्रण बढ़ जाएगा।

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि क्या सरकार को लोगों की निजी जिंदगी में इतनी गहराई तक दखल देने का अधिकार होना चाहिए? लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संरक्षित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस कानून के लागू होने के बाद, अब यह देखना होगा कि इसका असर लोगों की निजी जिंदगी पर किस तरह से पड़ता है, और क्या आने वाले समय में इसे लेकर कोई बदलाव किया जाएगा।

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